Header Ads Widget

Responsive Advertisement

जीवन मंत्र:अन्याय और अत्याचार के खिलाफ भी हर बार हिंसा ठीक नहीं, ये शरीर ही नहीं, हमारे मन और आत्मा को भी नुकसान पहुंचाती है

 

मात्मा गांधी अहिंसा के पक्के समर्थक थे। वे जब भी अहिंसा को लेकर अपनी बात रखते तो लोग उन्हें अपने-अपने तरीके से सुनते थे। एक बार किसी ने गांधी जी से पूछ लिया कि आप जो अहिंसा को लेकर इतने आग्रही रहते हैं, आपको खुद पहली बार कब अनुभव हुआ कि अहिंसा समाज और लोगों के लिए इतनी आवश्यक है।

तब गांधी जी ने उन्हें वो किस्सा बताया। किस्सा कुछ यूं था कि उन दिनों गांधी जी साउथ अफ्रीका में थे। वहां उन्हें एंग्लो-बोअर युद्ध के राहत कैंप में बतौर चिकित्सा सहायक काम करने का मौका मिला। गांधी जी खुद भी शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर हमेशा काफी गंभीर रहे। जहां वे युद्ध में घायल हुए लोगों की सेवा करते थे। वहां उन्होंने युद्ध और हिंसा की त्रासदी को बहुत नजदीक से देखा।

गांधी शुरू से ही शरीर और आत्मा को अलग-अलग देखते थे। उस राहत कैंप में युद्ध से घायल और मरे हुए लोगों को देख-देखकर उनके मन में अहिंसा का भाव आया। वे लोगों को समझाना चाहते थे कि शरीर को नुकसान पहुंचाना कितना गलत है। हिंसा से केवल शरीर ही प्रभावित नहीं होता, मन और आत्मा पर भी असर पड़ता है।

अहिंसा केवल शरीर से हो ये आवश्यक नहीं है। मन से भी किसी के प्रति आक्रामक या आक्रमणकारी होना भी हिंसा ही है।

सीखः हिंसा सिर्फ नुकसान ही पहुंचाती है। शांति के लिए आवश्यक है कि मन को भी हिंसक विचारों से दूर रखा जाए।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ