जिस प्रकार आसन व प्राणायाम आदि के नियमित व समुचित अभ्यास से साधकों को आरोग्य लाभ के साथ आभ्यांतरिक उन्नति में भी सहायता मिलती है, उसी प्रकार हस्त मुद्राएं भी उनके शरीर व मन के अंदर तरह-तरह के रोगों से मुक्त होने और उनसे बचने की क्षमता प्रदान करती हैं। हस्त मुद्राएं हमारे शरीर व मन को नीरोग ही नहीं रखतीं बल्कि हमारे भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती हैं। हमारे प्राचीन शास्त्रों में इस बात की पुष्टि भी अनेक ढंग से की गयी है कि हस्त मुद्राएं शरीर के अन्तरंग सूक्ष्म स्पन्दनों को प्रभावित करने वाले उन केन्द्रों को सक्रिय करने वाली विशेष प्रकार की हस्त भंगिमाएं हैं जो हमारी हथेलियों व अंगुलियों पर स्थित होतीं हैं। इनसे हमें अपने अन्दर की उस सुषुप्त चैतन्य ऊर्जा को जगाने में सहायता मिलती जो हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
आकाश मुद्रा योग- आयुर्वेद के अनुसार सेहत से जुड़ी कोई भी समस्या, पंचतत्व एवं वात, पित्त व कफ में असंतुलन के कारण पैदा होती है। माइग्रेन भी उन्हीं में से एक समस्या है जो असाधारण सिरदर्द के साथ ही सेहत की अन्य समस्याओं को भी बढ़ाता है। आयुर्वेद कहता है कि माइग्रेन की समस्या, शरीर में आकाश तत्व की कमी के कारण होती है। अगर इसे संतुलित किया जाए तो माइग्रेन से निजात पाई जा सकती है। आकाश मुद्रा योग की वह मुद्रा है, शरीर के पांच तत्वों में से आकाश तत्व को बढ़ाती है और आकाश तत्व की कमी से होने वाली सेहत समस्याओं को दूर करती है। आकाश मुद्रा को करते समय धीरज रखना भी बहुत जरूरी है। इससे ही कोई भी व्यक्ति अपनी मनचाही मंजिल को पा सकता है।
विधि - आकाश मुद्रा के लिए सबसे पहले पद्मासन, सुखासन अथवा वज्रासन में बैठ जाएं। अब दोनों हाथों की मध्यमा अर्थात् बीचकी सबसे बड़ी उंगली के अग्रभाग यानि पोर को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं, शेष तीनों उंगलियाँ सीधी रहें। ध्यान लगाकर किसी आसन में बैठ जाएं, अपनी जीभ को मुंह के अंदर मोड़कर तालू को छुआएं फिर सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर मोडें तथा आसन को पूरा करें। वज्रासन में आकाश मुद्रा का अभ्यास सबसे ज्यादा ताकतवर होता है। ध्यान के दूसरे आसनों में आकाश मुद्रा का इस्तेमाल किया जा सकता है। जाप करने वाली माला के मोतियों को सुख-समृद्धि और शांति के लिए बीच की उंगली से आगे की ओर सरकाते हैं।
अवधि- आकाश मुद्रा का अभ्यास एक बैठक में 10 से 16 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन को 3 बार में करके लगभग 45 से 48 मिनट का अभ्यास किया जा सकता है।
लाभ - आकाश मुद्रा हृदय रोग को दूर करने वाली सबसे शक्तिशाली मुद्रा है। माइग्रेन या साइनसाइटिस के दर्द में कमी, सीने के दर्द में लाभ, उच्च रक्त चाप में फायदेमंद, शरीर में भारीपन होने पर लाभदायक, शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्ति, सकारात्मक विचारों का संचार होता है। आकाश मुद्रा का अभ्यास करने वाले को चेतना प्राप्त होती है। यह मन को शांति देता है। इसको करने से आज्ञा चक्र में ध्यान लगता है। इसका अभ्यास करने से हड्डियां मजबूत बन जाती हैं। दिल के सारे रोगों को दूर करने में मदद मिलती है, कान के रोग जैसे कान बहना, कान मे दर्द आदि दूर करने में सहायक है, सुनने की शक्ति तेज होती है, शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है,
सावधानी - वात प्रकृति वालों को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए। इससे गैस, त्वचा में सूखापन, गठिया की समस्या हो सकती है। भोजन करते समय एवं चलते फिरते यह मुद्रा न करें। हाथों को सीधा रखें । लाभ हो जाने तक ही करें । आकाश मुद्रा का अभ्यास चलते-चलते नहीं करना चाहिए, यह मुद्रा बनाकर कभी भी हाथों को उल्टा नहीं करते हैं, इस मुद्रा में हाथ हमेशा आकाश की ओर ही खुलने चाहिए। अच्छा हो इसे पहले किसी योग विशेषज्ञ से सीख लें।
डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, मो.9826091247
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