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पर्यावरण के हित में हाईकोर्ट का फैसला:सिंगल बेंच में अब एक ही प्रति लगेगी, हर माह 1.35 लाख कागजों की बचत

 

पर्यावरण के हित में हाई कोर्ट प्रशासन ने अच्छा फैसला लिया है। हाई कोर्ट में लगने वाली जमानत, अग्रिम जमानत, अपील, रिट पिटिशन, मोटर एक्सीडेंट के प्रकरणों में वकीलों को अब याचिका की दो प्रति के बजाय एक ही पेश करना होगी। हाई कोर्ट में इस समय हर दिन 150 के लगभग प्रकरण लग रहे हैं। औसत 30 पेज हर पिटिशन में लगते हैं। एक प्रति कम हो जाने से हर महीने सीधे-सीधे करीब एक लाख 35 हजार कागज इस नए सिस्टम से बच जाएंगे। 1 अप्रैल यह सिस्टम लागू हो जाएगा। चूंकि डिविजन बेंच में दो जज सुनवाई करते हैं, इसलिए उनके समक्ष दो प्रति पेश होगी। बाकी सभी सिंगल बेंच में केवल एक ही काॅपी से काम चल जाएगा।

हाई कोर्ट अधिवक्ता आनंद अग्रवाल ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, केंद्रीय कानून मंत्री को यह सुझाव भेजा था। इसमें कहा था कि दो प्रति भेजने के कई नुकसान हैं। सबसे पहला तो अनावश्यक रूप से कागजों की बर्बादी होती है। हाई कोर्ट के स्टोर सेक्शन में हर दिन भार बढ़ रहा है। दो प्रति पेश करने में पक्षकार पर आर्थिक बोझ पड़ता है। 30 या उससे अधिक कागजों की फोटोकॉपी, प्रिंट आउट निकालने में भी वक्त लगता है। कई बार कोर्ट समय समाप्त होने से पहले अर्जेंट मामले पेश करना होते हैं। ऐसे में दो प्रति में काफी वक्त लग जाता है। एक प्रति पेश करने से कागजों की न केवल बचत होगी, बल्कि पर्यावरण का भी नुकसान नहीं होगा। उनके सुझाव पर अमल करते हुए हाई कोर्ट प्रशासन ने इसे लागू कर दिया है।

नए सिस्टम से स्टोर का भार कम हो जाएगा
हाई कोर्ट में प्रकरणों का निराकरण होने के बाद एक निश्चित समय अवधि तक रिकॉर्ड को रखा जाता है। इसके बाद रिकॉर्ड नष्ट कर दिया जाता है। बड़ी संख्या में प्रकरणों के बंडल नष्ट किए जाते हैं। नए सिस्टम से स्टोर सेक्शन का भार बहुत कम हो जाएगा।

वकील बोले- आईएलआर का प्रकाशन भी बंद हो
अधिवक्ता अग्रवाल ने देशभर की अदालतों के जजमेंट किताब के रूप में जारी किए जाने के सिस्टम को भी बंद करने की मांग की है। इंडियन लाॅ रिपोर्टर (आईएलआर) के लिए कई जिला व सत्र न्यायाधीश, अपर सत्र न्यायाधीश स्तर के अधिकारी प्रिंसिपल बेंच में बैठकर आईएलआर बनाते हैं। अब अदालतों के आदेश उसी समय सोशल मीडिया, ऑनलाइन अपलोड हो जाते हैं। ऐसे में दो हजार पेज की किताब निकालने का मतलब नहीं है। आईएलआर को भी किताब के बजाय ऑनलाइन कर देना चाहिए। वहीं जजेस को भी दफ्तर के बजाय अदालतों में भेजा जाना चाहिए।

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