- काले पत्थर से नहीं चूना पत्थर से बनी थी गुंबद
आजाद नगर स्थित शाहनवाज खान का मकबरा। काला ताजमहल के नाम से जाना जाता है। विशेष केमिकल से 2 साल की सफाई के बाद इसके गुंबद सफेद दिखने लगे हैं। बाकी मकबरा भी अपने मूल स्वरूप में लौट आया है। पुरातत्वविद् भी इसे ही मकबरे का मूल स्वरूप बताते हैं।
मकबरे का निर्माण मुगल फौज में सेनापति रहे शाहनवाज खान की याद में 400 साल पहले हुआ था। इसमें ताजमहल की झलक मिलती है। इसे इंडाे-इस्लामिक हस्तकला से बनाया है। इसके निचले हिस्से को काले पत्थर से बनाया था इसलिए इसे काला ताजमहल कहा गया। ऊपर चूना पत्थर से 5 गुंबद बनाए हैं। इसके संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल ने इसकी सफाई कराई है। इसके बाद यह मूल स्वरूप में नजर आने लगा है।
जियोमेट्रिक डिजाइन से हुई है नक्काशी
गुंबद के अंदर नक्काशी की गई है। यह जियोमेट्रिक डिजाइन की नक्काशी है। यानी इसमें त्रिभुज, चर्तुभुज, वृत्त और ऐसे ही जियोमेट्रिक डिजाइन बनाकर फिर नक्काशी की गई है। इसकी डिजाइन आगरा के ताजमहल से अलग है। हालांकि मुगल काल में अधिकांश मकबरे इसी तरह बनाए गए हैं।
यह है मकबरे का इतिहास
मकबरे का निर्माण ताजमहल से पहले 1622 से 1623 ईस्वी के बीच हुआ है। अब्दुल रहीम खानेखाना के बड़े बेटे मिर्जा एरेज की याद में बना है। उनकी बहादुरी को देखते हुए जहांगीर ने उन्हें अपना सेनापति बनाया था और शाहनवाज खान तथा पहलवान शाह के खिताब से नवाजा था। तभी से उनकी पहचान शाहनवाज खान के रूप में हुई थी। 42 साल की उम्र में उनका इंतकाल हुआ था। यह मकबरा उन्हीं की याद में बनाया गया था।
शैवाल और धूल की परत के कारण रंग हुआ था काला
पुरातत्वविद् और स्मारकों की जानकारी रखने वाले कमरूद्दीन फलक ने बताया करीब 400 साल पुरानी यह धरोहर शैवाल और काई उगने से काली पड़ गई थी। अभी मकबरा जैसा दिख रहा है, यही इसका मूल स्वरूप है। बारिश के बाद शैवाल उगकर यहीं सूख जाती है। मकबरा इंडो-इस्मालिक कला का नमूना है। पिछला हिस्सा प्राचीन मंदिरों की डिजाइन का है। काले पत्थर का उपयोग राजस्थानी शैली में हुआ है। गुंबद ईंट और चूना पत्थर से ईरानी कला में बने हैं।
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