साल 2020 के हासिल को एक वाक्य में परिभाषित करना हो, तो रॉबर्ट एच. शुलर का यह कथन पर्याप्त होगा कि- मुश्किलें हमेशा हारती हैं, संघर्ष करने वाले हमेशा जीतते हैं।
इस वर्ष पूरी मानव जाति विजेता के तौर पर उभरी है।
चाहे-अनचाहे हर किसी ने बहुमूल्य सबक़ सीखे हैं। बहुत-से लोग पहले से और बेहतर हुए हैं और मज़बूत बनकर सामने आए हैं।
हममें से लगभग सभी ने ज़िंदगी की नैमतों को अच्छी तरह पहचाना है और जीवन की छोटी-छोटी ख़ुशियों का आनंद लेने तथा जीवन को उसकी पूर्णता में जीने के लिए तैयार हुए हैं।
इस वर्ष को हम भले ही अपनी स्मृति से मिटा देना चाहें, परंतु सच तो यह है कि इसके सकारात्मक सबक़ ताउम्र हमारे साथ रहेंगे और शायद आने वाली कुछ पीढ़ियों को भी दिशा देंगे।
इस आमुख कथा में पढ़ते हैं, 2020 के 20 सबक़...
1. 2020 ने सिखाया कि पैसे से सब-कुछ नहीं ख़रीदा जा सकता।
वास्तव में, जीवन में जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह पैसे से बिल्कुल नहीं ख़रीदा जा सकता। स्वास्थ्य के संदर्भ में साधन-सम्पन्न लोग भी बेबस दिखे।
संकट के समय साथ मिलने की सम्भावना हमारी अच्छाई और रिश्तों की मज़बूती के समानुपातिक रही। यहां तक कि धन ख़र्च करने को तैयार होने पर भी तालाबंदी के कारण कुछ अरसे तक मामूली चीज़ों और साधारण सेवाओं के लिए तरसना पड़ा।
2. हम परिवेश से अलग नहीं हैं, समाज के साथ हमारे हित-अहित जुड़े हैं।
घर के दरवाज़े बंद करके मुक्त और सुरक्षित नहीं हुआ जा सकता। समुदाय में एक शख़्स भी तकलीफ़ में तप रहा है, तो देर-सबेर उसकी आंच दूसरों तक भी पहुंचनी ही है। ‘हमें क्या’ कहकर निर्लिप्त नहीं रहा जा सकता। व्यक्तिों के साथ ही यह समाजों और देशों के लिए भी सच है।
दुनिया ग्लोबल-ग्राम बन चुकी है। सारे देश आपस में जुड़े हैं। जहां इसके फ़ायदे हैं, वहीं नुक़सान भी हैं। सुदूर चीन की एक ग़लत हरकत या कारस्तानी बाक़ी दुनिया के लिए जी का जंजाल बन सकती है। सोसायटी में एक आदमी की लापरवाही सबके लिए जोख़िम पैदा कर सकती है।
अतः अपने हित के लिए अपने परिवेश के प्रति जागरूक रहना, ग़लत का खुलकर विरोध करना और अच्छे को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है।
3. हुनर महत्वपूर्ण है। डिग्री से ज़्यादा कौशल ज़रूरी।
हज़ारों साल पहले नृत्य-संगीत, पाककला, घोड़ों और हाथियों की देखभाल और शृंगार की जानकारी जैसी विद्याओं ने द्रौपदी सहित पांडवों को अज्ञातवास में बचाया था।
2020 ने बताया कि उत्तरजीविता के लिए हाथ का कोई हुनर कितना आवश्यक है। जब सबकुछ ख़त्म हो जाए, तब भी आपके पास कुछ ऐसा हो कि दो हाथों और दो पैरों की बदौलत आप खाने लायक़ कमा सकें।
4. रिश्ते प्यार से बनते हैं, पीआर से नहीं।
पीआर लाभदायक है, परंतु यह वास्तविक रिश्ते नहीं बनाता, क्योंकि जहां ज़रूरत या लाभ ख़त्म, वहीं रिश्ता समाप्त! रिश्ते बनते हैं बिना शर्त और हिसाब-किताब के बग़ैर दिए गए साथ से, क्योंकि आपको कभी पता नहीं होता कि किसकी कब ज़रूरत आन पड़ेगी। संकट के समय असल रिश्ते काम आते हैं। आभासी दुनिया भी एक हद तक कारगर है, लेकिन प्रत्यक्ष जुड़ाव अनिवार्य है।
5. स्वास्थ्य है तो जीवन है। तभी बुद्धि, कॅरियर और तमाम चीज़ें हैं।
स्वामी विवेकानंद के पास सतेंद्र बनर्जी नामक एक युवक गीता का ज्ञान लेने आया था। स्वामी जी ने उससे कहा कि पहले वह छह महीने फ़ुटबॉल खेलकर आए। उन्होंने कहा कि तुम फ़ुटबॉल के ज़रिए स्वर्ग के ज़्यादा निकट होगे बजाय गीता का अध्ययन करने के। इसके पीछे सोच यही थी कि मज़बूत शरीर में ही सुदृढ़ मन और मस्तिष्क का निवास हो सकता है।
बाद में बनर्जी ने गीता प्रचार मंडल की स्थापना की और बांग्ला भाषा में गीता का काव्य रूपांतरण किया। शारीरिक श्रम, अस्त्र-शस्त्र का अभ्यास और योगाभ्यास ऋषि परम्परा का हिस्सा रहे हैं। स्वयं गीता भी कर्म करने और कर्तव्य निभाने की प्रेरणा देती है।
6. कड़वी चीज़ें लाभदायक होती हैं, चाहे गिलोय, हल्दी और काढ़ा हों या फिर अनुभव।
ख़राब स्वास्थ्य के चलते जिनकी जान सांसत में रही, उन्हें सुबह समय से उठने, वर्जिश करने, घर के कामों में हाथ बंटाने सम्बंधी पिता की सीख अवश्य याद आई होगी।
यह भी एहसास हुआ होगा कि 60 या 70 की उम्र में पिता कितने स्वस्थ और कर्मठ हैं, जबकि 35-40 की वय तक पहुंचते-पहुंचते ख़ुद उनकी ज़िंदगी किस तरह घिसटने लगी है। तब कड़वी डांट प्रतीत होने वाली उस सीख का महत्व समझ आया होगा।
7. नियमितता और अनुशासन आवश्यक हैं। पाउडर खाकर बनाई गई बॉडी काम नहीं आती।
आप सारी दुनिया को धोखा दे सकते हैं, ख़ुद को नहीं। नियमबद्ध और अनुशासित तरीक़े से किया गया काम ही फलदायक होता है। भले ही आप चार दिन का काम एक दिन में निबटा लें और दूसरों को पता भी न चले, परंतु आपके शरीर और मस्तिष्क को पता चलता है, उन पर स्थायी फ़र्क़ पड़ चुका होता है।
यह थोड़ा-थोड़ा फ़र्क़ संचित होता जाता है और एक दिन गम्भीर स्वास्थ्य-समस्या के रूप में दूसरों के सामने आ ही जाता है।
8. श्वास सबसे महत्वपूर्ण है। 2020 की यह एक अहम सीख है।
हमने अच्छे-अच्छों को सांस के लिए जूझते देखा और तब याद आया कि क्यों भारत की प्राचीन परम्परा श्वास-प्रश्वास के नियमित अभ्यास को इतनी अहमियत देती है। बहुत सारे लोगों ने इस कोरोनाकाल में ही सही ढंग से सांस लेना सीखा और उसकी अहमियत को जाना। महसूस किया कि अपनी सांसों पर ध्यान देना जीवन और स्वास्थ्य के लिए इतना मायने क्यों रखता है।
9. हमने जाना कि अपनी सुरक्षा अपने हाथ है।
लोग लापरवाही करेंगे, हर कोई मास्क नहीं लगाएगा, परंतु आप हमेशा लगा सकते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए कुछ करना आपके हाथ में है। आपके लिए ख़ुद का और अपने प्रियजनों का जीवन अमूल्य है, इसलिए दूसरों को दोष देने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा, अपनी जान की सलामती के लिए आपको हरसम्भव जतन करने होंगे।
10. यह सबक़ भी मिला कि आप सबकुछ कर सकते हैं, किंतु मनमाफ़िक नतीजा तय नहीं कर सकते।
इस दौर में घर के भीतर ही रहने वाले बुज़ुर्ग और पीपीई किट पहनने वाले स्वास्थ्यकर्मी भी दुर्भाग्य का शिकार हुए। इसलिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें और भगवान पर भरोसा रखते हुए अंतिम परिणाम उस पर छोड़ दें।
आपने ईमानदारी से अपना काम किया है, फिर फल क्या होगा इसे लेकर चिंता न करें। गीता की यह सीख 21वीं सदी के संकटकाल में भी कारगर हुई है।
11. संयम ही जीवन है।
दोस्तों ने डरपोक कहकर मज़ाक़ उड़ाया। सहकर्मियों ने कहा कि कुछ नहीं होता। सैर-सपाटे के प्रलोभन आए। चटोरी जीभ ने ललचाया। दिल ने कई बार कहा, छोड़ो ये सब, जो होगा देखा जाएगा। लेकिन करोड़ों लोगों ने सावधानियां नहीं छोड़ीं।
बच्चों को किसी तरह समझाया कि मौज-मस्ती हम बाद में भी कर लेंगे। मास्क, साफ़-सफ़ाई और दूरी का ध्यान हरदम रखा। तब जाकर करोड़ों जानें बच सकीं और सीमित साधनों वाले देश में अधिकांश आबादी सुरक्षित रह सकी।
12. साल ने दिखाया है कि पेशा पैसा कमाने और आजीविका का ज़रिया नहीं है, कर्तव्य भी है।
संकट के दौर में ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाने वाले हर व्यक्ति ने दुआएं भी कमाईं। हममें से बहुत-से लोग सोचते रहे होंगे कि हम अंग्रेज़ों के ज़माने में होते, तो अपना सबकुछ देश के लिए क़ुर्बान कर देते या फिर पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ जाए, तो देश के लिए उसमें कूद पड़ेंगे।
कोरोना काल के रूप में वैसा ही मौक़ा आया था। बहुत सारे लोगों ने देशवासियों को बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली। सीमा पर ही नहीं, इस कोरोना काल में योद्धा हॉस्पिटल में भी शहीद हुए। देश और समाज के लिए कुछ कर गुज़रने का मौक़ा हर किसी के पास होता है, यह इस साल ने बख़ूबी बताया।
13. कोई भी समस्या छोटी या दूर नहीं होती।
पहले कोरोना चीन में था, फिर वह हमारे देश में, फिर प्रदेश में, उसके बाद शहर और हमारे ठीक पड़ोस या घर में ही आ धमका। बहुतों ने इसे साधारण सर्दी-ज़ुकाम जैसी मामूली बीमारी समझा, तो इसकी वजह से अपनों को खोया भी। हमने देखा कि कैसे किसी की एक छोटी-सी लापरवाही उसके पूरे परिवार के लिए भारी पड़ गई।
दूसरी तरफ़, यह भी साबित हुआ कि छोटी-छोटी चीज़ें ही मिलकर जीवन पर निर्णायक असर डालती हैं। मास्क, सैनिटाइज़र, हाथ धोना और दूरी का ख़्याल रखना जैसे उपाय लाखों के लिए प्राणरक्षक सिद्ध हुए। अतः किसी भी बात को छोटी-सी कहकर हल्के में न लें।
14. शौक़ बड़ी चीज़ है। शौक़ होने चाहिए वरना जीवन थमता है, तो बड़ा नीरस हो जाता है।
लॉकडाउन की ऊब ने अध्ययन, लेखन, कला, दस्तकारी और भजन-पूजन जैसी गतिविधियों की अहमियत बताई। पद, प्रतिष्ठा और पैसे की दौड़ में शामिल लोगों को थोड़ा ठहरकर सोचने का अवसर मिला कि रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगे, कौन-सी गतिविधि उन्हें सुकून देती है, किसमें उन्हें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता?
15. साल ने बरसों से दी जा रही सीख ‘स्वावलम्बी सदा सुखी’ का एहसास करवा दिया।
अपनी ज़रूरतों के लिए जो दूसरों पर जितना अधिक निर्भर था, उसे तालाबंदी के दौरान उतनी ही खीझ हुई। जो कहीं अकेले रह गए, उन्हें दो वक़्त के भोजन का इंतज़ाम और सफ़ाई भी पहाड़ सरीखे लगे।
इसके विपरीत, अपना काम ख़ुद करने के अभ्यस्त लोगों को कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा, बल्कि उन्होंने औरों की सहायता भी कर दी। जिन परिवारों में सबके काम बंटे हुए थे और पहले से ही मिलजुलकर काम होता था, वहां ज़्यादा दिक़्क़तें नहीं आईं।
16. साल 2020 ने दिखाया कि कुछ लोग कभी नहीं सुधरेंगे। नष्ट हो जाएंगे, पर बदलेंगे नहीं।
इसी दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जो प्राणों पर संकट के बावजूद कभी मास्क पहने नहीं दिखे। जब बहुत-से लोग दूसरों के लिए कुछ कर रहे थे, उसी समय कुछ लोग स्वार्थपूर्ति और भ्रष्टाचार में लिप्त थे।
जब सारी दुनिया रिश्तों की उपयोगिता और महत्व का एहसास कर रही थी, कुछ लोग ज़िद, अहंकार और स्वार्थ में रिश्ते तोड़ रहे थे। सारी दुनिया कोरोना वॉरियर्स पर फूल बरसा रही थी, वहीं कुछ उनको अपमानित भी कर रहे थे।
संकट हर किसी को सुधार दे, ज़रूरी नहीं।
17. बचत अनिवार्य है, कम से कम बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति जितनी तो होनी ही चाहिए।
इस साल जिनके पास छत थी और रोटी का इंतज़ाम था, वे लगभग निश्चिंत रहे। रोज़गार न रहने पर भी काम चल गया। क्या खाएं, कहां रहें वाली नौबत नहीं आई। जिनके सिर पर कोई क़र्ज़ नहीं था, क़िस्तें नहीं भरनी थीं, वे नुक़सान के बावजूद चैन की नींद सोए।
18. जो मुफ़्त है, दरअसल वही सबसे क़ीमती है।
गंदगी के नाम पर बच्चों को मिट्टी से दूर रखकर, गोरेपन के लिए धूप से बचकर, साफ़ हवा के नाम पर एयर कंडीशनर की भरमार करके और प्राइवेसी के नाम पर बिल्कुल बंद घरों को प्राथमिकता देकर हमने ख़ुद को क़ुदरत की नेमतों से दूर कर लिया।
वह तो इसी साल समझ आया कि ताज़ा हवा, धूप और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली मिट्टी की सोहबत कितनी ज़रूरी है। जब कोई दवा नहीं होती, तो शरीर की प्राकृतिक शक्ति ही काम आती है, जो प्रकृति की सर्वसुलभ नैमतों से ही मिलती है।
19. आभासी असल की जगह नहीं ले सकता।
ठीक है कि कोरोनाकाल में आभासी दुनिया के साधन सबसे ज़्यादा काम आए। इंटरनेट ने घर से काम और पढ़ाई को सम्भव बनाया और मोबाइल फ़ोन ने प्रियजनों से जुड़े रहने में मदद की। लेकिन इसी के साथ ही यह एहसास भी प्रबल हुआ कि ये सब अस्थायी और वैकल्पिक हैं।
कोई भी मशीनी साधन वास्तविक सम्पर्क और असली संसार का स्थान नहीं ले सकता। सोचिए, बच्चों को सबकुछ स्मार्टफ़ोन और कम्प्यूटर के ज़रिए सिखा डालने की क़वायद में हम उनके साथ कितना अन्याय कर रहे हैं!
20. 2020 वह साल है, जब हमने अपनी दुनिया में अच्छे लोगों की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की।
अमीर-ग़रीब, हर किसी ने बिना किसी झिझक-संकोच के अच्छे कामों को सराहा। मुकेश अंबानी और अमिताभ बच्चन भी समाज के लिए कोरोना से जूझने और अपनी जान जोखिम में डालने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ताली-थाली बजाते नज़र आए।
भले ही यह प्रतीकात्मक था, पर हमने हर नर्स, डॉक्टर, एम्बुलेंस चालक, पुलिसकर्मी, बैंककर्मी, छोटे दुकानदार, मीडियाकर्मी समेत उन तमाम लोगों को दिल से सलाम किया, जिन्होंने डर को परे रखकर अपना कर्तव्य निभाया। उनके लिए दिल से सच्ची दुआएं निकलीं।
एक सुकून रहा कि जब तक ऐसे लोग हैं, हर संकट पर विजय पाई जा सकती है। उन्हें देखकर प्रेरणा भी मिली।
आप दुनिया में जैसे लोग चाहते हैं वैसा ख़ुद बनें, यह 2020 का सबसे बड़ा सबक़ है। यह साल भले ही भूल जाइए, लेकिन उसके सबक़ ज़रूर याद रखिए।
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