ये उन महिलाएं की कहानियां हैं जो अपने अधिकार के लिए लड़ना भी जानती हैं और अपनों की मुस्कान लिए सर्वस्व न्योछावर करना भी। प्रेम, करुणा, वात्सल्य और साहस का बेमिसाल मेल हैं ये महिलाएं। ये रिश्तों की मर्यादा भी समझती हैं और अपनी नई राह, नए कायदे बनाना भी जानती हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए इनकी कहानी
दिव्यांग भाई के देखरेख के लिए शादी नहीं की, आईवीएफ से बनी एकल मां
मैं 40 साल की हूं और मेरी 2 साल की बिटिया है। परिवार में माता-पिता और मेरा छोटा भाई उज्जवल, हम चार सदस्य थे। भाई दिव्यांग थे और मैं उनका साथ नहीं छोड़ना चाहती थी इसलिए परिजन की असहमति के बाद भी मैंने शादी न करने का निर्णय लिया। उनसे दूर रहकर मैं खुश नहीं रह पाती और न ही शादी के बाद उनकी देखरेख कर पाती। इसलिए मैंने शादी न करने का निर्णय लिया। 36 साल की उम्र में मातृत्व ने पुकारा। हमारे समाज में यह लगभग असंभव ही था, मगर मैंने परिवार को राज़ी कर लिया।
तत्कालीन कलेक्टर पी. नरहरि से बात की। उनके कहने पर सीएमएचओ डॉ. पोरवाल से मिली, पर कुंआरी लड़की का आईवीएफ पद्धति से भी मां बनना आसान न था। इसमें आईसीएमआर सहित अन्य संस्थाओं से एनओसी लेना पड़ा। फिर मेरी उम्र भी अधिक थी। लंबे इंतजार के बाद पांचवें प्रयास में मुझे ‘भाषा’ (बिटिया) मिली और मेरा सपना सच हुआ। अफसोस इस बात का है कि जिस भाई का साथ न छोड़ने के लिए यह सब किया था दुर्भाग्यवश उसी का साथ छूट गया। मैं पोस्ट आफिस एजेंट का काम करते हुए बिटिया की परवरिश कर रही हूं। आगे का सफर और मुश्किल होगा मगर ये भी जानती हूं की हम दोनों मां-बेटी जीत ही जाएंगे।
25 साल से सरकारी स्कूल की ये 6 शिक्षिकाएं भर रहीं 50 लड़कियों की फीस
शहर के एक सरकारी स्कूल की 6 महिला शिक्षिकाओं ने मिसाल कायम की है। वे स्कूल की 50 से ज्यादा छात्राओं की सालाना 30 हजार रुपए फीस भर रही हैं और ऐसा वे पिछले 25 साल से कर रही हैं। इनसे प्रेरित होकर अब बाकी स्टाफ ने भी मदद करना शुरू कर दी है। हम बात कर रहे हैं शासकीय उर्दू कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बक्षीबाग की कहानी है यह। प्रिंसिपल नगमा कुरैशी और नज्मा कुरैशी ने 25 साल पहले कुछ छात्राओं की फीस भरना शुरू की।
उद्देश्य यह था कि अभाव के कारण किसी भी बच्ची की पढ़ाई न छूटे। स्कूल में लगभग 250 छात्राएं पढ़ रही हैं और इनमें से 50 छात्राओं की फीस भरने में स्कूल की शिक्षिका हेमा पाठक, वीना जैन, तलत सैयद, तस्लीम आरा शामिल हैं। प्रिंसिपल नज्मा बतातीं हैं कि जब फीस भरने की शुरआत की तो उससे पहले देखा कि छात्राओं में पढ़ाई को लेकर ललक तो है, लेकिन पारिवारिक परेशानियां के कारण वे स्कूल नहीं आ पातीं या फिर बीच में ही पढ़ाई छूट जाती है। ये शिक्षिकाएं बस्तियों में घर-घर जाकर पालकों व बच्चों की काउंसलिंग भी करती हैं। कई मर्तबा तो बच्चियों के घर में राशन तक की व्यवस्था करती हैं।
2 महिलाओं ने शुरू किया मध्यभारत का पहला 25 मेगावॉट का सोलर प्लांट
श हर की 2 महिला उद्यमी ईला बंसल और उर्वशी खंडेलवाल ने सेंट्रल इंडिया में इंदौर का पहला 25 मेगावॉट क्षमता का सोलर पैनल मेन्यूफेक्चरिंग प्लांट स्थापित किया है। यहां महिला और पुरुष कर्मचारी का रेशो 70:30 है। इनकी कंपनी यूवीआई टेक्नोलॉजी सोलर इंटीग्रेटेड प्रोडक्ट्स जैसे सोलर स्ट्रीट लाइट, सोलर स्मार्ट पोल, सोलर वाॅटर प्यूरीफायर बनाने की योजना पर काम रही है। इन्होंने ऑफिसेस में डॉक्यूमेंट को कोरोना वायरस से बचाने के लिए यूवी बॉक्स भी बनाए हैं। आईआईटी इंदौर ने इनके टेस्ट किए हैं और अब ये सरकारी कार्यालयों में इंस्टॉल्ड हैं। यूवीआई टेक्नोलॉजी डीपीआईआईटी के स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम के तहत रजिस्टर्ड भी है।
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