जूनियर डाक्टर एसोसिएशन ने मांग की थी कि कोविड ड्यूटी करते समय हमारे इंटर्न जो संक्रमित हुआ है। उसे सारी इमरजेंसी दवाएं तुरंत प्रदान की जाएं। उसका पूरा ध्यान रखा जाए। जो डाक्टर खुद इस मुश्किल समय में खुद की जान को दांव पर लगाकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनके लिए प्रशासन व सरकार इलाज के लिए विशेष इंतजाम करें।
परिचय -- दीपक सिंह सतना के रहने वाले थे। उनके पिता किसान है और मां गृहिणी हैं। डा दीपक घर के सबसे बड़े बेटे थे और उन्होंने कक्षा 12 वीं के बाद दो साल डाक्टर बनने के लिए ड्राप लेकर पढ़ाई की। अभाव में रहकर भी पीएमटी की तैयारी की और 2010 में इंदौर के एमजीएम मेडिकल कालेज में इनका चयन हुआ था। इंदौर के रहने वाले डॉ. दीपक सिंह एमजीएम मेडिकल कॉलेज की 2010 बैच से एमबीबीएस पॉस आउट थे। उनकी बैच के अन्य डॉक्टरों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कोरोना वारियर्स की तरह काम कर रहे डॉ दीपक खुद संक्रमित हो गए थे। उनके फेफड़े 80 फीसदी से ज्यादा संक्रमित हो गए थे इसके बावजूद सरकार ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया।
इससे पहले तीन डॉक्टरों की भी कोरोना से जान गई -- पिछले वर्ष डॉक्टर जोशी से पहले इंदौर में तीन डाॅक्टरों की जान जा चुकी है। 9 अप्रैल को काेराेना संक्रमण से 62 साल के डाॅ. शत्रुघ्न पंजवानी की मौत हो गई थी। वे प्राइवेट प्रैक्टिस करते थे। इसके अगले ही दिन पूर्व जिला आयुष अधिकारी डॉ. ओमप्रकाश चौहान (62) की भी मौत हो गई। चौहान कुछ समय से बीमार थे और अरबिंदो अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। इसके अलावा, जनरल फिजिशियन डॉ. बीके शर्मा की 21 मई को कोरोना से मौत हो गई थी।
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