- भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था इस एकादशी के बारे में, द्वापर युग से जुड़ी है इस व्रत की कथा
सावन महीने में आने वाली पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत और उपवास करने की परंपरा है। पुराणों में इसके साथ पौष महीने की एकादशी को भी खास माना गया है। क्योंकि इन दोनों के व्रत से संतान सुख और समृद्धि मिलती है। इसलिए इन दोनों को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त
एकादशी तिथि की शुरुआत: सुबह 4:00 बजे (18 अगस्त)
एकादशी तिथि खत्म: रात 01:20 (19 अगस्त)
श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत विधि
एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन व्रत करने वाले को सात्विक आहार लेना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु के बाल गोपाल रूप की पूजा करें। रात में भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। उसके बाद द्वादशी के दिन के सूर्योदय के साथ पूजा संपन्न की जानी चाहिए। इसके पश्चात व्रत का पारण किसी भूखे जरूरतमंद या फिर पात्र ब्राह्मण को भोजन करवाकर करना चाहिए।
इस व्रत की कथा
युद्धिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से श्रावण एकादशी के महत्व को बताने का आग्रह किया। तब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन वह पुत्र-विहीन था। जब महामुनि लोमेश के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।
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