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योग- हस्त मुद्राएं

 


हमारा स्वास्थ्य ही हमारी लौकिक व पारलौकिक उन्नति के महल बुनियाद है । जब हम शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं तभी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। कोई अस्वस्थ व्यक्ति किसी भी पुरुषार्थ की समुचित उपलब्धि नहीं कर सकता। कहा है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’, धर्म का प्रथम साधन शरीर है। इसी तरह चारों पुरुषार्थों का प्रथम साधन शरीर ही है। यही वजह है कि स्वस्थ रहने के लिए तरह-तरह के उपाय मनुष्य द्वारा अनादि काल से उपयोग में लाये जा रहे हैं। औषधि रहित उपचार की पद्धति संभवतः सबसे प्राचीन व नैसर्गिक है क्योंकि औषधियों की खोज स्वाभाविक रूप से मनुष्य के बौद्धिक विकास के बाद ही प्रारंभ हुई।
पं. मदनलालजी ने अपनी भोग रोग योग पुस्तक में कहा है कि वर्तमान में भी योगासन व प्राणायाम आदि से रोगों का उपचार सबसे सरल, सस्ता और दुष्प्रभावमुक्त माना जाता है, क्योंकि पर्यावरण के प्रदूषित हो जाने की वजह से दवा के रूप में इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटियां भी अपनी नैसर्गिक गुणवत्ता खोती जा रहीं हैं। मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ हुई बेतहाशा छेड़छाड़ की वजह से बढ़ते प्रदूषण के कारण केवल मनुष्य के स्वास्थ्य का संतुलन ही नहीं बिगड़ा है बल्कि पृथ्वी पर मौजूद सभी वस्तुओं की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। और सभी जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ है। अतः जड़ी-बूटियों की सहायता से किये जाने वाले रोगोपचार भी पहले की तरह प्रभावी नहीं होते। इसलिए योग शास्त्रों में निर्दिष्ट आसनों व प्राणायाम आदि के द्वारा आरोग्य लाभ की विधि ही सर्वोत्कृष्ट है। 
हमारे स्वास्थ्य को सुधारने में हस्त-मुद्राओं का जो विशेष महत्व है, उसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। हमारे शरीर में बहुत सारी क्रियाएं होती हैं और बहुत सारे शक्ति केन्द्र स्थित हैं जिनको जगाने के लिए अलग-अलग मुद्राएं हैं। यहां हम उंगलियों से बनने वाली मुद्राओं और उनसे होने वाले लाभों के विषय में बताते हैं जिससे हम इनका प्रयोग कर आरोक्य प्राप्त कर सकें।
ज्ञान मुद्रा
  ज्ञान मुद्रा कैसे करें- तर्जनी उंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाएं और हल्का दबाव दें, शेष तीनों अंगुलियां सीधी रखें, ये बन गई ज्ञान मुद्रा। इस मुद्रा का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं और मेरुदण्ड सीधा रखें। हाथों को जंघा पर स्थित कर आँखें बंद कर लें। सांसें सामान्य गति से लें। चित्त को अपने ललाट के केन्द्र पर स्थित करें।
यह मुद्रा बनाने के लिए जब अंगुलियों को चित्र में बताये तरीके से मिलाते हैं तो शरीर में वायु और अग्नि तत्व एक क्रम में प्रवाहित होने लगते हैं। इस प्रकार हमारे अंदर तेजी से एक विशिष्ट ऊर्जा पैदा होने लगती है। इस मुद्रा को बत्तीस से अड़तालिस मिनट या सोलह-सोलह मिनट के चरणों में बांटकर भी किया जा सकता है। इसका अभ्यास आप बिस्तर पर बैठे, खड़े या लेटे हुए भी कर सकते हैं.
लाभ- यह मुद्रा अनिद्रा और कमजोर याददाश्त में विशेष उपयोगी है। जो लोग अनिद्रा या सिर दर्द से परेशान रहते हैं, जिनकी स्मरण शक्ति कमजोर है, मन में एकाग्रता और प्रसन्नता नहीं रहती, जिनको जिद, क्रोध और उतावलापन रहता है तो उन्हें ज्ञान मुद्रा का अभ्यास अत्यंत लाभकारी है। इसके नियमित प्रयोग से आप बड़ी आसानी से उक्त रोगों से छुटकारा मिल सकता है। 

डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

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