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कोरोना संक्रमण:रिकाॅर्ड में संक्रमण से 44 माैतें, जबकि काेविड श्मशान में 347 का हाे चुका अंतिम संस्कार

 

श्मशान में प्राेटाेकाॅल के तहत जारी अंतिम संस्कार। (फाइल फोटो)
  • अस्पताल में भर्ती किया ताे रिपाेर्ट आई पाॅजिटिव, माैत के बाद पर्ची पर लिखकर दिया निगेटिव

कोरोना वायरस की पहली लहर के बाद दूसरी लहर में कई लोगों की मौत हुई, लेकिन जिला प्रशासन के रिकार्ड में मात्र 44 माैत काेविड से हाेना दर्ज है। जबकि अर्जुन नगर आड़ा कांकड़ पर बनाए काेविड श्मशान में प्रतिदिन काेविड वार्ड में मृत लाेगाें के शवाें का अंतिम संस्कार हाे रहा है।

1 अप्रैल से लेकर 15 मई तक काेविड श्मशान में 347 लाेगाें का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। साेमवार काे भी काेविड श्मशान में जिला अस्पताल और अमलतास अस्पताल से काेविड वार्ड में मृत लाेगाें का नगर निगम की टीम ने काेराेना प्राेटाेकाल के तहत अंतिम संस्कार किया है। लेकिन इन का नाम भी काेविड से हुई माैत में शामिल नहीं किया है। मप्र सरकार ने कोरोना से मरने वालों के परिवार को 1 लाख रुपए की राहत राशि दी जाएगी। सीएम की घाेषणा के बाद से वह परिवार भी इंतजार कर रहे हैं, जिनके अपने काेविड संक्रमण की चपेट में आने से इस दुनिया से चले गए हैं। अस्पतालाें में भर्ती कई मरीजाें की माैत हुई, जिनका उपचार काेविड की दवाइयां देकर किया जा रहा था।

इन लाेगाें की आरटीपीसीआर शुरू में पाॅजिटिव आर्ई, जब दुनिया छाेड़कर चले गए ताे रिपाेर्ट निगेटिव थमा दी गई। कई मृतकाें का उपचार ताे सीटी चेस्ट में संक्रमण 70-90 फीसदी तक रहा, लेकिन उन्हें भी काेविड पाॅजिटिव की सूची में नहीं जाेड़ा गया।

सवाल...शासन की याेजना का कैसे मिलेगा लाभ, प्रमाण-पत्र में बता रहे मौत के दूसरे कारण

संक्रमित की माैत के बाद, डेथ ऑडिट में अन्य बीमारी बता रहे
अस्पतालाें में संक्रमिताें की माैत के बाद जब उनका प्रशासन स्तर पर डेथ ऑडिट किया जाता है ताे उसमें माैत के अन्य कारण बताए जा रहे हैं। जबकि संक्रमित व्यक्ति की आरटीपीसीआर शुरुआत में पाॅजिटिव आई। पांच से छह दिन तक उपचार चलने के बाद फिर से सैंपल लेने पर निगेटिव बता रहे और माैत के कारणाें में अधिक शुगर, ब्रेन हेमरेज, हार्टअटैक, घबराहट आदि कारणाें से माैत हाेना बताया जा रहा है।

जबकि प्रशासन काे मृतकाें की सीटी चेस्ट और सीआरपी की जांच रिपाेर्ट के आधार पर उन्हें भी पाॅजिटिव से मृत माना जाना चाहिए। इस तरह से उन्हें भी शासन की 1 लाख रु. अनुग्रह राशि का लाभ मिल सकेगा। अस्पतालाें हाे रही माैत में से 95 फीसदी अन्य बीमारी से हाेना बता रहे हैं।

माैत वाले दिन हाथ में पर्ची थमाई, निगेटिव हैं
सिविल लाइन में रहने वाले राजकिशाेर शर्मा भी काेराेना की दूसरी लहर की चपेट में आए, जिन्हें अमलतास अस्पताल के काेविड वार्ड में भर्ती करवाया था। पुत्र राहुल शर्मा ने बताया, पिता काे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। उनकी आरटीपीसीआर रिपाेर्ट पाॅजिटिव थी और सीटी चेस्ट में 80 फीसदी संक्रमण था।

उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन भी लगे, फिर भी जान नहीं बच सकी। 22 अप्रैल काे मृत्यु हाेने पर अस्पताल से हमें एक पर्ची दी, जिसमें लिखा माैत हाेने पर निगेटिव हैं। इस तरह से हम कैसे शासन की याेजना का लाभ ले सकेंगे।

माता,पिता और अंकल काे कोरोना, अब तक नहीं मिला मृत्यु प्रमाण-पत्र

राधागंज के दाे सगे भाइयाें का संयुक्त परिवार कोरोना से प्रभावित हाे गया। दाे सगे भाइयाें की मृत्यु और एक महिला की माैत काेविड अस्पताल में उपचार के दाैरान हाे गई। मृतक के पुत्र रविराजसिंह ने बताया, मेरे पिता हिम्मतसिंह काे 13 अप्रैल काे भर्ती किया, जहां रिपाेर्ट पाॅजिटिव आई।

16 काे अमलतास अस्पताल के काेविड वार्ड में माैत हाे गई। इसी बीच मेरी मम्मी सावित्रा ठाकुर काे सिटी हाॅस्पिटल के काेविड वार्ड में भर्ती किया था और उन्हाेंने भी 15 अप्रैल काे दम ताेड़ दिया। मेरे अंकल शक्तिसिंह की मौत भी अमलतास में 17 काे माैत हाे गई। अभी तक हमें तीनाें के मृत्यु प्रमाण-पत्र नहीं मिल सके हैं।

मृत्यु प्रमाण-पत्र में काेराेना से मौत का कालम नहीं
अस्पतालाें के काेविड वार्ड, काेविड आइसाेलेशन वार्ड व आईसीयू वार्ड में उपचार के दाैरान मृत संक्रमिताें में से ज्यादातर के अभी तक मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी नहीं किए हैं। जिनके जारी किए, उनके प्रमाण-पत्र में काेविड का कालम दर्ज ही नहीं किया गया। पाेर्टल पर कैंसर, टाइफाइड, निमाेनिया, हार्टअटैक, सुसाइड, एक्सीडेंट आदि से माैत के कारणाें के कालम आ रहे, काेविड का नहीं आ रहा।

निगेटिव हाेने पर नहीं करते पाॅजिटिव में शामिल
अगर मृत्यु के समय रिपाेर्ट निगेटिव हाे जाती है, उनका उपचार भले ही काेविड की दवाइयाें का चला हाे, उसे पाॅजिटिव डेथ में शामिल नहीं किया जाता। काेविड के लक्षण से संक्रमित हाेने पर मधुमेह, हाइपरटेंशन, किडनी परेशानी आदि बीमारियाें की वजह से मृत्यु हाेने पर काेविड माैत नहीं कहलाती, क्याेंकि इस तरह के मरीजाें का उपचार अस्पताल में 15 से 20 दिनाें तक उपचार करवाते रहते और निगेटिव हाे जाते हैं। -एमपी शर्मा, सीएमएचओ देवास।


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