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नया विजन:इंदौर के ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए अब केबल कार का प्रस्ताव...अभी सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों में इस्तेमाल

 

प्रतीकात्मक फोटो
  • दिल्ली-गाजियाबाद में सिर्फ योजना बन कर रह गई केबल कार
  • डर सिर्फ ये पिछले प्रोजेक्ट्स की तरह यह भी शिगूफा न साबित हो

नगर निगम ने बुधवार को मुख्यमंत्री के समक्ष पांच साल का एक विजन डॉक्यूूमेंट प्रस्तुत किया। इसमें शहर के ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए केबल कार का प्रस्ताव रखा गया है, जिसे मुख्यमंत्री ने हाथोंहाथ स्वीकृत भी कर दिया। योजना है कि केबल कार का नेटवर्क मेट्रो और बीआरटीएस के फीडर के रूप में काम करेगा। निगम को उम्मीद है कि इसमें जगह कम लगेगी और लागत भी कम आएगी। हालांकि सामान्यतौर पर केबल कार पहाड़ी इलाकों में उपयोगी होती है।

अभी देश के इन शहरों में है केबल कार- गुलमर्ग-कश्मीर, औली-उत्तराखंड, गंगटोक-सिक्किम, रायगढ़-महाराष्ट्र, दार्जिलिंग-पं बंगाल, पटनीटॉप-जम्मू-कश्मीर एवं मनाली-हिमाचल।

क्या है केबल कार
एरियल रोप ट्रांजिट (केबल कार या रोप वे) ट्रांसपोर्ट तकनीक का आधुनिक रूप है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दो साल पहले दिल्ली में धौलाकुंआ से मानेसर रोप वे शुरू करने की योजना बनाई थी। कोलंबिया ने 2004 में मेडेलिन में मेट्रो केबल सिस्टम की शुरुआत की थी। केबल कार का सबसे उन्नत सिस्टम यहीं का मानते हैं। रियो-डी-जेनेरियाे, ताइवान, हांगकांग और लंदन में भी इनका उपयोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट में हो रहा है।

भीड़ भरे स्थानों के लिए बेहतर विकल्प
शहर के भीड़ भरे इलाकों में केबल कार ट्रांसपोर्ट का बेहतर विकल्प हो सकता है। मुख्यमंत्री से स्वीकृति मिलने के साथ विस्तृत प्रपोजल तैयार किया जा रहा है।
-प्रतिभा पाल, निगमायुक्त

केबल कार का उपयोग पहाड़ों में ज्यादा सफल है क्योंकि वहां पहाड़ों में घूमकर जाने में समय ज्यादा लगता है। इनकी यात्री क्षमता सीमित होती है। प्रति घंटा ले जाने वाले यात्रियों का अनुपात दूसरे विकल्पों के मुकाबले कम होता है। इंदौर जैसे शहर में ट्रीप लेंथ कम है। इसलिए इनमें बस अधिक उपयोगी हो सकती है। बस सिस्टम को मांग के अनुसार घटा-बढ़ा सकते हैं।
-संदीप गांधी, अर्बन ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट (एक्स फेलो आईआईटी दिल्ली)

ट्रैफिक सुधार के नाम पर हर बार सिर्फ योजनाएं
मोनो रेल या मेग्नेटिक ट्रेन

1999 में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय ने मेग्नेटिक ट्रेन का प्रस्ताव रखा। कंसलटेंट ईरान की जिस कंपनी से रेल लाने वाले थे, उसमें फ्रॉड का पता चला। कंसलटेंट पर जांच तक बैठाई।

पश्चिम रिंग रोड 50 साल से प्लान में
1971 के मास्टर प्लान में प्रस्तावित पश्चिमी रिंग रोड पर तमाम कवायद हुई, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हुई। जबकि पूर्वी क्षेत्र में रिंग रोड के बार रिंग रोड-2 (आरई-2) और फिर बायपास भी बना।

BRTS :11 साल बाद भी विस्तार नहीं
बीआरटीएस के पूरे शहर में विस्तार की योजना थी। साल 2013 में शुरू हुए 11.5 किमी का बीआरटीएस का 7 साल बाद भी विस्तार नहीं हो पाया। बीआरटीएस की कनेक्टिंग सड़कें भी उपेक्षित ही हैं।

ग्रेड सेपरेटर एलिवेटेड कॉरिडाेर
2000 में पलासिया चौराहे पर तीन भुजा वाला ग्रेड सेपरेटर, व्हाइट चर्च, मधुमिलन, भंवरकुआं, महूनाका पर फ्लायओवर व बीआरटीएस पर एलिवेटेड कॉरिडोर प्रस्तावित था। कुछ नहीं बना।

सुपर कॉरिडोर से कनेक्टिविटी
साल 2012 में सुपर कॉरिडोर बनाया तो घोषणा हुई नया शहर बसेगा। इंदौर के विकास का टेक ऑफ कहा गया। अब भी एयरपोर्ट से विजय नगर जाना हो तो टैक्सी या रिक्शा ही है। सिटी बस कनेक्टिविटी नहीं।

मेट्रो : 5.4 किमी पर ही काम शुरू
साल 2012 में मेट्रो शुरू करने की बात की थी। 2020 में मेट्रो के दो से तीन पीलर भी पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं। 31 किमी के प्रोजेक्ट में से भी मात्र 5.7 किमी का ट्रेक ही अभी तैयार हो रहा है।

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