- इंदौर में 825 रजिस्टर्ड ज्वेलर्स, सिर्फ 75 के पास हॉलमार्क सेंटर की मेंबरशिप
- 80 करोड़ का हॉलमार्क ज्वेलरी कारोबार है इंदौर में
- 400 करोड़ रुपए के करीब का है गैर-हॉलमार्क ज्वेलरी कारोबार
केंद्र ने 16 जून से स्वर्ण आभूषणों और कलाकृतियों के लिए हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है। फ़िलहाल इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। शुरू में यह व्यवस्था 256 जिलों में लागू होगी। हालांकि 40 लाख रुपए तक टर्नओवर वाले ज्वेलर को हॉलमार्क वाली ज्वेलरी बेचने से छूट रहेगी।
यानी इससे अधिक टर्नओवर वाले कारोबारी बुधवार से हालमार्क वाले सोने के आभूषण ही बेच पाएंगे। फिलहाल इस साल अगस्त तक ज्वेलर पर कोई पेनल्टी नहीं लगेगी। इंदौर में 825 रजिस्टर्ड ज्वेलर्स हैं, इनमें से सिर्फ 75 के पास ही हॉलमार्क सेंटर की मेंबरशिप है।
मंगलवार शाम उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल से उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने मुलाकात की थी। कारोबारियों ने आग्रह किया कि चूंकि अभी कई स्थानों पर हालमार्क संबंधी लैब की कमी है, इसलिए योजना लागू करने की तारीख बढ़ा दी जाए। लंबी बैठक के बाद देर रात तय हुआ कि योजना को शुरुआती तौर पर उन 256 जिलों में लागू किया जाएगा, जहां हॉलमार्क लैब हैं। मालूम हो, सरकार ने 2019 में स्वर्ण आभूषणों और कलाकृतियों पर 15 जनवरी, 2021 से हॉलमार्किंग अनिवार्य किए जाने की घोषणा की थी। इसके बाद से कोरोना व अन्य कारणों से योजना टलती रही थी।
टांके की ज्वेलरी गलाना पड़ सकती है
इंदौर में 1200 के करीब ज्वेलर्स हैं। इसमें से आधे तकरीबन 600 व्यापारी ही 18 कैरेट यानी 75 प्रतिशत तक शुद्धता वाला सोना का स्टॉक रखकर काम करते हैं। इंदाैर चांदी सोना जवाहरात व्यापारी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बसंत सोनी के मुताबिक आमतौर पर एक ज्वेलर के पास 50 ग्राम माल बिना हॉलमार्क का रहता है। ऐसे में जहां शहर में 600 के करीब ज्वेलर सोने का स्टॉक करके व्यापार करते हैं तो उस हिसाब से तकरीबन 30 किलो सोना व्यापारियों के पास होगा। जिसकी कीमत मंगलवार को बाजार भाव लगभग 45000 रुपए प्रति 10 ग्राम के हिसाब से 1 करोड़ 35 लाख के करीब है।
यह सोना नए नियम के मुताबिक व्यापारियाें को गलाना पड़ सकता है या फिर इसकी हॉलमार्किंग करवानी पड़ेगी। असल में यह टांका वाला सोना कहलाता है, जिसमें खासतौर पर हीरा, मोती, पन्ना आदि रत्न जड़ित आभूषण तैयार किए जाते हैं। इनमें बहुत कम हॉलमार्किंग वाले सोने का उपयोग होता है। ऐसे में सोने पर चार तरह की मार्किंग होगी।
इसमें सबसे पहले बीआईएस सर्टीफिकेट का मार्क लगेगा। फिर कैरेट लिखा जाएगा। उसके बाद हॉल मार्किंग करने वाले का स्टॉम्प लगेगा और आखिर में जिस व्यापारी ने इसे बनवाया है उसकी छाप लगेगी। इसके बाद ही सोना पूरी तरह से हॉल मार्किंग वाला माना जाएगा।
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