जैसा डीन डॉ. संजय दीक्षित, अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भंडारी, चाचा नेहरू अस्पताल के अधीक्षक डॉ. हेमंत जैन, आईएमए अध्यक्ष डॉ. सतीश जोशी, डॉ. संजय लोंढे, डॉ. सौरभ मालवीय ने बताया।
लोग घबराहट में बेवजह रेमडेसिविर इंजेक्शन लगवा रहे हैं, जबकि उनको इसकी जरूरत ही नहीं है। जनरल प्रैक्टिशनर्स भी ये इंजेक्शन प्रिस्क्राइब कर रहे हैं। गैरजरूरी इस्तेमाल के कारण इंजेक्शन की मांग बढ़ी है। यदि ऐसा न करें तो रेमडेसिविर के फालतू उपयोग पर 25% रोक लग जाएगी। लोगों को समझना होगा कि हर मरीज को इसकी जरूरत नहीं है।
सिर्फ रेमडेसिविर के लिए न हों भर्ती
- सीटी स्कैन में 10% संक्रमण दिख रहा हो तब भी लगवा सकते हैं लेकिन ऑक्सीजन सेचुरेशन 94 से कम हो और बीमारी के लक्षण भी हों।
- रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो पहले डॉक्टर को दिखाएं। मन से दवा न लें। रेमडेसिविर की जगह फेविपिराविर भी ले सकते है। यह भी एंटीवायरस ड्रग है।
- कई लोग सिर्फ इसलिए अस्पताल में भर्ती हैं, क्योंकि उन्हें रेमडेसिविर लगवाना है। इसके लिए डे-केयर सेंटर जाएं।
- यदि रेमडेसिविर के दो डोज लग गए हो और दवा नहीं मिल रही हो तो ओरल मेडिसिन से काम चलाया जा सकता है। फेविपिराविर दी जा सकती है।
- प्लाज्मा थैरेपी व रेमडेसिविर तभी कारगर है जब बीमारी के शुुरुआती लक्षण सामने आने के बाद इसे दें।
- कम लक्षण वाले मरीज को यह नहीं दी जाना चाहिए। डब्ल्यूएचओ इसे रिकमंड नहीं करता है। भारत में इसे इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
- पॉजिटिव होने पर छह मिनट वॉक करें। यदि ऑक्सीजन सेचुरेशन में गिरावट आ जाए, तब तत्काल भर्ती होना चाहिए। यानी वॉक के पहले का सेचुरेशन और बाद के सेचुरेशन में 4% की गिरावट आ जाए तब रेमडेसिविर लगा सकते हैं ।
- मरीजों के ठीक हो जाने के बाद परिजन घर नहीं ले जा रहे। अस्पताल में ही रख रहे हैं। 10 फीसदी बेड तो सिर्फ इसीलिए भरे हुए हैं अस्पतालों के।
(जैसा डीन डॉ. संजय दीक्षित, अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. विनोद भंडारी, चाचा नेहरू अस्पताल के अधीक्षक डॉ. हेमंत जैन, आईएमए अध्यक्ष डॉ. सतीश जोशी, डॉ. संजय लोंढे, डॉ. सौरभ मालवीय ने बताया।)
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