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यात्री को मिलेगा 64 लाख मुआवजा:बस पलटने से कट गया था हाथ; बीमा कंपनी-बस मालिक सालाना कमाई का 16 गुना हर्जाना देंगे, उस राशि पर 9 फीसदी ब्याज भी

 

फाइल फोटो

बस पलटने से यात्री का हाथ कट गया था, अब उसे 64 लाख रुपए का मुआवजा मिलेगा। ट्रैवलर्स वाले व बीमा कंपनी को आधी-आधी राशि देनी होगी। मामला 30 अप्रैल 2014 का है। यात्री ने स्थायी विकलांगता के कारण सालाना कमाई का 16 गुना मुआवजा मांगा था। बीमा कंपनी मामले को टालती रही। अब बीमा कंपनी और बस स्वामी को मिलकर हर्जाना और हर्जाने की राशि पर 9 फीसदी ब्याज भी चुकाना होगा।

ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी विवेक सक्सेना ने दोनों पक्षों को सुनने व दस्तावेजों की जांच के बाद पाया कि दुर्घटना में यात्री को स्थायी विकलांगता आईं है, उसका हाथ तक काटना पड़ा है। ऐसे में दावा मंजूर कर बीमा कंपनी व बस स्वामी को संयुक्त या अलग-अलग कुल 64 लाख 8 हजार 385 रुपए यात्री राकेश को हर्जाने के तौर पर देने के आदेश दिए हैं। इसमें से भी 15 लाख रुपए तत्काल देने को कहा गया है, जो राकेश ने इलाज में खर्च होने बताए थे।

हादसे में राकेश का कंधे से एक हाथ काटना पड़ा था

फरियादी राकेश गोगवानी निवासी पार्श्वनाथ काॅलोनी, इंदौर की दवा बाजार में नितिशा फाॅर्मा के नाम से थोक दुकान है। 30 अप्रैल 2014 को रॉयल स्टार ट्रैवलर्स की बस नंबर MP 41-MF-0742 से इंदौर से पूना जा रहा था। महाराष्ट्र में पूना रोड पर अहमदनगर में बस के ड्रायवर मोहम्मद इसरार ने तेज गति से बस को चलाया, जिससे वह पलट गई। इस घटना में राकेश सहित कई लोग घायल हो गए थे। हादसे में राकेश का कंधे से एक हाथ काटना पड़ा था।

इसके बाद उसने चलने में विकलांगता व हाथ कटने का हवाला देकर रॉयल कैरियर एंड कूरियर प्रालि (जो कि रॉयल स्टार ट्रैवर्ल्स की स्वामी है) व बस का बीमा करने वाली नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में कुल 1 करोड़ 15 लाख 28 हजार रुपए का मुआवजा दिलाने की मांग करते हुए दावा पेश किया था।

सालाना कमाई का मांगा 16 गुना मुआवजा
घायल का कहना था कि वह घटना के वक्त करीब चार लाख रुपए सालाना कमाता था, इस हिसाब से उसे स्थायी विकलांगता आने के कारण सालाना कमाई का 16 गुना मुआवजा दिलाया जाए। मामले की सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी ने यह कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया कि ड्रायवर के पास लायसेंस नहीं था और गाड़ी का फिटेनस खत्म हो गया था किंतु वह कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाईं।

बीमा कंपनी ने किया निपटारे में विलंब, ब्याज भी चुकाना पड़ेगा

खास बात यह है कि बीमा कंपनी इस केस को खींचने में लगी रही। वर्ष 2017 से तीन साल तक उसने सबूत के लिए वक्त मांगा, इसके बाद काफी समय तक आखिरी बहस से भी बचती रही। नतीजतन फैसले में देरी हुई। पीठासीन अधिकारी ने फैसले में इसका उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2015 में दावा लगाने की तारीख से बीमा कंपनी 64 लाख रुपए से अधिक की हर्जाने की राशि पर 9 फीसदी ब्याज भी चुकाएं।

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