भारत में नौकरी की चाह रखने वाली महिलाओं के लिए आने वाला साल सौगात लेकर आ रहा है। कोरोना महामारी के बाद टैलेंट मैनेजर्स की सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। आईटी, बैंकिंग, इंश्योरेंस और हेल्थकेयर सेक्टर की नई नौकरियों में महिलाओं की भर्ती पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है।
फिलहाल भारत में व्हाइट कॉलर यानी ऑफिस में काम करने वाली महिलाएं और ब्लू कॉलर यानी फैक्ट्रियों में मेहनत-मजदूरी करने वाली महज 12% महिलाएं ही हैं, लेकिन देश की प्रमुख कंपनियां अपनी नई भर्तियों में 40% तक महिलाओं को नौकरी देने का मन बना चुकी हैं। बजट 2021-22 में भी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इससे कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ने के आसार हैं।
वर्क फ्रॉम होम में महिलाओं ने अपने काम से बदल दी कंपनियों की सोच
एक्सिस बैंक, इंफोसिस, टाटा स्टील, वेदांता, आरपीजी ग्रुप, डालमिया सीमेंट और टाटा केमिकल्स ने फीमेल टैलेंट की तलाश तेज कर दी है। एक्सिस बैंक इस साल 2 हजार कैंपस प्लेसमेंट करने वाला है जिसमें से 40% महिलाओं की भर्ती का लक्ष्य रखा गया है। इंफोसिस भी इस साल 17 हजार फ्रेश ग्रेजुएट्स की भर्ती करने की योजना बना रहा है इसमें भी लैंगिग समानता का ध्यान रखा जाएगा।
डालमिया सीमेंट भी वीमेंस कॉलेज और यूनिवर्सिटी से प्लेसमेंट के लिए खास प्रोग्राम चलाएगा। डालमिया ग्रुप के एचआर हेड अजीत मेनन ने कहा कि हमने सभी सर्च फर्म को निर्देश दिए हैं कि हमारी प्राथमिकता महिलाएं हैं। कंपनी अगले दो साल में 20% महिला वर्कफोर्स को बढ़ाकर दोगुना करना चाहती है।
टाटा स्टील भी इस साल अपनी मैनेजमेंट भर्तियों में 50% और इंजीनियरिंग भर्तियों में 40% महिलाओं को हायर करेगा। टाटा केमिकल्स ने फ्रेश ग्रेजुएट्स में 40% महिलाओं की भर्ती की है। कंपनी के सीएचआरओ आर नंदा ने कहा कि हम महिला इंजीनियरों को नाइट शिफ्ट में भी रख रहे हैं जिससे उन्हें लीडरशिप रोल के लिए तैयार किया जा सके।
कंसल्टिंग फर्म अवतार ग्रुप के फाउंडर-डायरेक्टर सौंदर्य राजेश कहते हैं, 'कोरोनाकाल में महिलाओं ने जिस तरह से काम कर दिखाया, उससे कंपनियों की पुरानी धारणाएं टूट गईं। पहले ऐसी धारणा थी कि महिलाएं पारिवारिक कारणों से बहुत छुट्टियां लेती हैं, लेकिन वर्क फ्रॉम होम में जब उन्हें घर से काम करने का मौका मिला तो परफॉर्मेंस कई गुना बढ़ गई। अब कंपनियों की मानसिकता बदल गई है, वो अधिक महिलाओं को नौकरी पर रखने की मांग कर रही हैं।'
कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में चीन और रूस से आगे निकली भारतीय महिलाएं
इन-गवर्न रिसर्च फर्म के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीराम सुब्रमण्यन कहते हैं, '2014 के बाद से कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। तब सेबी ने कहा था कि बोर्ड में कम से कम एक महिला रखें। ताकि देश में बिजनेस वुमन बढ़ें। हालांकि इस दिशा में बेहतर काम तब हुआ जब कोटक कमेटी ने 2018 में कॉर्पोरेट और सरकार दोनों को सलाह दी। यह एशिया के सबसे अमीर बैंकर्स का एक पैनल था, जिससे महिलाओं की हालत सुधारने को लेकर सुझाव मांगे गए थे।'
MSCI ACWI इंडेक्स की नई स्टडी में पाया गया है कि भारत की प्रमुख कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी 17% तक पहुंच गई है। भारत इस मामले में मैक्सिको, रूस, चीन और ब्राजील से आगे निकल गया है। हालांकि स्टडी में शामिल किए गए थाईलैंड, अमेरिका, साउथ अफ्रीका और यूके से अभी भारत पीछे है। यह स्टडी भारत की 86 टॉप कंपनियों पर की गई थी।
स्टडी में कहा गया है कि सेबी में रजिस्टर कंपनियों में 76% ऐसी हैं जिनके बोर्ड में सिर्फ एक या दो महिलाएं ही हैं। जबकि साउथ अफ्रीका, अमेरिका और यूके की 66-85% कंपनियों के बोर्ड में तीन से ज्यादा महिलाएं हैं। भारत में 6% कंपनियां ऐसी भी हैं, जिनके बोर्ड में एक भी महिला नहीं है। लेकिन चीन की 29%, ब्राजील की 28% और रूस की 25% कंपनियां ऐसी हैं जिनमें एक भी महिला बोर्ड में शामिल नहीं हैं। इसलिए औसत रिकॉर्ड में भारत की स्थिति इन देशों से बेहतर है।
अब भी महिलाओं को कंपनी का CEO बनाने में घबराती हैं भारतीय कंपनियां?
कंपनी बोर्ड में भले महिलाओं की हालत सुधर रही हो, लेकिन असल मायनों में कंपनी को चलाने वाले पद चीफ एग्जिक्यूटिव अधिकारी (CEO) पर महिलाओं की भागीदारी स्टडी में शामिल देशों में सबसे कम है। महज तीन फीसदी ही ऐसी कंपनियां हैं जिनमें महिला CEO हैं। सिंगापुर और थाईलैंड में 14% महिला CEO हैं।
गौरी चड्ढा एंड एसोसिएट्स की फाउंडर गौरी चड्ढा कहती हैं, 'अब कंपनियों की कमान महिलाओं को सौंपने का समय आ गया है। किसी कंपनी की CEO अगर महिला होती है तो वहां की महिला कर्मचारियों के मन में उस पद तक पहुंचने की लालसा बढ़ती है।
MSCI इंडेक्स की ही एक दूसरी स्टडी में अनुमान लगाया कि 2030 तक हर साल कंपनियों में महिलाओं की भागीदारी 2.8% की दर से बढ़ेगी। अगर ऐसा होता है तो भारत में नौकरी में महिलाओं की हिस्सेदारी 2030 तक करीब 40% तक पहुंच जाएगी।
महिलाओं को नाइट शिफ्ट की छूट
वित्त मंत्री ने सभी श्रेणी के कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन तय करने की बात भी कही। वित्त मंत्री ने बजट 2021-22 में कहा कि महिलाओं को भी पर्याप्त सुरक्षा के साथ नाइट शिफ्ट में काम करने की छूट मिलेगी। अब ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि ऐसा करने से देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ जाएगी।
जेंडर बजट में 6.8% की बढ़ोतरी
2005 में ही जेंडर बजट की शुरुआत की गई थी ताकि जारी किए गए बजट में महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाएं नजरअंदाज न हो जाएं। इस साल जेंडर बजट में 6.8% की बढ़ोतरी हुई है। साल 2021 में इसे पिछले साल के 1.43 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1.53 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है।
महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली स्कीम्स दो तरह की होती हैं-
- पहली जिनमें 100% बजट का निर्धारण महिलाओं से जुड़ी योजनाओं के लिए होता है।
- दूसरी जिनमें कम से कम 30% बजट का निर्धारण महिलाओं के लिए होता है।
ऐसी स्कीम जिनमें 100% बजट महिलाओं के लिए निर्धारित होता है, उन योजनाओं के बजट में 13% की गिरावट आई है। पहले 28.5 करोड़ रुपए था, अब 25.2 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पेंशन योजना में कोई खास बदलाव नहीं किया गया है। महिलाओं के लिए 100% आवंटन वाली योजनाओं का तीन-चौथाई इन्हीं दो योजनाओं को आवंटित किया जाता है।
महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली ऐसी योजनाओं जिनमें कम से कम 30% हिस्सा महिलाओं के लिए तय होता है, उनका बजट 1.15 लाख करोड़ से बढ़ाकर 1.28 लाख करोड़ कर दिया गया है। ऐसी योजनाओं में कुल 11.46% की बढ़ोतरी की गई है। मुफ्त रसोई गैस की स्कीम उज्जवला योजना को एक करोड़ और लाभार्थियों को देने की घोषणा की गई है। जम्मू-कश्मीर में एक गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट की शुरुआत भी की जाएगी। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना को 220 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। पिछले साल भी इतना ही था। इस योजना के तहत सरकार बेटियों की उच्च शिक्षा में मदद देती है। यह योजना उन राज्यों व जिलों पर फोकस है, जहां बालिकाओं का लिंगानुपात कम है।
निर्भया फंड समेत बजट की कुछ बातें चिंताजनक भी
बजट में केंद्र से फंड पाने वाली लड़कियों के लिए 'माध्यमिक शिक्षा की राष्ट्रीय प्रोत्साहन योजना' में कटौती करते हुए महज एक करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जो चालू वित्त वर्ष में 110 करोड़ रुपए था। वहीं निर्भया फंड में भी भारी कमी की गई है। पिछले बजट में दिए गए 855 करोड़ रुपए के मुकाबले इस बार सिर्फ 10 करोड़ रुपए इस फंड को दिए गए हैं। वित्त मंत्री ने सभी श्रेणी के कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन तय करने की बात भी कही।
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