मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा वर्ष 2012 से ग्रामीण निर्धन परिवारों की महिलाओं के सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण के लिये स्व-सहायता समूह बनाकर उनके संस्थागत विकास तथा आजीविका के संवहनीय अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
मिशन द्वारा प्रदेश में अब-तक समस्त जिलों के लगभग 44 हजार ग्रामों में 3 लाख 22 हजार स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया है। इन समूहों से लगभग 36 लाख 53 हजार महिलाओं को जोड़ा जा चुका है। मिशन का उद्देश्य ग्रामीण निर्धन परिवारों की महिलाओं को स्व-सहायता समूह के रूप में संगठित करके सहयोगात्मक मार्गदर्शन करना तथा समूह सदस्यों के परिवारों को रूचि अनुसार उपयोग स्व-रोजगार एवं कौशल आधारित आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि मजबूत बुनियादी संस्थाओं के माध्यम से निर्धन परिवारों की आजीविका को संवहनीय एवं स्थायी आधार पर बेहतर बनाया जा सके।
स्व-सहायता समूहों से जुड़ चुके अधिकांश परिवार आज सम्मानपूर्वक जीवन-यापन कर रहे हैं। उनके द्वारा न सिर्फ आर्थिक बदलाव लाया जा रहा है, बल्कि सामाजिक एवं राजनैतिक सशक्तिकरण भी हो रहा है।
प्रदेश में आजीविका मिशन अंतर्गत गठित स्व-सहायता समूहों से जुड़े परिवारों में से 12 लाख 60 हजार से अधिक परिवार कृषि एवं पशुपालन आधारित आजीविका गतिविधियों से जुड़े हैं जबकि लगभग 4 लाख 11 हजार से अधिक परिवार गैर कृषि आधारित लघु उद्यम आजीविका गतिविधियों से जुड़कर काम कर रहे हैं।
समूहों को मिशन द्वारा चक्रीय निधि, सामुदायिक निवेश निधि आपदा कोष तथा बैंक लिंकेज के रूप में वित्तीय सहयोग किया जा रहा है। इस राशि से उनकी छोटी बड़ी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है, जिससे वह साहूकारों के कर्जजाल से बच जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका गतिविधियों को और सुदृढ़ करने के लिये इस वर्ष 1400 करोड़ रूपये से अधिक बैंक ऋण समूहों को उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है। इनमें से 18 मार्च 2021 तक 1325 करोड़ से अधिक समूहों को वितरित किये जा चुके हैं।
इस राशि से ग्रामीण तबके के परिवारो की आजीविका गतिविधियों को शुरू करने तथा सुदृढ़ करने के अवसर कई गुना बढ़ गये हैं। यह राशि जैसे-जैसे समूहों में पहुंचती जा रही है, निर्धन परिवारों के जीवन में बड़े सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं, उनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति में तेजी से सुधार दिखाई दे रहा है जिससे ऋण वापसी और भी सरल हो गई है। सरकार द्वारा किये जा रहे इस सहयोग से ग्रामीण निर्धनों का कर्ज बोझ कम हुआ है, साथ ही बचत के अवसर भी बढ़े हैं। सरकार द्वारा समूहों को दिये जाने वाले ऋण पर ब्याज दर को अब 4 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत कर दिया गया है।
सरकार की प्राथमिकता एवं आजीविका मिशन के प्रयासों का ही परिणाम है कि जो समूह सदस्य महिलाएँ कुछ वर्षों पहले मुश्किल से तीन-चार हजार रूपये प्रतिमाह आय अर्जित कर पाती थीं, आज ऐसी लाखों महिलाएँ जो सम्मानपूर्वक प्रतिमाह 10 हजार रूपये से अधिक आय संवहनीय रूप से अर्जित करने लगी हैं।
समूहों में जुड़कर न सिर्फ उन्होंने अपनी आय के संसाधनों में वृद्धि की है, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों को भी उनकी रूचि के अनुसार रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये हैं। ऐसी महिलाएँ अपने परिवार की बुनियादी जरूरतों के अलावा शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिये परिवार का सहारा बन रही हैं।
मध्यप्रदेश के आजीविका उत्पादों को सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर वृहद बाजारों से जोड़ने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म से भी जोड़ा जा रहा है, ताकि उचित दाम में सामान सीधा खरीदा एवं बेचा जा सके, जिसका फायदा समूह सदस्यों को अधिक से अधिक मिल सके। समूहों और ग्राहकों के बीच कोई बिचौलिया न हो, इसके लिये आजीविका गतिविधि से बनाई जा रही वस्तुओं को बेचने के लिये, बाजार उपलब्ध कराने के लिये मध्यप्रदेश आजीविका मार्ट (Madhya Pradesh Ajivika Mart) पोर्टल बनाया गया है। इस पोर्टल पर समूहों के उत्पाद दर्ज किये जा रहे हैं तथा पोर्टल www.shgjivika.mp.gov.
प्रदेश में शासकीय स्कूलों के छात्रों की गणवेश सिलाई का काम समूहों को दिया गया है। पिछली बार समूह सदस्यों ने अच्छा काम किया था। इस बार फिर से समूहों को स्कूल गणवेश का काम दिया गया है। काम में पारदर्शित बनाये रखने तथा प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये स्व-सहायता पोर्टल बनाया गया है, जिसकी सहायता से यह काम और भी आसान हो जाएगा।
मिशन द्वारा दिये जा रहे लगातार प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता, वित्तीय सहयोग एवं सहयोगात्मक मार्गदर्शन से लाखों परिवारों की निर्धनता दूर हो गई है। प्रशिक्षणों का ही परिणाम है कि समूह सदस्यों के अन्दर गरीबी से उबरने की दृढ़ इच्छा शक्ति उत्पन्न हुई। परिणाम स्वरूप वह आगे बढ़कर पात्रता अनुसार अपने हक, अधिकार न केवल समझने लगे हैं बल्कि प्राप्त करने लगे हैं। मिशन के प्रयासों से ग्रामीण निर्धन परिवारों के जीवन में अनेकों सकारात्मक परिवर्तत आ रहे हैं। इनमें सामाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण प्रमुख रूप से देखा जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन परिवारों में महिलाओं की आय मूलक गतिविधियाँ करने के अवसर नहीं मिलते थे, उनका जीवन केवल चूल्हे-चौके व घर की चार दिवारी तक की सीमित रह जाता था। घर के संचालन, आय-व्यय, क्रय-विक्रय आदि सहित अन्य मुद्दों पर निर्णय में पुरूषों का एकाधिकार था, यहाँ तक कि महिलाओं के आने-जाने, उठने-बैठने, पहनने-ओढ़ने, खाने-पीने आदि जैसे व्यक्तिगत मुद्दों पर भी उनकी राय लेना मुनासिब नहीं समझा जाता था, बल्कि सब कुछ एकतरफा उन पर थोप दिया जाता था। कभी परंपरा तो कभी संस्कार मर्यादा के नाम पर महिलाओं के पास इन्हें ढोने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता था। उनकी अपनी कोई पहचान इच्छा-अनिच्छा, सहमति-असहमति नहीं होती थी। घर के संचालन एवं खेती बाड़ी तथा व्यवसायिक कार्यों में महिलाओं की राय लेना तो जैसे सपनों की बातें हों।
समूहों, ग्राम संगठनों, संकुल स्तरीय संघों की नियमित बैठकों में भागीदारी करने से उनकी समझ व सक्रियता बढ़ गई है। साथ ही उनकी कार्यशैली में निखार एवं आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी हुई है। समूहों में सिखाये गये 13 सूत्रों ने उन्हें मूल मंत्र दे दिया जिससे वे निरंतर आगे बढ़ती जा रही हैं। समूहों की बैठक में नियमित बचत लेन-देन, ऋण वापसी तथा दस्तावेजीकरण, बैंकों में आने-जाने से उनके अंदर वित्तीय साक्षरता, व्यवसायिक प्रबंधन की क्षमता विकसित हो गई। इसी का परिणाम है कि घूंघट में रहने वाली शर्मीले स्वभाव की ग्रामीण महिलायें आज अपनी पिछड़ेपन की पहचान बदलकर बड़ी-बड़ी सभाओं में मंच से भीड़ के सामने निर्भीक होकर अपने विचार व्यक्त करती हैं।
समूहों को आगे बढ़ने में आ रहीं व्यवहारिक समस्याओं का भी सरकार द्वारा एक-एक करके समाधान किया जा रहा है। कुछ 6 समस्यायें जैसे समूहों की बैठक करने के लिय स्थान का अभाव, समूहों ग्राम संगठनों व सीएलएफ कार्यालयों के लिये भवन न होना, आजीविका उत्पादों का प्रदर्शन एवं विक्रय के लिये आउटलेट भवन नहीं थे। इसका समाधान करते हुये सरकार द्वारा समूहों की बैठकें करने के लिये विभिन्न जिलों में 6000 से अधिक शासकीय भवन आवंटित कराये गये हैं। इन भवनों में बैठकर समूह सदस्य सम्मान पूर्वक समूह की गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं।
इसी प्रकार 4 हजार से अधिक ग्राम संगठनों को कार्यालय भवन, 416 संकुल स्तरीय संगठनों के कार्यालय भवन 131 आजीविका आउटलेट के लिये भवन आवंटित किये जा चुके हैं।
प्रदेश में 32 आजीविका रूरल मार्ट शुरू हो चुके हैं और 44 रूरल मार्ट के प्रस्ताव प्रेषित किये जा चुके हैं यह भी शीघ्र शुरू हो जायेंगे। इन मार्ट में एक ही स्थान पर समस्त आजीविका उत्पादों का सूपर स्टोर की तरह सामान बेचा जा रहा है।
सरकार से मिल रहे सहयोग के कारण समूह सदस्य महिलाएँ अपने आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी समूहों के माध्यम से कई सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। ग्रामीण क्षेत्र में समूह सदस्यों द्वारा नशा मुक्ति, बाल विवाह रोकना, स्वच्छता, पोषण, पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर विषयों पर भी सामाजिक व्यवहार परिवर्तन के लिये सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान बचाव सामग्री बनाकर आपदा को अवसर में बदलने के लिये भी समूहों ने अच्छा काम किया है। लॉकडाउन से लेकर अब-तक 1 करोड़ 28 लाख से अधिक मास्क, 1 लाख 17 हजार से अधिक पीपीई किट, 1 लाख 2 हजार 103 लीटर सेनेटाइजर, 19 हजार 376 लीटर से अधिक हैण्डवॉश एवं 2 लाख 39 हजार से अधिक साबुननिर्माण किया। इस कार्य से बीमारी की रोकथाम में सहायता मिली साथ ही समूह सदस्यों को अतिरिक्त आय भी प्राप्त हुई।
मध्यप्रदेश सरकार ने समूहों को आगे बढ़ाने के लिये नये-नये अवसर दिये हैं। कुछ जिलों में समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी का काम भी समूह सफलता पूर्वक संचालित कर रहे हैं। समूह सदस्यों द्वारा आजीविका एक्सप्रेस सवारी वाहनों का संचालन भी बेहतर ढंग से किया जा रहा है।
मिशन के समूहों से जुड़कर महिलाओं को जो अवसर मिला उससे उन्होंने अपनी काबिलियत को सिद्ध कर अपनी अलग पहचान बनाई। मिशन द्वारा लगभग 6700 महिलाओं को कम लागत कृषि एवं जैविक खेती पर प्रशिक्षित किया गया। इन्होंने मास्टर कृषि सी.आर.पी. के रूप में न केवल अपने घर, गाँव, जिला, प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों जैसे-हरियाणा, उत्तरप्रदेश व पंजाब में भी सेवायें देकर अपनी अलग पहचान बनाई है।
प्रदेश के कई क्षेत्रों में कम लागत एवं जैविक कृषि पद्धति अपनाने के लिये समूहों के सदस्यों ने बहुत अच्छा काम किया है। मिशन अंतर्गत चिन्हित जैविक कलस्टरों में समूहों की कृषि सी.आर.पी. के द्वारा किये जा रहे प्रयासों से घरों में बनाये जाने वाले जैविक खाद, कीटनाशक एवं बीजोपचार को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जैविक कलस्टरों में किसानों ने रासायनिक खाद का प्रयोग करना लगभग बंद कर दिया है। यहां जैविक खाद के साथ-साथ जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है। इस प्रक्रिया से रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों पर होने वाला खर्चा बच गया, जिससे लागत कम हो गई तथा जैविक खाद के प्रयोग से उपज में भी वृद्धि हो रही है। कृषि के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता का यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है। जिसके परिणाम धीरे-धीरे आना शुरू हो गये हैं।
सरकार द्वारा प्राथमिकता से सहयोग किये जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओ की स्थिति का नजारा अब तेजी से बदल रहा है। गैर आय मूलक नगण्य घरेलू कामों के अलावा अब समूह सदस्य महिलायें अपने परिवार के साथ-साथ गाँव एवं सामुदायिक विकास महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय देती हैं। उनके अन्दर आई जागरूकता के कारण न केवल घर में बल्कि गाँव व क्षेत्र में भी उनके सम्मान में बढ़ोत्तरी हुई है।
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