कहानी - महात्मा गांधी के साथ आनंद स्वामी नाम के एक शिष्य रहा करते थे। वे गांधी जी के साथ रहते थे तो खुद को बहुत विशिष्ट यानी खास मानते थे। इस संबंध में गांधी जी के विचार बहुत अलग थे।
आम और खास व्यक्ति में फर्क रखने का सभी का अपना-अपना तरीका होता है। कुछ लोग आम आदमी को कुछ नहीं समझते। आम आदमी यानी जो गरीब है, निरक्षर है, जरूरतमंद है। जो लोग समर्थ होते हैं यानी जिनके पास सामने वाले व्यक्ति से ज्यादा धन है, ज्यादा प्रसिद्ध है, कोई बड़ा पद है तो वे खुद को खास समझने लगते हैं।
एक दिन आनंद स्वामी महात्मा गांधी के साथ यात्रा पर थे। इस दौरान एक सामान्य व्यक्ति के साथ आनंद स्वामी की बहस हो गई। आम व्यक्ति ने किसी बात को लेकर कोई टिप्पणी की तो आनंद स्वामी ने उसे थप्पड़ मार दिया। वह व्यक्ति बहुत सामान्य था। इस कारण थप्पड़ खाने के बाद एक तरफ खड़ा हो गया। वह आनंद स्वामी से कुछ बोल भी नहीं सकता था। कुछ देर बाद ये बात गांधी जी तक पहुंची।
गांधी जी चाहते तो इस बात को नजरअंदाज करके आगे बढ़ सकते थे, लेकिन उन्होंने आनंद स्वामी से पूछा, ‘क्या तुमने उस व्यक्ति को थप्पड़ मार दिया?’
आनंद स्वामी ने जवाब दिया, ‘हां, उस समय में गुस्से में था और मेरा हाथ उस पर उठ गया।’
गांधी जी बोले, ‘ठीक है, उस समय तुम गुस्से में थे, लेकिन अब तो तुम्हारा गुस्सा शांत हो गया है, जाओ और उससे माफी मांगो।’
आनंद स्वामी को ये बात ठीक नहीं लगी कि एक सामान्य व्यक्ति से माफी मांगनी होगी, लेकिन गांधी जी का आदेश था तो आनंद ने उस व्यक्ति से माफी मांग ली।
बाद में गांधी जी ने उनसे पूछा, ‘अब कैसा लग रहा है?’
आनंद स्वामी बोले, ‘हल्का लग रहा है। मैंने जो किया वह ठीक नहीं था, लेकिन माफी मांगने के बाद थोड़ा अच्छा लग रहा है।’
गांधी जी ने उससे कहा, ‘कभी भी ये मत सोचना कि तुम खास हो और दूसरा आम है। परमात्मा के लिए सभी मनुष्य समान हैं। आम और खास तो हम बनाते हैं, लेकिन फिर भी शिक्षा, पद, प्रतिष्ठा और मेरे साथ रहने के कारण तुम विशिष्ट हो गए तो कभी ये मत सोचना कि दूसरे लोग सामान्य हैं। आत्मा का सम्मान सभी के लिए बराबर है।’
सीख - समाज में आम और खास इंसानों में फर्क किया जाता है। इसी फर्क की वजह से अपराध भी बढ़ते हैं। जिनको तिरस्कृत किया जाता है, वे अपराधी हो जाते हैं। परमात्मा इंसानों में भेदभाव नहीं करते हैं। इसीलिए सभी का सम्मान करना चाहिए।
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