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फेक न्यूज पर सख्ती:कोरोना के कारण आई गलत सूचनाओं की बाढ़, 8 महीनों में 17 देशों में फेक न्यूज के खिलाफ कानून बने

 

  • सरकारों को आलोचकों पर नकेल कसने में कोरोना का बहाना मिला

हाल ही में मिस्र में एक पत्रकार मोहम्मद मोनीर की कोविड से अस्पताल में मौत हो गई। पिछले महीने उन्हें झूठी खबरें फैलाने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने अपने लेख में मिस्र सरकार के महामारी से निपटने के तरीके पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। कोविड -19 ने वास्तव में दुनिया में गलत सूचनाओं की बाढ़ ला दी है। लेकिन इसने दुनिया भर की कई सरकारों को अपने आलोचकों पर नकेल कसने का बहाना भी दिया है।

इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट के अनुसार, पिछले साल मार्च और अक्टूबर के बीच 17 देशों ने ‘ऑनलाइन गलत सूचनाओं’ या ‘गलत जानकारी’ के खिलाफ नए कानून पारित किए हैं। नॉटिंघम विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ मार्को मिलानो कहते हैं कि सरकारें हमेशा से अभिव्यक्ति को रेगुलेट करती आई हैं। गलत सूचनाओं का प्रसार एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। जानबूझकर झूठ फैलाने वाले लोगों को पकड़ने के लिए फर्जी खबरों के खिलाफ कानून बनाना एक बात है। लेकिन इसके बहाने अस्पष्ट नियमों को लागू किया जा रहा है। जो वास्तव में प्रेस और फ्री स्पीच को रोकने के उद्देश्य से है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। कुछ सरकारों ने नए कानूनों के लिए महामारी का हवाला दिया है।

रूस में मार्च 2020 में बने नए कानून के अनुसार अगर कोई कोविड सहित सार्वजनिक सुरक्षा के मामलों पर जानबूझकर गलत जानकारी फैलाने का दोषी पाया जाता है तो उस पर 1 लाख 40 हजार डाॅलर का जुर्माना होगा। रूस में पहले ही लोगों पर ‘गलत जानकारी’ फैलाने के लिए जुर्माना लगाया जाता रहा है, लेकिन नए नियम आपराधिक संहिता में आते हैं। इसका अर्थ है कि सजा में जेल भी शामिल हो सकती है। एक वेबसाइट के संपादक पर कोविड-19 के संभावित पीड़ितों के लिए एक हजार कब्र खोदने की रिपोर्टिंग पर 810 डॉलर का जुर्माना लगाया गया। जिम्बाब्वे में लॉकडाउन लागू करने के दौरान पुलिस हिंसा के बारे में ट्वीट करने पर जनवरी में एक पत्रकार को गिरफ्तार किया गया। दक्षिण अफ्रीका में भी इस बारे में मार्च 2020 में एक अस्थायी कानून पेश किया गया था। हांगकांग में भी 2019 में विरोध प्रदर्शनों के बाद फेक न्यूज के प्रसार को रोकने के लिए कानून बनाने की तैयारी है।

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