Header Ads Widget

Responsive Advertisement

रामकथा:स्वामी-सेवक का रिश्ता कैसा होना चाहिए, ये श्रीराम और हनुमानजी से सीख सकते हैं

 

  • हनुमान जी  ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई, लंका जाकर सीता का पता लगाया, श्रीराम ने हनुमानजी को भरत के समान प्रिय माना है

बुधवार, 21 अप्रैल को श्रीराम नवमी है। रामायण में कई ऐसे सूत्र बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। स्वामी और सेवक का रिश्ता कैसा होना चाहिए, ये हम श्रीराम और हनुमानजी से सीख सकते हैं।

रामायण में रावण ने सीता का हरण कर लिया था। श्रीराम और लक्ष्मण सीता की खोज में भटक रहे थे। उस समय हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई। इसके बाद पूरी वानर सेना को सीता की खोज में भेजा गया। हनुमानजी, अंगद और जामवंत अन्य वानरों के साथ दक्षिण दिशा में समुद्र किनारे पहुंच गए।

अब समुद्र पार करके लंका पहुंचकर सीता की खोज करनी थी। सबसे पहले जामवंत ने कहा कि मैं वृद्ध हो गया हूं और मैं लंका नहीं जा सकता है। इसके बाद अंगद ने भी मना कर दिया, तब हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे।

हनुमानजी ने लंका में सीता को खोजने की बहुत कोशिश की। उनकी पहली कोशिश तो नाकाम हो गई थी। उन्होंने सोचा कि अगर सीता की खोज किए बिना वापस जाऊंगा तो अनर्थ हो जाएगा। उन्होंने एक फिर राम का नाम लेकर सीता की खोज शुरू की और इस बार उन्हें सफलता मिल गई।

अशोक वाटिका में सीता से भेंट की और देवी को श्रीराम का संदेश दिया। उस समय सीता ने हनुमानजी को अष्टसिद्धियां और नवनिधियां दीं, उन्हें अजर-अमर रहने का वरदान दिया। इसके बाद हनुमानजी ने लंका दहन किया और फिर वे श्रीराम के पास लौट आए।

सीता का पता लगाकर जब हनुमानजी श्रीराम के पास पहुंचे तो भगवान ने उन्हें गले लगा लिया। श्रीराम ने हनुमानजी से कहा था कि तुम मुझे मेरे भाई भरत के समान प्रिय हो।

सीख - श्रीराम और हनुमानजी से हम सीख सकते हैं कि अपने स्वामी के काम को पूरा के लिए सेवक को पूरी ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। अगर किसी काम में सफलता नहीं मिल रही है तो फिर से कोशिश करनी चाहिए। स्वामी को भी सेवक को पूरा सम्मान देना चाहिए। सेवक की सफलता पर उसे पुरस्कृत करना चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ