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पुलिस के हत्थे चढ़ा भू-माफिया मद्दा का भाई:20 हजार के इनामी कमलेश ने चित्तौड़गढ़ किले के पास धर्मशाला में काटी फरारी

 

कमलेश को पुलिस ने रंगवासा से पकड़ा, वह दाढ़ी बढ़ाकर पुलिस को चकमा दे रहा था। - Dainik Bhaskar
कमलेश को पुलिस ने रंगवासा से पकड़ा, वह दाढ़ी बढ़ाकर पुलिस को चकमा दे रहा था।

6 महीने से फरार भू-माफिया मद्दा का भाई आखिरकार SIT की गिरफ्त में आ ही गया। आरोपी ने मजदूर गृह निर्माण संस्था के उपाध्यक्ष के पद पर रहकर फर्जीवाड़ा किया था। पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया था। फरारी के दौरान वह अलग-अलग स्थान पर दाढ़ी बढ़ाकर छिपता रहा। इस दौरान उसने काफी समय चित्तौड़गढ़ में किले के पास स्थिति एक धर्मशाला में बिताया।

ASP राजेश रघुवंशी के मुताबिक आरोपी कमलेश कुमार पिता स्व. आंनदीलाल जैन निवासी गिरधर नगर न्यू महेश नगर है। मुखबिर ने सूचना दी थी कि वह रंगवासा इलाके में एक घर में छिपा है। जिसके बाद टीम ने उसे घेरांबदी कर दबोच लिया। वह मजदूर पंचायत गृह निर्माण संस्था से जुड़ा था।

छह महीने से फरार था

SIT की टीम के मुताबिक आरोपी करीब 6 महीने से फरार चल रहा था। उस पर 20 हजार रुपए इनाम घोषित था। आरोपी चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) भाग गया था। यहां पर उसने किले के पास स्थिति एक धर्मशाला में छिपकर फरारी काटी। कुछ समय बाद उसने अपना ठिकाना बदल दिया था। इसके बाद वह अलग अलग कई शहरों में दाढ़ी बढ़ाकर घूमता रहा।

पुलिस से बचने के लिए बढ़ा ली थी दाढ़ी

फरारी के दौरान कमलेश ने अपनी दाढ़ी बढ़ाकर पहचान छिपाई थी। जिसके चलते पुलिस को तलाशने में बहुत परेशानी आई। कमलेश को दबोचने के लिए अलग-अलग टीमों ने राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, यूपी और हरियाणा में भी दबिश दी थी। अभी वह रंगवासा में सौरभ जैन के किराये के मकान में छिपा हुआ था। उसके पास से टीम को 5 मोबाइल और 8 सिम मिली है।

भूमाफिया मद्दा को भी तलाश रही पुलिस

आरोपी कमलेश से दीपक मद्दा उर्फ दिलीप सिसोदिया के बारे में टीम पूछताछ कर रही है। मद्दा कमलेश का बड़ा भाई है। मद्दा ने उसे 2005-06 में मजदूर पंचायत गृह निर्माण सहकारी संस्था में उपाध्यक्ष बनाया था। इतना ही नहीं उसने संस्था का बैंक खाता नंदा नगर सहकारी साख मर्यादित बैंक में खुलवाकर उसे अकाउंट होल्डर बनाया था। उस दौरान खाते से लाखों का वित्तीय लेने-देन किया गया था। संस्था के प्लाट धारकों की जमीन को फर्जी तरीके से सौदा कर दूसरे के नाम पर रजिस्ट्री कर दी गई थी। इस कारण सैकड़ों प्लाट धारक प्लाट के लिए भटकने को मजबूर हो गए।

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