कोरोना वायरस फैलने के बाद सबसे पहले होटलों ने सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाया। कमरों और अन्य सार्वजनिक स्थानों में जीवाणुओं का सफाया करने वाले इलेक्ट्रोस्टेटिक स्प्रे और अल्ट्रावायलेट रोशनी के सिस्टम लगाए गए। फिर रिसर्च से पता लगा कि वायरस सतह संपर्क की बजाय हवा से अधिक फैलता है। इसलिए अब होटलों और क्रूज शिप में हवा साफ करने वाले कई तरह के सिस्टम लग रहे हैं। इस मामले में होटल इंडस्ट्री एयरलाइनों का अनुसरण कर रही है। कई एयरलाइनों ने कणों को साफ करने वाले उच्च क्षमता के एयर फिल्टर (एचईपीए) लगाए हैं। ये फिल्टर कोरोना वायरस सहित अन्य वायरस कणों को 99% तक पकड़ते हैं।
अभी हाल सामने आई कई रिसर्च में हवा साफ रखने पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसलिए दुनियाभर में होटल और क्रूज शिप अपने हीटिंग, वेंटिलेशन और एयरकंडीशनिंग सिस्टम के साथ हवा साफ करने के सिस्टम जोड़ रहे हैं। एल पासो, अमेरिका स्थित होटल पासो डेल नोर्टे के मैनेजर कार्लोस सारमिएंटो कहते हैं, इन हालात में ग्राहक के लिए साफ हवा सबसे अच्छी सुरक्षा है। होटल ने अभी हाल में प्लाज्मा एयर नामक हवा साफ करने वाला सिस्टम लगाया है। यह वायरस को बेअसर करने वाले आयन छोड़ता है। हवा के साथ आए विभिन्न कणों को अलग करता है।
हवा में 16 घंटे तक मौजूद रह सकता है वायरस
शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस से संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने या बोलने से बाहर निकले कोविड-19 के कण हवा में 16 घंटे रह सकते हैं। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. फिलिप टिएरनो कहते हैं, किसी कमरे में दूषित हवा से बचाव का पहला साधन सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क है। डॉ. टिएरनो ने वायरस अलग करने के सिस्टम- एचवीएसी की निर्माता कंपनियों को सलाह दी है। वे कहते हैं,एचवीएसी हवा में मौजूद कणों की मात्रा बहुत अधिक कम कर सकते हैं। सूक्ष्म एरोसॉल कण बहुत खतरनाक होते हैं।
हवा साफ करने वाली टेक्नोलॉजी में दो ध्रुवीय आयनोनाइजिंग सिस्टम शामिल है। यह हवा में आयन भेजते हैं जो वायरस की सतह को नष्ट कर उसे निष्क्रिय कर देते हैं। वे वायरस एरोसॉल कणों से लिपट जाते हैं। इससे वायरस गिर जाता है या उसे आसानी से फिल्टर कर बाहर किया जा सकता है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ सिस्टम पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है, ये सिस्टम ओजोन या अन्य कण छोड़ते हैं जो नुकसानदेह हैं।
एयरकंडीशनिंग, हीटिंग और रेफ्रीजरेटिंग इंजीनियर्स की सोसायटी एशरे की राय है, यह टेक्नोलॉजी अभी नई है। इसके पक्ष में ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। वहीं दो ध्रुवीय आयोनाइजेशन टेक कंपनी एटमॉसएयर सॉल्यूशंस ने कुछ ऐेसे परीक्षण किए हैं जिनमें पाया गया कि टेक्नोलॉजी ने 30 मिनट के अंदर कोरोना वायरस की मौजूदगी को 99 प्रतिशत कम कर दिया। कुछ वायरल प्रतिरोधी एचवीएसी सिस्टम जीवाणु खत्म करने के लिए अल्ट्रावायलेट रोशनी का उपयोग करते हैं।
अमेरिका के फूड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है, अल्ट्रा वायलेट-सी लैम्प से वायरस निष्क्रिय होता है। कई होटल लंबे समय से एलर्जी मुक्त कमरों की सुविधा दे रहे हैं। इनमें सफाई के सिस्टम ज्यादा होते हैं। प्योर वैलनेस चेन का दावा है कि दुनियाभर में उसके दस हजार कमरों में कमरे साफ रखने की टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा है। इसमें वायरस, बैक्टीरिया, फंगस सहित कोरोना वायरस को पकड़ने वाले एयर फिल्टर शामिल हैं।
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