- 4डी राडार व सिग्नल सिन्क्रोनाइजेशन के लिए स्मार्ट सिटी के पास पैसा नहीं
- दो साल में दो बार टेंडर बुलाए, लेकिन इतनी कम राशि में कोई कंपनी नहीं हो पाई राजी
- 50 चौराहों पर कैमरे और 4डी राडार से जाम की गूगल इमेज का था प्लान
देश में नंबर 3 स्मार्ट सिटी इंदौर ने सड़कों के चौड़ीकरण, ऐतिहासिक इमारतों के जीर्णोद्धार, स्वच्छ भारत मिशन में तो करोड़ों खर्च किए , लेकिन शहर की सबसे बड़ी जरूरत बिगड़ैल ट्रैफिक को सुधारने के लिए पैसा नहीं है। शहर के 50 चौराहों पर अत्याधुनिक कैमरे, 4डी राडार से जाम की गूगल से बेहतर जानकारी और सिन्क्रोनाइजेशन, ताकि सभी सिग्नल ग्रीन मिले यह तकनीक को लाने वाले इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस) प्रोजेक्ट को होल्ड पर कर दिया गया है। इसके लिए सीईओ दो बार टेंडर के बाद भी योग्य कंपनी नहीं मिलने का कारण बता रहे हैं।
इंदौर स्मार्ट सिटी के 192 प्रोजेक्ट है, जिनमें से 118 से ज्यादा पूरे हो चुके हैं। इन्हें पूरा करने में 700 करोड़ से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। इन प्रोजेक्ट्स में शहर की जनता को सबसे ज्यादा प्रतीक्षा आईटीएमएस की थी। यह प्रोजेक्ट मात्र 70 करोड़ का था। दो साल में दो बार इसके टेंडर कॉल हुए। पहली बार सिर्फ एक कंपनी आई तो दोबारा टेंडर करना पड़ा।
दूसरी बार दो कंपनियां आई इनमें एक कंपनी ने 111 करोड़ की राशि कोट की, जबकि दूसरी ने 91 करोड़ में प्रोजेक्ट लेने की बात कही। तब यह कहकर टेंडर निरस्त कर दिया गया कि स्मार्ट सिटी को यही तकनीक 70 करोड़ में चाहिए। तीसरी बार टेंडर एक साल से जारी ही नहीं किया गया। भास्कर ने पड़ताल की तो पता चला पूरा प्रोजेक्ट ही होल्ड पर कर दिया गया है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि स्मार्ट सिटी के पास इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पैसा ही नहीं बचा है।
अफसरों का तर्क... सड़कें बनाएं या नया प्रोजेक्ट लेकर काम करें
अधिकारियों की मानें तो पागनीस पागा रोड, एमजी रोड सहित स्मार्ट सड़कों के प्रोजेक्ट के अलावा एमओजी लाइंस का प्रोजेक्ट भी शुरू हो गया है। एक साल के अंदर भुगतान करना है। सरकार ने स्मार्ट सिटी को मिलने वाली राशि में 300 करोड़ रोके हैं। इससे नया प्रोजेक्ट शुरू करने की गुंजाइश नहीं है। दूसरी बार के टेंडर में 91 करोड़ की बोली लगाने वाली कंपनी को फाइनल नहीं किया गया।
होती आसानी... प्रोजेक्ट पूरा होता तो वाहनों को रेड सिग्नल पर नहीं रुकना पड़ता
50 चौराहों पर अत्याधुनिक स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल लगाए जाने थे। इस सिस्टम की सबसे बड़ी उपलब्धि यह होती कि हर चौराहे पर वाहन चालकों को रेड सिग्नल में रुकना नहीं पड़ता। 50 चौराहों को 9 सेक्टरों में बांटा था। इसमें एक रूट पर चलने वाले वाहन चालक को 40 किमी की स्पीड पर चलने पर सभी आगे के वाहनों को सिग्नल ग्रीन मिलते। सिग्नल ऑटोमैटिक रहते जो हर लेन के ट्रैफिक को देखकर टाइमिंग अपने हिसाब से लगातार बदलता रहता।
देश का पहला सिस्टम...150 फीट तक के वाहनों को करता रीड
इस प्रोजेक्ट के साथ ही एक एप भी तैयार करवाया जाना था, जिससे सिग्नलों की लाइव फीड लोगों को मिलती। सिग्नलों के साथ 4डी राडार भी लगाया जाना था। यह राडार 150 फीट तक खड़े वाहनों को रीड कर सकता है। इसी के आधार पर ट्रैफिक जाम की रियल टाइम फीड कंट्रोल रूम और एप पर मिलती। ऐसा दावा है कि यह राडार गूगल से भी ज्यादा सटीक है।
आरएलवीडी के साथ, नंबर प्लेट की पहचान भी होती
आरएलवीडी सिस्टम में रेड लाइट वाइलेंशन का चालान बनता है। नो-हेलमेट, ट्रिपल सवारी और रांग लेन का चालान भी ऑटोमैटिक बन जाता। सिस्टम इतना एडवांस था कि कंट्रोल रूम से बैठे-बैठे कर्मचारी किसी एक प्रकार के वाहन को प्राथमिकता देनी है तो उसकी सभी लेन ग्रीन भी कर देते।
अच्छी कंपनी नहीं मिलने के कारण प्रोजेक्ट को होल्ड करना पड़ा
यह सही है स्मार्ट सिटी को आईटीएमएस का प्रोजेक्ट लेना था हमने दो बार टेंडर भी किए, लेकिन सही तकनीक और अच्छी कंपनी नहीं मिलने के कारण प्रोजेक्ट होल्ड पर है। इस पर पुन: विचार किया जा रहा है। - अदिति गर्ग, सीईओ स्मार्ट सिटी
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