- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के नए अध्यक्ष डॉ. जेए जयलाल लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के क्षेत्र में जाना-माना नाम है। वे तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज में सर्जरी के प्रोफेसर हैं। डॉ. जयलाल आयुर्वेदिक डॉक्टरों को 58 तरह की सर्जरी की अनुमति देने की केंद्र की योजना (मिक्सोथैरेपी) के विरोधी हैं।
देशभर में इसके खिलाफ अभियान भी चला रहे हैं। इसी सिलसिले में शनिवार को वे इंदौर में थे। भास्कर से चर्चा में उन्होंने कोविड से निपटने में जहां सरकार के प्रबंधन की तारीफ की, वहीं स्वास्थ्य के मोर्चे पर विफलता को भी बयां किया।
मिक्सोथैरेपी पर बतौर आईएमए अध्यक्ष आपका मुख्य एजेंडा क्या है?
आयुर्वेद समृद्ध है, उसके अपने सिद्धांत हैं, लेकिन एलोपैथी का अपना आधार है, अपनी खोज है। आयुर्वेदिक कॉलेज के लिए तीन एकड़ जमीन और 60 बिस्तर पर्याप्त हैं। वहीं मेडिकल कॉलेज के लिए 20-25 एकड़ जमीन और 500 बेड चाहिए। दोनों को मिक्स करना किसी मेडिकल तबाही से कम नहीं होगा।
आखिर ‘वन नेशन वन मेडिकेशन’ में बुराई क्या है?
- आयुर्वेद में बुराई नहीं है। मिक्स करने में बुराई है। एक एलोपैथी का मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस) है, जो आठ साल की पढ़ाई, अनुभव के बाद सर्जरी कर पाता है। अब आयुर्वेदिक डॉक्टर भी एमएस लगाएंगे तो आम जनता इनमें अंतर कैसे करेगी। सरकार तो आंकड़ों में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने और आयुष लॉबी के दबाव में, उनके फायदे के लिए खतरनाक खेल खेल रही है।
इस मुद्दे पर नेशनल मेडिकल काउंसिल क्या कर रही है?
- एनएमसी नॉमिनेटेड बॉडी है। जाहिर है वह तो वही करेगी जो सरकार चाहेगी। पहले हर स्टेट का प्रतिनिधि होता था। अब पांच साल में एक राज्य का नंबर आएगा।
आईएमए भी तो एलोपैथी डॉक्टरों की मनमानी पर खामोश है?
- एथिकल प्रैक्टिस के लिए हम लगातार प्रयास करते हैं। कार्यवाही करने के लिए हमारे हाथ बंधे हुए हैं।
आईएमए अभी तक डॉक्टरों को जेनेरिक मेडिसिन लिखने तक के लिए भी बाध्य नहीं कर पाया?
- सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। यदि सरकार की नीयत साफ है तो एक ही कंपनी को महंगी ब्रांडेड और जेनेरिक दवाएं एक साथ बनाने की अनुमति क्यों?
कोविड से निपटने में सरकार, लॉकडाउन की भूमिका कैसी रही?
- मरीजों की संख्या में कमी हर्ड इम्युनिटी के कारण आई है। हां, सरकार ने जिस तरह से तेजी से इलाज का इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया, वह काबिले तारीफ है।
हेल्थ बजट 137 फीसदी बढ़ा है। इसकी तो तारीफ करेंगे?
- जिस 137% की बात कर रहे हैं, उसमें 60 हजार करोड़ वॉटर सैनिटेशन का खर्च जोड़ दिया और 35 हजार करोड़ कोविड वैक्सीनेशन का। आंकड़ों की बाजीगरी है।
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