कहानी - दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में सभी ऋषि-मुनि और देवताओं को आमंत्रित किया गया था। वहां ब्रह्मा जी और शिव जी भी उपस्थित थे। सबसे बाद में दक्ष प्रजापति ने यज्ञ स्थल पर प्रवेश किया।
दक्ष के सम्मान में वहां उपस्थित सभी ऋषि-मुनि और देवता खड़े हो गए, सिर्फ ब्रह्मा जी और शिव जी बैठे हुए थे। दक्ष ने इन दोनों को बैठा हुआ देखकर सोचा कि ब्रह्मा जी तो मेरे पिता हैं, लेकिन शिव को मैंने मेरी पुत्री दी है, ये मेरे दामाद हैं, कम से कम इन्हें तो ससुर के सम्मान में खड़े होना चाहिए।
शिव जी को बैठा देखकर दक्ष ने टिप्पणी कर दी, 'मैंने इस औघड़ को मेरी पुत्री देकर भूल कर दी।'
ये सुनकर भी शिव जी शांत बैठे रहे। शिव जी को शांत देखकर दक्ष फिर बोला, 'मैं श्राप देता हूं, अब से इन्हें किसी भी यज्ञ का भाग नहीं मिलेगा।'
शिव जी के गण नंदी ये सुनकर गुस्सा हो गए। उन्होंने भी दक्ष को श्राप दे दिया। दक्ष की ओर से महर्षि भृगु ने शिव गणों को श्राप दे दिया। इस तरह यज्ञ स्थल पर सभी एक-दूसरे को श्राप देने लगे। सभी गुस्से में थे। सभी उठकर वहां से चले गए।
दक्ष ने अपने गुस्से और अहंकार की वजह से अच्छे काम को भी बिगाड़ दिया। दक्ष की ये भूल थी कि उसने ब्रह्मा और शिव में भेद किया। उसने अपने मान के लिए शिव को श्राप दे दिया।
सीख - जब भी घर-परिवार में कोई आयोजन हो तो अपने गुस्से और अहंकार को काबू में रखना चाहिए। इन बुराइयों की वजह से अच्छा काम भी बिगड़ जाता है। आयोजन में अगर अपमान भी हो जाए तो धैर्य बनाए रखें। किसी और दिन विवाद का निपटारा किया जा सकता है।
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