मकर संक्रांति का पर्व गुरुवार को हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। सुबह से लोग पूजा-पाठ के साथ ही दान-पुण्य कर रहे हैं और तिल-गुड़ के लड्डूओं से मुंह मीठा करवा रहे हैं। बच्चे पतंग लेकर छतों की ओर रुख कर चुके हैं। हालांकि इस संक्रांति पर बहुत कुछ बदला- बदला सा नजर आ रहा है। उड़ान से पतंग भी जिंदगी बचाने का संदेश दे रही है। बाजार से लेकर गलियों तक में मास्क पहनिए, कोरोना संक्रमण से बचिए...वॉश योर हैंड...आत्मनिर्भर भारत बनाएं, कोरोना से बचें... चीनी उत्पादों का बहिष्कार करें... इस तरह के संदेश वाली पतंगें दिखाई दे रही हैं।
इन क्षेत्रों मे पतंगबाजी का क्रेज
शहर के अनेक इलाकों में संक्रांति के एक माह पहले से ही पतंग के बाजार सज जाते थे, लेकिन इस बार रानीपुरा, काछी माेहल्ला, तिलक नगर, विजय नगर, पाटनीपुरा सहित अन्य क्षेत्रों में ही दुकानें सजी नजर आईं। यहां कोरोना से बचाव के साथ पबजी, निंजा हथौड़ी, छोटा भीम, स्पाइडर मैन, हैप्पी न्यू ईयर, राजनेताओं के चेहरे सहित कई तरह की पतंग मौजूद हैं। वहीं, इन क्षेत्रों में पतंगबाजी का भी क्रेज ज्यादा है, क्योंकि यह घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं।
पन्नी की पतंग दिख रही ज्यादा
शहर में ज्यादातर पतंग का सामान अहमदाबाद से आता है। बीते साल की तुलना में पतंग के भाव में बढ़ोतरी हुई है। यही स्थिति मांजे की भी है। रानीपुरा के थोक व्यापारी देवानंद बालचंदानी के अनुसार इस बार पन्नी की पतंग की ज्यादा मांग रही। पिछले कुछ सालों से संक्रांति पर पतंग प्रेमियों के उत्साह में कमी आ गई थी। लॉकडाउन में खूब पतंगबाजी होने से लोगों का इस ओर रुझान फिर से बढ़ गया। कोरोना की वजह से इंदौर के आसपास के क्षेत्रों में ग्राहकी नहीं रही, बावजूद इसके इस बार ग्राहकी अच्छी निकली।
मटका व पैराशूट पतंग है आकर्षण का केंद्र
काछी माेहल्ला व्यापारी मो. हूजेर ने बताया लॉकडाउन की वजह से पतंग बनाने का काम ठप था, जिससे कच्चा माल तैयार नहीं हो पाया, इसलिए बाजार में माल की कमी है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले इस बार व्यापार अच्छा है। इस बार मटका पतंग और पैराशूट पतंग आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पैराशूट पतंग को पैराशूट के कपड़े का उपयोग कर बनाया गया है, जो गुजरात से बनकर आती है। यह एक हजार रुपए में बिकती है। इसे बरेली के विशेष धागे से ही उड़ाया जाता है, जिसके एक गट्टे की कीमत करीब तीन हजार रुपए है। मटका पतंग का नीचे से आकार मटके जैसा होता है, इसलिए इसका नाम मटका पतंग है।
कानबाज पतंग को घर में बनाने से होते हैं विवाद
मुन्ना भाई पतंग वालों ने बताया शौकीन विशेषकर कानबाज पतंग को पसंद करते हैं। चील के स्वरूप में बनाया जाता है, दो कान लगाए जाते हैं। इसको त्रिवेणी कागज से बनाया जाता है। इसे सिर्फ पुराने कारीगर ही बना सकते हैं, क्योंकि इसको चील का आकार देने में काफी दिक्कतें आती हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस पतंग को घर में बनाने से परिवार में विवाद होते हैं, इसलिए इसे बाहर ही बनाते हैं। वहीं, व्यापारी गुरु कल्याणे ने बताया इस बार ग्राहकी अच्छी है। बीते 15 दिनों में पांच हजार से ज्यादा पतंग बेच चुके हैं।
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