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जिले में 40 कृषकों ने शुरू की अश्वगंधा की खेती अश्वगंधा फसल पर आयोजित हुई कृषक परिचर्चा

     भारत में पारंपरिक रूप से अश्वगंधा को औषधीय के साथ-साथ नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। अश्वगंधा की जड़ के साथ-साथ पत्तियों एवं फल से भी आय प्राप्त होती है। राज्य शासन के किसानों की आय दुगनी करने के संकल्प एवं खेती को लाभ का धंधा बनाने के उद्देश्य से इंदौर जिले में नवाचार करते हुए अश्वगंधा की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। परियोजना संचालक आत्मा श्रीमती शर्ली जॉन थॉमस द्वारा बताया गया कि इस पहल के तहत लगभग 40 कृषकों ने अश्वगंधा की खेती शुरू की है। सीमैप लखनऊ के साथ फसल की क्रांतिक अवस्थाओं को लेकर वेबीनार भी आयोजित किये जा रहे है। इसी क्रम में 25 फरवरी को आत्मा इंदौर एवं सीमैप लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में कृषि महाविद्यालय में कृषि परिचर्चा का आयोजन किया गया था। इस दौरान केंद्रीय औषधीय एवं सुगंधित पौधा संस्थान लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ तृप्ति झंग ने अश्वगंधा फसल की उत्पादन तकनीक को विस्तार से समझाया। फसल बोने के पूर्व से फसल काटने तक की अलग-अलग अवस्थाओं के बारे में कृषकों से चर्चा कीसाथ ही अश्वगंधा फसल से संबंधित कृषकों की समस्याओं का समाधान भी किया। इसके पूर्व डॉ. झंग एवं आत्मा परियोजना संचालक श्रीमती थॉमस द्वारा फील्ड भ्रमण किया गया। इस दौरान मांचलकुवालीखुड़ैलगारीपिपलियारामपिपल्यासोलसिंदा आदि ग्रामों में अश्वगंधा उत्पादन ले रहे कृषकों के खेतो का अवलोकन भ्रमण टीम द्वारा किया गयाजिसमे कृषकों को काफी महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये।

      उल्लेखनीय है कि अश्वगंधा एक औषधीय फसल है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक एवं यूनानी औषधियों में बहुतायत से किया जाता है। इसकी जड का उपयोग अनिद्राअतिरिक्त रक्तचापमूर्छासिरदर्दहृदयरोगरक्त कोलेस्ट्रोल कम करने में बहुत लाभकारी है। इसकी जड़ों में 13 प्रकार के एल्कोलाइड पाए जाते हैं। इसकी तने वा शाखाओं में प्रोटीनकैल्शियम और फास्फोरस बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है एवं जड़तना व फलों में टेनिन एवं फ्लेवोनाइड भी होते हैं। अश्वगंधा की खेती किसानों के लिये अत्यंत लाभकारी हो सकती है।

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