हमारे शरीर के पैरों एवं हाथों की अंगुलियों द्वारा विशेष प्रकारकी प्राण-ऊर्जा या शक्ति या विद्युत तरंगें या जीवनीशक्ति अथवा चेतनाशक्ति या सूक्ष्मशक्ति आप उसे जो भी कहें, वह निरन्तर निकलती रहती है एवं विभिन्न प्रकार की वैकल्पिक या सूक्ष्म चिकित्सा प्रणालियों में हाथों के संस्पर्श मात्र से नीरोगी बनाने के पीछे इसी ऊर्जा का रहस्य छुपा होता है। प्राचीन ऋषियों की मुद्रा-विज्ञान की अद्भुत शोध अनुसार पंचतत्त्वों की प्रतीक हमारी अंगुलियों को परस्पर मिलाने, दबाने, मरोडने या विशेष प्रकार की आकृति बनाने से विभिन्न प्रकार के तत्त्वों में परिवर्तन, अभिव्यक्ति, विघटन एवं प्रत्यावर्तन होने लगता है। दूसरे शब्दों में, अंगुलियों की सहायता से (बनाई जानेवाली विभिन्न मुद्राओं द्वारा) इन पंचतत्त्वों को इच्छानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है। अतः हस्त मुद्रा के सम्बन्ध में मुख्य रूप से दो बातें सदैव ध्यान रखनी चाहिए जो इस प्रकार हैं- १. किसी भी अंगुली के अग्रभाग को अंगुठे के अग्रभाग से मिलाते हैं तो उस अंगुली से सम्बन्धित तत्त्व में विकृति सम हो जाती हैं। २. यदि किसी अंगुली के अग्रभाग को अंगूठे के जड़ या मूल से मिला दें तो उस अंगुली से सम्बन्धित तत्त्व घटने लगता है।
4.वायु मुद्रा- वायु मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में वायु का संतुलन बना रहता है। आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के अंदर 84 तरह के वायु रोग होते है वे सभी वायु मुद्रा से ठीक होते हैं। वायु चंचलता की निशानी है वायु की विकृति मन की चंचलता को बढ़ाती है इसलिए मन को एक ही जगह स्थिर रखने के लिए वायु-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है माना जाता है की जब तक शुद्ध वायु शरीर को प्राप्त नहीं हो जाती तब तक हमारा शरीर रोगी रहता है। शरीर को रोगों से बचाने के लिए वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाता है। सामान्य तौर पर इस मुद्रा को कुछ देर तक बार-बार करने से वायु विकार संबंधी समस्या की गंभीरता 12 से 24 घंटे में दूर हो जाती है। वायु मुद्रा वात दोष को बैलेंस करने की मुद्रा को कहा जाता है। वायु एक संस्कृत शब्द है। इसका अर्थ हवा होता है। वायु मुद्रा हाथों से जुड़ी मुद्रा है, जो शरीर के अंदर वायु के सही प्रवाह को संचालित करने में मदद करता है। वायु मुद्रा को करने से शरीर में अत्यधिक व शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली हवा निकल जाती है।
मुद्राविधि, समय व अवधि- वज्रासन या सुखासन में बैठ जाएँ, रीढ़ की हड्डी सीधी एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें। हथेलियाँ उपर की ओर रखें। अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें। इसका अभ्यास हर रोज करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता है। वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः, दोपहर एवं सायंकाल को 8-8, 9-9 मिनट के लिए किया जा सकता है। इसका अभ्यास रोज 45 मिनट तक लगातार कई दिन करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
वायु मुद्रा के लाभ - वायु मुद्रा, शरीर में वायु तत्व का प्रतीक है, इससे अपच व गैस होने पर भोजन के तुरंत वाद वज्रासन में बैठकर 5 मिनट तक वायु मुद्रा करने से इस रोग में लाभ मिलता है। वायु मुद्रा के नियमित अभ्यास से लकवा, गठिया, साइटिका, गैस का दर्द, जोड़ों का दर्द, कमर व गर्दन तथा रीढ़ के अन्य भागों में होने वाले दर्द में चमत्कारिक लाभ होता है। वायु मुद्रा के अभ्यास से शरीर में वायु के असंतुलन से होने वाले समस्त रोगों में फायदा होता है। इस मुद्रा को करने से कम्पवात, रेंगने वाला दर्द, दस्त, कब्ज, एसिडिटी एवं पेट सम्बन्धी अन्य विकार समाप्त होने में लाभ होता है। यह मुद्रा, शरीर के अंदर हवा की गति को नियंत्रित करता है। वायु मुद्रा के असंतुलन से संबंधित समस्याओं को वायु मुद्रा का अभ्यास करके आसानी से दूर किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति इस प्राचीन योगाभ्यास को अपने दिन प्रतिदिन के कार्यक्रम में शामिल करके स्वस्थ या गैस्ट्रिक विकारों से मुक्त हो सकता है। प्रतिरोधक शक्ति का निर्माण करता है। मैडिटेशन या प्राणायाम में वायु मुद्रा का अभ्यास करने से खुशी और शांति मिलती है। जब इसका नियमित रूप से अभ्यास किया जाता है, तो यह मस्तिष्क को तेज और यादाश बढ़ता है। वायु मुद्रा के अभ्यास से ध्यान की अवस्था में मन की चंचलता समाप्त होकर मन एकाग्र होता है एवं सुषुम्ना नाड़ी में प्राणवायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण आदि आध्यात्मिक लाभ भी होता है। अतः यह सभी वात रोगों में बहुत ही लाभकारी। कमर दर्द, सरवाईकल पीड़ा, गठिया, घुटनों का दर्द, जोड़ों का दर्द, एड़ी का दर्द आदिसभी पीड़ाओं में वायु मुद्रा लगाने से कुपित वायु शान्त होती है और फलस्वरूप दर्द में आराम मिलता है। अधिक वायु जोड़ों में द्रव्य को सुखा देती है। जब वायु घुटनों के जोड़ों में घुस जाती है तो दर्द होता है। इसके लिए वायु मुद्रा जोड़ों की पीड़ा में लाभदायक है। गर्दन के बाएं भाग में दर्द व जकड़न होने से बायें हाथ की कलाई इसी मुद्रा में क्लाक वाईज व एंटी क्लाक वाईज घुमाने से शीघ्र ही चमत्कारी लाभ होता है, दाएं भाग की पीड़ा में दाएं हाथ की कलाई घुमाने से लाभ होता है। बस में यात्रा करते समय यह मुद्रा करें तो उल्टी की शिकायत नहीं रहती। हाथों और पैरों का कंपन, अंगों का सुन्न होना, लकवा, ह्रदय की पीड़ाआदि में 24 घंटे के भीतर ही इस मुद्रा के प्रयोग से लाभ मिलना आरम्भ हो जाता है। वायु मुद्रा के साथ-साथ दिन में तीन लीटर पानी पीने से वात रोग, गठिया शीघ्र दूर होता है। पानी को उबालकर हल्का गर्म होने पर पीएं।
सावधानियां - वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है, अतः इसे अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नहीं करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है। पीड़ा के शान्त होते ही इस मुद्रा को खोल दें। वायु रोगों को दूर करने के लिए गैस व यूरिक एसिड उत्पन्न करने वाले भोज्य पदार्थों का प्रयोग कुछ दिनों के लिए छोड़ दें जैसे राजमा, दालें, मटर, गोभी, पनीर, सोया इत्यादि। दालों का उपयोग करना भी हो तो मूंग साबुत का उपयोग केवल दिन में ही करना चाहिए
डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, मो.9826091247
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