शहद का नाम सुनते ही मुंह में मिठास सी घुल जाती है। इसकी कीमत ज्यादा से ज्यादा 500 से लेकर हजार रुपए प्रति किलोग्राम होती होगी, लेकिन शहद की एक वैरायटी की कीमत 3 लाख रुपए तक है। इसे इंदौर के एक उद्यमी तैयार कर रहे हैं। यह शहद है वाइट/रॉयल जैली, जो देखने में दही जैसा होता है और स्वाद भी दही की तरह है। यह विटामिन बी-कॉम्पलेक्स का स्रोत है जो स्किन का कोलेजन बढ़ाने, जवां बनाए रखने के साथ ही प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने में कारगर है। इसकी डिमांड अमेरिका और गल्फ कंट्री में ज्यादा है।
क्या होता है सफेद शहद
इंदौर के एक युवा उद्यमी हेमेंद्र सिंह जादौन ने बताया कि मधुमक्खियों में सात ग्रंथियां होती हैं। इसमें से एक ग्रंथी में रॉयल जेली बनती है, जो देखने में पतले दही के समान होती है। उसका स्वाद भी लगभग दही की तरह होता है। छत्ते में जो बड़ा घर होता है वह रानी मधुमक्खी के अंडे का घर होता है। इसमें रानी मधुमक्खी के अंडे पलते हैं। इसमें श्रमिक मुधमक्खियां ज्यादा से ज्यादा रॉयल जेली बनाकर उस घर में छोड़ती हैं ताकि रानी मधुमक्खी तैयार हो सके। मधुमक्खी छत्ते में ऐसे बड़े घरों की संख्या बढ़ा देते हैं ताकि श्रमिक मक्खियां अधिक से अधिक संख्या में रॉयल जेली लाकर वहां संग्रहित करें। चौथे दिन ड्रापर से रॉयल जैली निकाल लिया जाता है। अगर समय पर नहीं निकाला जाए तो रानी मधुमक्खी का लार्वा छठे दिन पूरे रॉयल जैली को खा जाएगा।
रॉयल जैली के लाभ क्या हैं?
रॉयल जैली अमेरिका और गल्फ कंट्री में ज्यादा इस्तेमाल होती है। इसमें बीमारियों से लड़ने, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, बांझपन और स्तन कैंसर जैसी बीमारियों को दूर करता है।
- इसमें विटामिन बी कॉम्प्लेक्स होता है
- शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, खासकर एलर्जी के खिलाफ
- त्वचा के स्वास्थ्य के लिए कोलेजन स्तर बढ़ाता है
- शहद लंबे समय से घाव भरने में मदद करने के लिए
- रक्तचाप को कम करने में मदद करता है
- बालों की देखभाल के लिए
इसका दुष्प्रभाव भी है
रॉयल जैली के ज्यादा उपयोग से वजन घटने, पेट की असुविधा या चेहरे पर दाने जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकता है। मेमोरियल स्लोअने-केटरिंग कैंसर सेंटर का कहना है कि आपके पास एस्ट्रोजेन-रिसेप्टर पॉजिटिव कैंसर है तो रॉयल जेली उत्पादों से बचना चाहिए, क्योंकि जैली में यौगिक कैंसर कोशिकाओं को उत्तेजित कर सकते हैं।
…हर स्टेट की फल और फसल से तैयार हो रहा है शहद का फ्लवेर, जल्द ही केसर का भी स्वाद
उद्यमी हेमेंद्र सिंह जादौन ने शहद के उत्पादन में अनूठा प्रयोग किया है । वह अपनी मधुमक्खियों को देश के अलग-अलग शहरों में ले जाकर इनसे अलग-अलग फ्लेवर का शहद बना रहे हैं। नागपुर में संतरा, बिहार में लीची, मध्य प्रदेश के गुना में धनिया, उत्तरप्रदेश में बेर, महाराष्ट्र में जामुन और राजस्थान में सरसों फ्लेवर का शहद तैयार कर रहे हैं। जादौन अपनी मधुमक्खियों के बक्सों को ट्रक के जरिए देश के उन क्षेत्रों में ले जाता हैं, जहां अलग-अलग खेती होती है। अब जादौन अपनी मधुमक्खियों को लेकर कश्मीर जाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि वहां केसर फ्लेवर का शहद तैयार किया जाएगा।
फसलों के अनुसार मधुमक्खियों को प्रदेशों में ले जाते हैं
पहले से चिह्नित खेतों के पास ढाई महीने के लिए रख देते हैं । मधुमक्खियां उस क्षेत्र की फसलों पर उगे फूलों से पराग लेती हैं और शहद बनाती हैं। इससे उस शहद में उस इलाके में जो फूल अधिक होते हैं, उसका फ्लेवर आ जाता है। वर्तमान में जादौन के पास 250 बाक्स हैं। एक बाक्स से 35 किलो शहद निकलता है। इस तरह वह ढाई महीने में करीब 8,500 किलो शहद तैयार कर लेते हैं।
किसान को भी होता है फायदा
मधुमक्खियों को जिन खेतों में छोड़ा जाता है, वहां की पैदावार करीब 20% तक बढ़ जाती है। इससे किसानों को भी फायदा होता है। कई किसान भी मधुमक्खी पालन इसलिए करते हैं, ताकि उनकी आय बढ़ सके और पैदावार अच्छी हो सके, लेकिन वह फसल की कटाई के बाद मधुमक्खियों को छोड़ देते हैं।
सभी फूल नहीं होते मधुमक्खियों का भोजन
जानकारों की मानें तो मधुमक्खियां सभी फूलों पर नहीं बैठती है और न ही उनसे वह शहद बनाती हैं। हेमेंद्र का कहना है कि वह अलग-अलग महीनों में सभी मधुमक्खियों को लेकर अलग-अलग जगह सफर करते हैं। जिस इलाके में सही मौसम रहता है वहीं पर इन मधुमक्खियों को ले जाया जाता है
50 बॉक्स से ढाई महीने में 1KG तैयार होती है शहद
हेमेंद्र ने बताया कि एक किलो शहद तैयार करने में 50 बॉक्स लगते हैं। एक बॉक्स में 5 हजार मधुमक्खियां होती हैं। ढाई महीने में यह तैयार हो पाता है।
मधुमक्खियों के महीनेवार भोजन स्रोत
- जनवरी : सरसों, तोरियां, कुसुम, चना, मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस इत्यादि।
- फरवरी : सरसों, तोरियां, कुसुम, चना ,मटर, राजमा, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस, प्याज, धनिया, शीशम इत्यादि।
- मार्च : कुसुम, सूर्यमुखी, अलसी, बरसीम, अरहर, मेथी, मटर, भिंडी, धनियां, आंवला, नींबू, जंगली जलेबी, शीशम, यूकेलिप्टस, नीम इत्यादि।
- अप्रैल : सूरजमुखी, बरसीम, अरण्डी, रामतिल, भिन्डी, मिर्च, सेम, तरबूज, खरबूज, करेला, लोकी, जामुन, नीम, अमलतास इत्यादि।
- मई: तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम, तरबूज, खरबूज, खीरा, करेला, लोकी, इमली , कद्दू, करंज, अर्जुन, अमलतास इत्यादि।
- जून : तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम, तरबूज, खरबूज, खीरा, करेला, लोकी, इमली, कद्दू, बबुल, अर्जुन, अमलतास इत्यादि।
- जुलाई : ज्वार, मक्का, बाजरा, करेला, खिरा, लोकी, भिन्डी, पपीता ।
- अगस्त: ज्वार, मक्का, सियाबिन, मुंग, धान, टमाटर, बबुल, आंवला, कचनार, खिरा, भिन्डी, पपीता इत्यादि।
- सितंबर: बाजारा, सनई, अरहर, सोयाबीन, मूंग, धान, रामतिल, टमाटर, बरबटी, भिंडी, कचनार, बेर इत्यादि।
- अक्टूबर: सनई, अरहर, धान, अरंडी, रामतिल, यूकेलिप्टस, कचनार, बेर, बबूल ।
- नवंबर : सरसों, मटर, अमरुद, शहजन, बेर, यूकेलिप्टस, बोटलब्रश।
- दिसंबर: सरसों, राइ, चना, मटर, यूकेलिप्टस, अमरुद।
पौधों के औषधीय गुण शहद में आ जाते हैं
आयुर्वेद में मधुमक्खी से अलग-अलग शहद तैयार करने और उनके फायदे बताए गए हैं। जिस औषधि पौधे या फल से शहद तैयार हो रहा है, उसके गुण भी उसमें मौजूद होते हैं। इसका औषधीय फायदा भी होता है। केसर का उपयोग आयुर्वेद की कई दवाइयों में होता है। केसर से तैयार शहद में उसकी गंध और स्वाद भी होता है।
डॉक्टर अखिलेश भार्गव, एमडी, अष्टांग आयुर्वेदिक काॅलेज
अलग फ्लेवर में तैयार शहद के गुण भी अलग होते हैं। विभाग ने युवा उद्यमी हेमेंद्र सिंह जादौन को मधुमक्खी पालन की तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई। इसके बाद जादौन ने उसमें और शोध कर अलग-अलग फ्लेवर के शहद तैयार करने पर काम किया ।
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