बड़वा (म.प्र.)। धनवान हो, सब काम नौकर से करा लेना पर धनवान बनने के लिए धर्म स्वयं करना। धर्म करने से पुण्य प्राप्त होता है और पुण्य से धन मिलता है। झाड़ू-पोछा लगाने के लिए नौकर रख, लेना बर्तन मांजने के लिए नौकरानी रख लेना, कपड़े धोने वाली रख लेना, भोजन बनाने वाली रख लेना, सब काम किसी से करा लेना पर भगवान की पूजा-भक्ति करने के लिए नौकर नहीं रखना। नौकर करेगा तो फल भी नौकर को मिलेगा, सेठ धर्म आराधना करेगा तो पुण्य सेठ को मिलेगा।
संसार में कमाने कमाने में जिंदगी निकलती जा रही है। संसार की विचित्रता तो देखो! पुत्र ने पत्नी को सुखी करने में अपना जीवन लगा दिया, मां ने पुत्र को सुखी बनाने में अपना जीवन लगा दिया, पर अपने लिए कुछ नहीं किया। धन कमाने में इतना व्यस्त है कि धर्म नौकर से करा रहा है।
संघस्थ अनिल भैया ने विद्वत्परिषद के महामंत्री डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि ये उपदेश बड़वा (म.प्र.) में प्रवासरत रविवासरीय विशेष प्रवचन सभा में श्रमणचार्य विमदसागर मुनिमहाराज ने दिये। उन्होंने आगे कहा कि पूर्व पर्याय के धर्म से धन प्राप्त किया और इस पर्याय में उस धन से धर्म करा लिया। जैसे मुझे तो जाना है मेरी तरफ से आप पूजा कर लेना या इन फल आदि को ले लो, मेरी तरफ से मुनिराज को आहार में दे देना, क्योंकि स्वयं के पास समय नहीं है। जिस पुण्य से धन मिला था वह पुण्य तो नष्ट हो गया इस पर्याय में धर्म किया नहीं। अब अन्य पर्याय में तो दिन रात मेहनत करते रहो धन प्राप्त होने वाला नहीं है। आप प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि इस दुनिया में बहुत मेहनत करने वाले भी लोग हैं, पर उनके हाथ सिर्फ मेहनत ही लगती है, सफलता प्राप्त नहीं होती है। इसलिए स्वयं ही धर्म करो।
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