- मप्र के बड़े किसान नेताओं में गिने जाते हैं शिवकुमार शर्मा (कक्काजी), 2010 में प्रदेश सरकार का घेराव किया था
- किसान आंदोलन की कोर कमेटी के जो सात सदस्य हैं, उनमें शर्मा भी शामिल, बीते 78 दिनों से दिल्ली में ही जमे
'पांच सितंबर को मैं अपने खेत में था, तभी दिल्ली से एक पत्रकार का फोन आया। उन्होंने पूछा, कक्काजी क्या आपने सरकार द्वारा पास किए गए कृषि से जुड़े तीन कानून देखे हैं, मैंने कहा, अभी तो नहीं देख पाया। फिर मैंने कानूनों के बारे में पता किया। बीस दिन मुझे तीनों कानूनों को समझने में लग गए। फिर हमने निर्णय लिया कि इन काले कानूनों का विरोध किया जाएगा, क्योंकि ये किसान विरोधी हैं।'
यह कहना है मप्र के बड़े किसान नेता शिवकुमार शर्मा (कक्काजी) बोले, 'हमारी कोर कमेटी में सात सदस्य हैं, जिन्हें इस तरह के आंदोलनों को चलाने का सालों का अनुभव है। अक्सर सरकार जो कहती है, उसके उलट करती है। अभी भी कह रही है कि कानून वापस नहीं होंगे, लेकिन जब तक कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, तब तक हम भी जमीन नहीं छोड़ने वाले। गर्मी के लिए अभी से तैयारी हो चुकी है। बारिश में भी डटे रहेंगे। जब तक कानून वापस नहीं होंगे, तब तक आंदोलन भी खत्म नहीं होगा।' पढ़ें इंटरव्यू के प्रमुख अंश।
सरकार ने कानून वापस लेने से इंकार किया है, आप लोग आंदोलन रोक नहीं रहे, अब आगे की रणनीति क्या है?
सरकार पर दबाव बनाने का एकमात्र तरीका आंदोलन ही है। हमने आंदोलन के आगामी कार्यक्रम जारी कर दिए हैं। 207 किसानों की शहादत पर कैंडल मार्च निकाला जाएगा और भी कई कार्यक्रम होना हैं। हमारा आंदोलन अब दोगुनी गति से चलेगा।
आपकी आंदोलन में क्या भूमिका है, क्या कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश की जा रही है?
यह पूरा आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहा है। इसमें राजनीतिक और गैर-राजनीतिक दोनों ही विचारधाराओं के लोग शामिल हैं। मोर्चा की कोर कमेटी में सात सदस्य हैं, जिनमें एक मैं भी हूं। यह कमेटी ही सारे निर्णय लेती है। आंदोलन को हाइजैक कोई नहीं कर सकता। जो भी निर्णय लिया जाएगा, वो कोर कमेटी द्वारा ही लिया जाएगा।
आप RSS से जुड़े रहे हैं, क्या यह आंदोलन भी RSS द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों की तर्ज पर किया जा रहा है?
मैं कुछ समय के लिए भारतीय किसान संघ से जरूर जुड़ा था, लेकिन मेरा RSS से सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं है। हां, मैं उसकी कार्यप्रणाली से वाकिफ जरूर हूं। देशभर के 540 किसान संगठनों को ऑर्गेनाइज्ड करने की हमारी सामने बड़ी चुनौती थी, लेकिन कोर कमेटी के सदस्यों को इस तरह के आंदोलनों को चलाने का सालों का अनुभव है, इसलिए सब व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ रहा है।
फिर 26 जनवरी को हिंसा क्यों हुई, उपद्रव क्यों मचा?
मैंने उसे लेकर सार्वजनिक तौर पर कहा था कि, जो हुआ वो गलत हुआ, और हमें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, लेकिन कोई भी झूठ ज्यादा दिनों तक नहीं चलता। गोदी मीडिया ने कुछ दिनों तक बहुत खबरें चलाईं। खालिस्तान से भी आंदोलन को जोड़ा गया, लेकिन अब सब खत्म हो चुका है क्योंकि देश सच्चाई जान चुका है।
क्या राकेश टिकैत का रोना आंदोलन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ?
26 जनवरी की हिंसा के बाद किसान आंदोलन को झटका तो लगा ही था। राकेश टिकैत के आंसू देखकर हरियाणा के किसान भी जागे, जो पहले बहुत मजबूती से आगे नहीं आ रहे थे। उनके आंसुओं से आंदोलन को मजबूती तो मिली ही है।
ऐसा क्यों हो रहा है कि आंदोलन में सिर्फ पंजाब-हरियाणा के किसान ही ज्यादा नजर आ रहे हैं?
दिल्ली से हरियाणा लगा हुआ है। पंजाब महज 200 किमी की दूरी पर है। वो लोग सुबह आकर रात में घर लौट जाते हैं, लेकिन बाकी हिस्से से किसान बार-बार दिल्ली नहीं आ सकते। इसलिए पंजाब-हरियाणा के किसान ही ज्यादा नजर आ रहे हैं। अभी देशभर में 6 से 7 लाख किसान अलग-अलग जगह आंदोलन कर रहे हैं। दिल्ली में मप्र के 800-900 किसान हर रोज होते हैं। एक दिन में 50 जाते हैं तो 40 आते भी हैं।
होशंगाबाद, पिपरिया में आपके खिलाफ पोस्टर लगाए गए?
ऐसा करने वाले तीन-चार लोग थे। जो सरकार से जुड़े हैं। इसके जवाब में हमारे संगठन ने होशंगाबाद में बड़ी रैली निकाली थी। मैं बीते 78 दिनों में सिर्फ दो दिन के लिए घर गया हूं, वो भी तब जब परिवार में डेथ हो गई थी। मैंने सालों से किसानों के लिए ईमानदारी से आंदोलन किया है। कभी समझौता नहीं किया। आंदोलन करने का 50 सालों का अनुभव है। यह आगे भी जारी रहेगा।
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