Header Ads Widget

Responsive Advertisement

1943 में ही सुभाषचंद्र बोस ने स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार बना ली थी

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को ही सिंगापुर में स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार बना ली थी, नाम रखा था ‘आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द’ इस सरकार के वे प्रथम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री थे। नेताजी सुभाषचन्द बोस की इस अंतरिम सरकार को नौ देशों ने मान्यता दे दी थी। इस सरकार की सेना का नाम ‘आजाद हिन्द फौज’ रखा गया, जिसेकं प्रधान सेनापति भी नेताजी स्वयं बने। आजाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती किया था। आजाद हिन्द फौज में औरतों के लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी। इस  अंतरिम सरकार का ‘आजाद हिन्द रेडियो’ था।


द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिये नेताजी ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप जीत लिये। यह द्वीप आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द के अनुशासन में रहे। नेताजी ने इन द्वीपों को ‘शहीद द्वीप’ और ‘स्वराज द्वीप’ का नया नाम दिया। ‘आजाद हिन्द फौज’ ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। कम पैसों और सीमित संख्या में सैनिक होने पर भी नेताजी ने जो किया, वह प्रशंसनीय है। नेताजी भारत को एक महान विश्व शक्ति बनाना चाहते थे। उनकी नजर में भारत भूमि वीर सपूतों की भूमि थी, इसी भाव को वह हर हृदय में फिर से स्थापित करना चाहते थे। 

6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गान्धीजी को सम्बोधित करते हुए नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिन्द तथा आजाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान नेताजी ने गान्धीजी को राष्ट्रपिता कहा तभी गांधीजी ने भी उन्हें नेताजी कहा। तब सी ही महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा जाने लगा।
उड़ीसा प्रांत में कटक में प्रसिद्ध वकील जानकी दास बोस के यहां 23 जनवरी, 1897 सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ। नेता जी प्रारंभिक पढाई कटक में हुई। उच्च शिक्षा कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की। इसी कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर के द्वारा भारतियों को सताए जाने पर नेता जी बहुत विरोध करते थे। यही ंसे नेता की के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हुई। 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी ठुकरा कर उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। सुभाषचंद्र और गाँधी जी के विचार बिल्कुल अलग थे. नेता जी गाँधी जी की अहिंसावादी विचारधारा से सहमत नहीं थे, उनकी सोच नौजवान वाली थी, जो हिंसा में भी विश्वास रखते थे. दोनों की विचारधारा अलग थी लेकिन मकसद एक थाभारत देश की आजादी। भारत को आजाद कराने के लिए विभन्नि आन्दोलनों के कारण सुभाष चन्द्र बोस को 11 बार कारावास में जाना पड़ा। 

1930 में वे कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। 1932 में उन्हें फिर से कारावास हुआ। तबियतखराब होने के कारण उन्हें यूरोप भेज दिया गया। सन् 1933 से 1936 तक वे यूरोप में रहे। 1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन में गान्धी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना। यह कांग्रेस का 51 वाँ अधिवेशन था। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस का स्वागत 51 बैलों द्वारा खींचे हुए रथ में किया गया। 1939 में गांधी जी के नहीं चाहते हुए भी सुभाषचंद वोस ने कांग्रेस का चुनाव लड़ा ओर वे विजयी हुए। तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। सितम्बर के लगभग द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ होने की उन्हें सूचना मिली। अगले ही वर्ष जुलाई में कलकत्ता स्थित हालवेट स्तम्भ जो भारत की गुलामी का प्रतीक था सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातोंरात वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। नेताजी को जेल में डाल दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हालात खराब होने से नेताजी को नजरबंद कर दिया गया। नजरबन्दी से चकमा देते हुए पलायन कर सुभाष जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे। हिटलर और जर्मनी से उन्हें कुछ सहयोग नहीं मिला।  8 मार्च 1943 को वे जर्मनी पनडुब्बी से मैडागास्कर के किनारे तक पहुंचे। वहां से वे समुद्र में तैरकर जापानी पनडुब्बी तक पहुँच जापान पहुंचे। जापान के प्रधानमन्त्री जनरल हिदेकी तोजो ने नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें सहयोग दिया और यहीं स्वाधीन भारत की सरकार की घोषणा हुई। 
अंडमान और निकोबार द्वीप जीतने के बाद आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। लेकिन बाद में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा। रूस से सहायता माँगने हेतु 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये।

23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें वे मारे गये। किन्तु कई जांच रिपोर्टों में यही पता चला कि उक्त विमान हादसा हुआ ही नहीं। 

एक रिपोर्ट में फैजाबाद के ‘राम भवन’ में रहने वाले जिन बुजुर्ग शख्स का जिक्र किया गया है, वे ही गुमनामी बाबा और भगवन जी के नाम से प्रसिद्ध हैं. उनके पास से मिले नेताजी से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर कई लोग आज भी यही मानते हैं कि वे नेता जी ही थे और भारत की आजादी के बाद जानबूझकर वेश बदल कर रह रहे थे. बताया जाता है कि वे सत्तर के दशक की शुरुआत में फैजाबाद आए थे. आजाद हिंद फौज में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी भी कई मौकों पर यह दावा कर चुके हैं कि नेताजी आजादी के बाद तक भी जीवित थे। इन सिपाहियों ने नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया था। जो भी है नेताजी सुभाषचंद बोस के अन्त की कहानी रहस्य ही बनी हुई है।


-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, 
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, मो. 9826091247

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ