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नगरीय निकाय चुनाव की हलचल:इंदौर में नियमों के बंधन से BJP के कई दावेदार होंगे महापौर पद के दावेदारी से बाहर; कांग्रेस से संजय शुक्ला का नाम सबसे आगे

कोरोना संक्रमण के कारण लंबे समय से टल रहे नगरीय निकाय चुनाव को लेकर अब प्रदेश में संक्रमण कम होते ही शहर में राजनीतिक हलचल होने लगी है। महापौर पद के प्रत्याशी पद के लिए जहां भाजपा में कई दावेदार हैं तो कांग्रेस की ओर से विधायक संजय शुक्ला का नाम तय माना जा रहा है। नजर इस बात पर है कि चुनाव कब होंगे और प्रत्यक्ष होंगे या अप्रत्यक्ष रूप से। अप्रत्यक्ष यानी पार्षदों में से ही चुना जाना है तो संभव है, नियमों व उम्र के बंधन में कई वरिष्ठ नेता भी होंगे जो महापौर पद की दौड़ से बाहर हो जाएंगे। वैसे ज्यादा दावेदार भाजपा में ही हैं।

डेढ़ साल पहले प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिरने और फिर भाजपा की सरकार काबिज होने के बाद यहां स्थानीय स्तर पर भी समीकरण काफी बदल गए हैं। दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया, मंत्री तुलसी सिलावट सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के भाजपा में चले जाने के बाद अब नगरीय निकाय चुनाव में महापौर पद की दावेदारी के लिए भी स्थितियां बदलेगी। अव्वल तो यह कि अगर अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव हुए तो पार्षदों में से ही महापौर पद का प्रत्याशी होगा। इसके लिए 85 वार्ड के लिए पार्षद पदों के लिए दावेदारी होगी।

अहम यह कि महापौर के लिए जो नाम भाजपा में शुरू से ही चर्चा में हैं उनमें वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे, विधायक रमेश मेंदोला, गौरव रणदिवे, गोविंद मालू, सुदर्शन गुप्ता, गोपीकृष्ण नेमा, पुष्यमित्र भार्गव आदि हैं। दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से पूर्व में ही विधायक संजय शुक्ला को संगठन से हरी झंडी मिल गई है। इसके लिए वे सक्रिय भी हो गए थे और मेल-मुलाकातों के साथ आगे की रणनीति भी शुरू कर दी थी। इस बीच कोरोना का संक्रमण बहुत बढ़ गया और चुनाव भी टल गए। बहरहाल, अब कांग्रेस में शुक्ला सहित जीतू पटवारी, विनय बाकलीवाल, अश्विन जोशी आदि के नाम फिर से चर्चाओं में हैं।

इस बीच कुछ समय पहले नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सागर में संकेत दिए गए थे कि महापौर चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ही होंगे। इसके पूर्व कमलनाथ सरकार ने इस सिस्टम को बदल दिया था। फिर शिवराज सिंह सरकार ने एक अध्यादेश लाकर इस व्यवस्था को बदल दिया था, जिसे विधानसभा के माध्यम से कानून में बदला जाना। यह काम 6 महीने में होना था। लेकिन अब इसकी छह माह की अवधि भी पूरी हो चुकी है। दूसरी ओर अब प्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने के मामले में भाजपा का विश्लेषण इसके लिए फायदेमंद नहीं है क्योंकि कोरोना काल में आमजन ने जो त्रासदी झेली उसे लेकर उनमें नाराजगी है जिससे इसका असर पड़ सकता है। मौजूदा परिस्थितियों में सरकार की रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव की है। अगर इसके लिए संघ रजामंदी हो जाती है तो संभव है अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव हो। ऐसे में भाजपा व कांग्रेस दोनों के कई वरिष्ठ नेता दौड़ से बाहर हो जाएंगे क्योंकि वे पार्षद चुनाव नहीं लड़ेंगे।



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