डॉक्टर भगवन तो नहीं लेकिन भगवान से कम भी नहीं’ यह कहावत इंदौर की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना वर्मा पर सटीक बैठती है। कोरोना की दूसरी लहर में यूं तो वे रोज 15 से 18 घंटे कोविड वार्ड में मरीजों की सेवा कर रही थीं, लेकिन 17 दिन पहले वे खुद संक्रमण का शिकार हो गईं। सीनियर डॉक्टरों ने उन्हें होम आइसोलेशन में रहने के निर्देश दिए, लेकिन घर में रहकर भी अपने कर्त्तव्य से दूर नहीं हुईं।
15 दिन पहले इंदौर पुलिस के सत्यकाम ग्रुप से जुड़ीं और अकेले रह रहे सीनियर सिटीजन व फील्ड में तैनात पुलिस जवानों को होम आइसोलेशन में टेलीफोनिक उपचार दिया। इस तरह वे 3 से 4 घंटे रोज सेवाएं देती रहीं। उनकी इस कर्त्तव्य निष्ठा से शहर के 60 से ज्यादा लोग सिर्फ काउंसलिंग और प्राथमिक ट्रीटमेंट से ही कोरोना को हराकर खड़े हो गए। एएसपी प्रशांत चौबे के मुताबिक, डॉक्टर अर्चना वर्मा कई बुजुर्गों को मौत के मुंह से बाहर निकाल लाईं।
4 डॉक्टर, 12 नर्सिंग स्टाफकर्मी और 200 वॉलेंटियर जुटे हैं सेवा में
डॉ. अर्चना के मुताबिक,मैंने एएसपी से संपर्क कर लोगों को फ्री चिकित्सा देने की बात की। ग्रुप में 4 डॉक्टर, 12 नर्सिंग स्टाफ के लोग और 200 वॉलेंटियर सेवा दे रहे हैं।
गर्भवती को था 40% संक्रमण, एमटीएच में बची जान, डॉक्टर बोले- पहले दिन से सतर्क रहें ऐसे लोग
एमटीएच अस्पताल में एक गर्भवती की जान बचाई। उसे 40 फीसदी संक्रमण था। महिला की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को 24 सप्ताह का गर्भपात कराना पड़ा। आरती बंसल को 23 अप्रैल को एमटीएच अस्पताल में भर्ती किया गया था। ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होने से एनआरबीएम मास्क की जरूरत पड़ रही थी। 40 प्रतिशत निमोनिया मिला।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुपमा दवे ने बताया दो ही विकल्प थे। पहला डिलीवरी करवाकर बच्चे को बचा लें, लेकिन प्री-मेच्योर होने से रिस्क अधिक था। दूसरा विकल्प था गर्भपात, ताकि महिला के फेफड़े खुल सकें। एमटीपी के बाद सेहत में सुधार आया। 30 अप्रैल को उन्हें डिस्चार्ज किया गया। डॉ. दवे ने बताया इस बार बहुत बिगड़ी स्थिति के केस आ रहे हैं। रिस्क जोन में होने के कारण गर्भवती पर संक्रमण का असर अधिक होता है, इसलिए हमारी अपील है कि गर्भवती महिलाएं पहले दिन से सतर्क होकर इलाज करवाएं।
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