कहानी - स्वामी विवेकानंद से लोग तरह-तरह के सवाल पूछते थे। वे कुछ सवालों के जवाब तो तुरंत दे देते थे। लेकिन, कुछ के जवाब के लिए वे कहते थे कि थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए। तब लोग समझ जाते थे कि इस प्रश्न का उत्तर किसी उदाहरण के साथ और तार्किक ढंग से दिया जाएगा।
एक दिन किसी ने स्वामीजी से पूछा, ‘आपके हिन्दू धर्म में अजीब-अजीब घटनाएं बताई गई हैं। हमने सुना है कि जब कृष्ण मुरली बजाते थे तो गायें दौड़कर उनके पास आ जाती थीं। ऐसा भी कभी होता है? गायों को क्या सुनाई देता होगा?’ उस समय वहां कई लोग मौजूद थे। सभी ने ये प्रश्न सुना और स्वामीजी का जवाब जानने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे।
श्रीकृष्ण की बात सुनकर स्वामीजी उस समय कुछ नहीं बोले। कृष्ण की मुरली पर कुछ कहने के लिए पहले तैयारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'इसके उत्तर के लिए कुछ समय प्रतीक्षा करें।'
कई दिन बीत गए लेकिन, उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। फिर एक दिन वे बहुत ही सुंदर व्याख्यान दे रहे थे। सभी को उनकी बातें बहुत अच्छी लग रही थीं। लेकिन, स्वामीजी ने व्याख्यान पूरा नहीं किया और बीच में बोलना बंद करके वहां से चल दिए।
लोगों की सुनने की प्यास अधूरी रह गई। जैसे ही स्वामीजी वहां से निकले तो लोग भी उनके पीछे-पीछे चल दिए और बोलने लगे कि ये व्याख्यान तो पूरा कर दीजिए। हम आपकी पूरी बात सुनना चाहते हैं।
विवेकानंद बोले, ‘अभी कुछ दिन पहले आप में से ही किसी ने मुझसे पूछा था कि कृष्ण की बांसुरी सुनकर गायें दौड़कर कैसे आ जाती थीं? मुझ जैसे साधारण मनुष्य की अधूरी बात सुनने के लिए आप सभी मेरे पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं तो सोचिए वे तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। उनकी मुरली में कितना प्रभाव होगा।’
सीख - विवेकानंदजी ने यहां समझाया है कि अगर वाणी में मिठास होगी तो हमारी बातों का प्रभाव भी बढ़ जाएगा। लोग हमारी बातें सुनने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे। बोली में मिठास की वजह से ही हमारा आकर्षण बढ़ता है। इसीलिए बहुत सोच-समझकर, तर्क के साथ मीणी वाणी का उपयोग करना चाहिए।
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