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रजिस्ट्री अनलॉक:रजिस्ट्री पर रोक हटने के बाद नया आदेश

 

  • इंदौर में हर माह करीब 400 रजिस्ट्रियां होती हैं, शासन को इससे 150 से 200 करोड़ का राजस्व मिलता है

इंदौर लॉकडाउन में बीच फिर से रजिस्ट्री का काम शुरू हो गया है। 13 मई को आए आदेश का पहले विरोध हुआ कि कोरोनाकाल में पंजीयन दफ्तर खोलना ठीक नहीं है, हालांकि अब इस काम में तेजी आ गई है। इसे देखते हुए इसमें नियमों में कुछ बदलाव किया गया है। जैसे रजिस्ट्री के लिए स्लॉट बुक कराने वाले सभी पक्षकार तय समय पर ही उप पंजीयक के दफ्तर पहुंचे। ऐसा नहीं करने पर रजिस्ट्री का स्लॉट निरस्त हो जाएगा। इस संबंध में वरिष्ठ जिला पंजीयक बालकृष्ण मोरे ने आदेश जारी कर दिए हैं। सोमवार दिनभर में शहर में 178 दस्तावेज पंजीबद्ध हुए।

अप्रैल में लगे लॉकडाउन के साथ ही प्रशासन ने रजिस्ट्रियों पर भी रोक लगा दी थी। इसी कारण प्रॉपर्टी के करीब दो हजार सौदे भी अटक गए थे। इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार ने गाइड लाइन में 30 जून तक जो राहत दी थी, उसका भी समय गुजरता जा रहा था। क्रेडाई सहित अन्य संस्थाओं ने शासन से मांग की थी कि भले ही प्रतिदिन का स्लॉट कम कर दिया जाए, लेकिन रजिस्ट्री पर लगी रोक हटा दी जाए। जारी आदेश के अनुसार सुबह 10 से शाम 5 बजे तक रजिस्ट्रियां हो सकेंगी। अधिकारी 100 फीसदी क्षमता से आएंगे, जबकि कर्मचारी 10 से 25% अनुपात में आएंगे।

कलेक्टर मनीष सिंह के मुताबिक इससे जुड़े अधिकारी और कर्मचारियों को कार्य स्थल तक आवाजाही में छूट मिलेगी। हालांकि अभी भी रियल एस्टेट को एक बड़ी राहत प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य को लेकर चाहिए, जिसके कारण मजदूरों का पलायन रुक सके। पिछले एक पखवाड़े में शहर से 25 से 30 प्रतिशत मजदूर अपने घर जा चुके हैं। इंदौर में हर महीने 300 से 400 रजिस्ट्रियां होती हैं, जिससे शासन को हर महीने 150 से 200 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। क्रेडाई के सचिव विजय गांधी के मुताबिक प्रदेश सरकार वैसे ही देश भर में सबसे ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी (12.5 प्रतिशत) मप्र में ले रही है। बता दें कि अकेले इंदौर में रियल एस्टेट का रजिस्टर्ड कारोबार सालाना 20 हजार करोड़ का है।

रजिस्ट्री अटकने से सौदा-चिट्‌ठी का धंधा फिर बढ़ने की आशंका थी। प्रशासन ने उचित समय पर निर्णय लेकर इंदौर को बड़ी राहत दी है। हालांकि शहर में रियल एस्टेट सेक्टर की पहली परेशानी रजिस्ट्री पर रोक थी, वहीं उनकी दूसरी समस्या रियल एस्टेट के निर्माणाधीन प्रोजेक्ट पर रोक भी है। 30 प्रतिशत मजदूर तो पहले अपने गांवों को जा चुके हैं, जो यहां रुके हैं, उसके सामने भी अब रोजी-रोटी का संकट है। इस सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि यदि इसमें प्रशासन राहत दे तो मजदूरों का पलायन रुक जाएगा। उनका कहना है कि अभी अधिकांश मजदूरों को बिल्डर और डेवलपर ने रोक रखा है। उनकी व्यवस्थाएं भी देख रहे हैं। रजिस्ट्री की तरह यदि प्रशासन इस पर भी सकारात्मक निर्णय लेता है तो हजारों लोगों को इससे राहत मिलेगी।

निम्न और मध्यम वर्ग को ज्यादा नुकसान
रियल एस्टेट से सीधे-सीधे 100 से ज्यादा सेक्टर का हित जुड़ा है। ईंट, रेत, सरिया, सीमेंट, पत्थर, मार्बल, गिट्‌टी, मोरम, कलर (रंगरोगन), प्लम्बर, सैनिटरी, ग्लास इंडस्ट्री, कारपेंटर, लकड़ी उद्योग, लेबर, कांट्रैक्टर, चौकीदार सहित और भी कई क्षेत्र हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।


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