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छोटे बच्चे माता-पिता के मन को समझते हैं:साइकोलॉजिस्ट का कहना है, बच्चों को कई मामलों की जानकारी देना जरूरी

 

वायरस महामारी  से पहले ही लोग अवसाद और उदासी की समस्या से पीड़ित रहते थे। लेकिन, पिछले साल में यह समस्या बहुत अधिक बढ़ी है। अमेरिकी वयस्कों में अवसाद और बेचैनी चार गुना ज्यादा हुई है। अवसाद की गंभीर स्थिति बच्चों के लिए समस्याएं पैदा करती है क्योंकि माता-पिता का व्यवहार बदल जाता है। वे बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी धीरज के साथ नहीं निभा पाते हैं। उनमें अवसाद की वजह से थकान, एकाग्रता की कमी, चिड़चिड़ापन और कुछ करने की चाह कम होती है। वे अपनी मनस्थिति छिपाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, मनोवैज्ञानिकों का कहना है, पैरेंट्स को अपनी मानसिक स्थिति बताने में शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। बच्चे यों भी माता-पिता की मन स्थिति भांप जाते हैं।

पैरेंट्स के अवसाद और बच्चों की मनस्थिति के संबंध में सभी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के सामने स्थिति का खुलासा करना जरूरी है। येल मेडिकल कॉलेज में चाइल्ड स्टडी सेंटर की मनोचिकित्सक मेगन स्मिथ कहती हैं, शर्मिंदगी के कारण लोग मदद मांगने से हिचकते हैं। चूंकि अवसाद की स्थिति से बच्चों के लिए मुश्किल पैदा होती है। इसलिए वयस्कों को उनसे इस पर जरूर चर्चा करना चाहिए।

नेशन वाइड चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के बाल मनोविशेषज्ञ डॉ. पार्क हस्टन कहते हैं, यदि कुछ गड़बड़ है तो बच्चे समझ जाते हैं। बताने पर उन्हें अहसास हो जाएगा कि वाकई कोई परेशानी है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मेडिकल साइकोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डा.कलेन कहती हैं, छोटे बच्चे चीजों को व्यक्तिगत तौर पर लेते हैं। वे अनुमान लगाते हैं कि उनके पैरेंट्स उनके कारण दुखी हैं। इसलिए यदि आप दुखी हैं तो बच्चे को विश्वास में लेने की कोशिश करें।

दुख जैसी भावनाओं को समझते हैं बच्चे

मानसिक बीमारियों के संबंध बातचीत से बचने का अर्थ है कि यह कुछ ऐसी बात है जिस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। डा. हस्टन कहते हैं, बच्चों से अगर खुलकर बात की जाए तो वे भी मानसिक समस्याओं के संबंध में समझने लगते हैं। तीन-चार साल के बच्चे मानसिक अवसाद,उदासी जैसे शब्द भले ही न समझें पर वे दुख जैसी भावनाओं और पेट में दर्द जैसी शारीरिक बीमारियों के बारे में समझते हैं।

बच्चों को भय जैसी भावनाओं से बचाया जाए

बच्चों को नकारात्मक भावनाओं और भय जैसे विचारों की जानकारी नहीं देनी चाहिए। उनसे ईमानदारी से पेश आने के साथ सावधानी बरतने की भी जरूरत है। उन्हें कुछ ऐसी बातें ना बताई जाएं जो हम अपने किसी नजदीकी व्यक्ति या डॉक्टर को बताते हैं। डॉ. कलेन कहती हैं, बच्चों को जरूरी जानकारी दी जाए लेकिन उनसे भावनात्मक सहारे की अपेक्षा नहीं की जाए।


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