- पिछले साल के पहले छह महीनों में सोशल मीडिया से कंटेंट हटाने की मांग 254 प्रतिशत बढ़ी
युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने एक बार कहा था कि वे बोलने की आजादी का सम्मान करते हैं लेकिन बोलने के बाद आजादी की गारंटी नहीं दे सकते हैं। ऐसा लगता है, भारत सरकार ने इस सिद्धांत को एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भारत में बोलने से पहले ही लोगों की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है। व्यापक विरोध को दबाने के लिए सरकार इंटरनेट सेवा बंद कर देती है। 2019 में कश्मीर में 213 दिन तक इंटरनेट बंद रहा। वहां मोबाइल कनेक्शन धीमी टू जी सेवा तक सीमित हैं। राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बीच मोबाइल नेटवर्क बंद कर दिए गए हैं। एक नई रिपोर्ट का अनुमान है कि 2020 में 8927 घंटे तक इंटरनेट बंद रहने के कारण अर्थव्यवस्था को बीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है।
सरकार सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को भी निशाना बना रही है। इंटरनेट पर “राष्ट्रविरोधी कंटेंट” की तलाश के लिए पुलिस द्वारा साइबर वालंटियर्स की सेवाएं लेने की पहल की गई है। टि्वटर ने बताया है कि 2020 के पहले छह महीनों के दौरान सरकार की ओर से कंटेंट हटाने की मांग 254% बढ़ गई। 2700 से अधिक कंटेंट हटाए गए। 1 फरवरी को सरकार के आग्रह पर 250 अकाउंट ब्लॉक कर दिए गए थे। कड़े विरोध के बाद इनकी बहाली हुई थी।
संवेदनशील मसलों पर खुली बहस रोकने के लिए विदेश मंत्रालय ने अकादमिक सम्मेलनों के आयोजनों के लिए नए नियम लागू किए हैं। सरकारी संस्थाओं और विश्वविद्यालयों को भारत के आंतरिक मामलों से संबंधित किसी विषय पर ऑनलाइन कांफ्रेंस या सेमीनार के लिए मंत्रालय की पूर्व अनुमति लेना होगी। कुछ राज्य सरकारों ने भी सख्त कदम उठाए है। उत्तराखंड में पुलिस ने कहा है कि इंटरनेट पर “राष्ट्र विरोधी कंटेंट” पोस्ट करने वाले को पासपोर्ट नहीं दिया जाएगा। इससे पहले बिहार सरकार विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले लोगों को सरकारी नौकरी या ठेका नहीं देने की घोषणा कर चुकी है।
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