डायबिटीज़ का आम प्रकार टाइप टू अमूमन वज़न के बढ़ने और आरामपसंद जीवन से शुरू होता है। शरीर के मेटाबॉलिज़म में धीमे-धीमे बदलाव आ रहे होते हैं, इसलिए इसके लक्षण बहुत समय तक दिखाई नहीं देते और इसके रोगी अक्सर हैरान होते हैं क्योंकि वे मोटापे या शारीरिक निष्क्रियता (व्यायाम या गतिविधियों के अभाव) को महज़ एक स्थिति या जीवनशैली का हिस्सा मानते हैं। मोटापे और डायबिटीज़ का बड़ा ही नज़दीक का संबंध है।
आरामपसंद जीवन और मोटापे की वजह से इंसुलिन की कार्यक्षमता घट जाती है और मधुमेह की संभावना बन जाती है। पेट के आसपास के मोटापे से इंसुलिन की सक्रियता पर बड़ा प्रभाव पड़ता है इसलिए ऐसे लोगों में मधुमेह की आंशका अधिक बढ़ती है। जब शारीरिक श्रम की कमी और मोटापा, इंसुलिन की सक्रियता को कम करते हैं, तो इससे उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना भी शुरू हो जाता है। यदि किसी पुरुष के पेट का घेरा 90 सेंटीमीटर से अधिक और महिला में 80 सेंटीमीटर से अधिक हो, तो उनमें डायबिटीज़ होने की आशंका बढ़ जाती है। अधिक रक्तशर्करा के साथ, पेट के आसपास का मोटापा, उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के अधिक होने के स्थिति को मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहा जाता है।
शुगर कैसे बढ़ जाती है?
भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट्स पाचन के दौरान ग्लूकोज़ में बदलकर कोशिकाओं को मिलते हैं। भोजन का मक़सद ही यही है कि कोशिकाओं को ग्लूकोज़ मिले ताकि वे सुचारु रूप से काम करें। कोशिकाएं ग्लूकोज़ का इस्तेमाल इंसुलिन की मदद से ही कर सकती हैं। इंसुलिन, पैनक्रियाज़ से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है। अगर इंसुलिन की पर्याप्त मात्रा न हो, या इंसुलिन कोशिकाओं पर कार्य न कर पाए तो ग्लूकोज़ रक्त में पहुंचने के बाद कोशिकाओं को नहीं मिलेगा और रक्त में इकट्ठा होकर शुगर का स्तर बढ़ाएगा। इस वजह से हम थकान महसूस करेंगे और भूख लगती रहेगी। यह मधुमेह का एक लक्षण है।
भोजन का नियोजन ज़रूरी है
डायबिटीज़ में आहार नियंत्रण का अर्थ ऐसे भोजन से है, जो संतुलित हो और पाचन के बाद उससे ग्लूकोज़ धीमी गति से रक्त में पहुंचे ताकि इंसुलिन इस ग्लूकोज़ को कोशिकाओं के भीतर भेज सके। यदि ढेर सारा मीठा खा लिया जाए या ऐसा भोजन जिसमें शुगर ज़्यादा है (बर्गर, ब्रेड, मैदे के बेक्ड उत्पाद, सॉस, आदि) तो क्यों नुक़सान होता है, समझिए।
शुगर खाते ही शरीर में तुरंत सोख ली जाती है और ये ब्लड शुगर का स्तर एकदम बढ़ा देती है। फिर पैनक्रियाज़ इंसुलिन के ज़रिए इस उच्च स्तर को कोशिकाओं तक पहुंचाकर फिर सामान्य स्तर पर लाने की कोशिश करता है। इसलिए पहले शुगर बर्स्ट महसूस करते हैं, फिर शुगर ब्लूज़ यानी इसमें गिरावट के कारण कुछ थकान-सी। इस तरह हम मेटाबॉलिज़म को थकाते हैं और फैट सेल्स को भी बढ़ाते हैं।
शक्कर को विष क्यों कहते हैं
शक्कर की अधिकता शरीर से खनिज और हडि्डयों से कैल्शियम ख़त्म करती है। नतीजतन, ऑस्टियोपोरोसिस व एनीमिया हो सकता है। शक्कर दांतों को ख़राब करती है। इसमें फैलने वाली ऊर्जा होती है, तो इससे दिमाग़ पर असर पड़ता है। चिड़चिड़ापन, अनिद्रा और खिन्नता आ सकती है। शक्कर सबसे ज़्यादा पैनक्रियाज़ को प्रभावित करती है, जो बेहद ज़रूरी हॉर्मोन इंसुलिन के स्राव के लिए ज़िम्मेदार होता है
भोजन में मिठास के रास्ते और हैं
जिन्हें मधुमेह है या नहीं है, वे भी भोजन में साबुत अनाज, फलियों व सब्ज़ियों को शामिल करें। इस भोजन को चबाकर खाएं। इससे शरीर को मिलने वाली शक्कर सुकून से बनेगी और अलग से शक्कर या मीठा खाने की इच्छा कम होती चली जाएगी। मीठे व्यंजनों के लिए फलों को चुनें। मीठी सब्ज़ियां जैसे गाजर, पत्तागोभी, प्याज़ और लाल कद्दू को भोजन में शामिल करें। अंकुरित अनाज खाएं। शक्कर की लालसा को खट्टे, मसालेदार या तीखे ज़ायकों से प्रभावहीन करें।
( डॉ. सुनील एम जैन , जाने-माने हॉर्मोन विशेषज्ञ, टोटल डायबिटीज़ हॉर्मोन इंस्टीट्यूट के निदेशक )
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