पीडब्ल्यूडी की प्लानिंग कितनी गजब की है कि सिर्फ दो ब्रिज की लागत बनते-बनते ही 22 करोड़ रुपए बढ़ गई। डिजाइन डिफेक्ट के कारण आए दिन इन पर हादसे होते हैं। दर्जनों लोग घायल हो चुके तो एक-दो लोग जान गंवा चुके। इनकी एक लेन तैयार किए जाने के बाद पीडब्ल्यूडी के अफसरों के पास ट्रैफिक के दबाव व अन्य समस्याओं की लंबी फेहरिस्त पहुंची।
उसके बाद बाणगंगा ब्रिज का निर्धारित बजट 7 के बजाए 23 करोड़ रुपए पहुंच गया। वहीं गाड़ी अड्डा ओवर ब्रिज अभी निर्माणाधीन है, लेकिन अब तक उसका निर्धारित बजट 21 करोड़ से बढ़कर 27 करोड़ पहुंच गया है। इनके अलावा तीन इमली ओवर ब्रिज को तैयार करने फंड के अलॉटमेंट में देरी होने से इसे समय पर पूरा नहीं किया जा सका।
ठेकेदार ने भी लागत कम करने के चक्कर में इसकी सेंटिंग को लेकर लापरवाही की। विशेषज्ञ के मुताबिक अगर पहली बार में ही बाणगंगा व गाड़ी अड्डा ब्रिज की डिजाइन फाइनल करके काम किया जाता तो अतिरिक्त खर्च हुई करोड़ों की राशि बर्बाद नहीं होती।
तीन इमली ब्रिज : पूरा होने से पहले हो गया था धराशायी
28 फरवरी 2014 को तीन इमली चौराहे पर बन रहा फ्लायओवर भरभराकर गिर गया था। इस घटना में 6 लोग घायल हो गए थे। पीडब्ल्यूडी के इस ब्रिज को फेरो कंस्ट्रक्शन कंपनी बना रही थी। मामले में बाद में कुछ अफसरों को सस्पेंड किया गया, लेकिन इससे पीडब्ल्यूडी के काम की परतें उजागर हो गई। जांच में भी खुलासा हुआ कि स्ट्रक्चर के हिसाब से कॉलम नहीं बने थे और काम की गुणवत्ता निम्न स्तरीय थी। बाद में इसका काम पूरा होने में अतिरिक्त समय के साथ एक-डेढ़ करोड़ रुपए अलग से खर्च हुआ।
827 मीटर लंबे इस ब्रिज की लागत 38 करोड़ 95 लाख रुपए निर्धारित की गई थी। इसके देरी से तैयार होने में सबसे बड़ा कारण फंड का अलॉटमेंट रहा। ऐसे में हालांकि ब्रिज की लागत में कोई खासा फर्क नहीं पड़ा, लेकिन फ्लायओवर निर्माण के दौरान मार्च 2014 में एक स्पॉन भरभराकर गिर गया था। इसमें जरूरी सेंटिंग के काम को भी दोबारा करना पड़ा।
बाणगंगा ब्रिज : 16 करोड़ ज्यादा खर्च, फिर भी औद्योगिक क्षेत्र जाम में फंसता
पहली भुजा को तैयार किए जाने के लिए जब काम शुरू हुआ तब इसका ओरिजनल टेंडर 7 करोड़ का था। इसे दो साल में तैयार करके देना था, लेकिन फंड के अलॉटमेंट में देरी और निर्माण कार्य में बाधक बन रहे अतिक्रमण के कारण काम लेट होता चला गया। इसकी दूसरी भुजा बनाने के लिए अतिरिक्त खर्च भी करना पड़ा।
एआईएमपी के पूर्व अध्यक्ष अशोक जायसवाल के मुताबिक औद्योगिक जब ब्रिज बन रहा था तब अफसरों को कहा था इसकी भुजाओं में से एक लेन सेक्टर डी की तरफ उतार देनी चाहिए। ऐसा नहीं हुआ और अब रेलवे क्रॉसिंग के कारण आएदिन जाम लगता है।
दो साल में 14 हादसे हो चुके, कई लोग घायल
बाणगंगा ब्रिज की शाखा संकरी है। डिवाइडर मोटे व बोगदे जैसे होने से वाहन चालक को फुटपाथ नहीं दिखते। इस ब्रिज के टॉप में आते ही टर्न पर हादसे होते हैं। ट्रैफिक एक्सपर्ट प्रफुल्ल जोशी, जूनी इंदौर, रावजी बाजार बाणगंगा और एमजी रोड थाने के मुताबिक दो साल में 14 हादसों में कई लोग घायल हुए।
गाड़ी अड्डा : 6 करोड़ अतिरिक्त खर्च, फिर भी लोग ट्रैफिक जाम में फंसते
21 करोड़ रुपए की लागत से 647.58 मीटर लंबे इस ब्रिज की केवल दो भुजाओं को तैयार किया गया। उद्घाटन के कुछ समय पूर्व ही अफसरों को समझ में आया कि एक भुजा की जरूरत और पड़ेगी। इसके बाद तीसरी भुजा 257 मीटर के लिए लगभग 6 करोड़ रुपए का टेंडर और निकाला।
इसके चार महीने में इसे पूरा करने की तैयारी है। गाड़ी अड्डा ब्रिज के व्यापारी अमित अग्रवाल कहते हैं कि तीसरी भुजा के कारण भी परेशान हैं। जाम लगने से लेकर वाहनों के आवाजाही में सकारात्मक हल तो निकला ही नहीं। ऐसा लगता है कि ब्रिज के बनने से कोई समाधान नहीं निकला।
दो साल में पांच बड़े हादसे, एक जान भी चली गई
इस ब्रिज पर डिवाइडर न होने से टर्न पर हादसे होते हैं। डेढ़ साल पहले इस ब्रिज पर बाइक सवार तीन युवकों की बाइक डिवाइडर से टकराई। दो घायल हो गए। वहीं राकेश नामक युवक की मौके पर ही मौत हो गई। युवक परिवार में हुई गमी में शामिल होने जा रहे थे।
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