सिर्फ शराब पिने के कारण ही लीवर खराब नहीं होता, बल्कि मोटापा भी इसकी प्रमुख वजह में से एक है। अगर लीवर पर "फैट' जमा हो जाए तो यह उसे डैमेज तक कर सकता है। देश में करीब 30 से 40 फीसदी आबादी ऐसी है जिन्हें यह समस्या है लेकिन किसी तरह के लक्षण सामने नहीं आने के कारण उन्हें पता नहीं चलता। यह बात फोर्टिस अस्पताल के निदेशक डॉ. विवेक विज ने कही। वे अब तक 800 से ज्यादा लीवर ट्रांसप्लांट कर चुके हैं। वे यहां के चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में लाइव लीवर ट्रांसप्लांट करने के लिए इंदौर आए थे। कोविड-19 संक्रमण के पहले देश में हर साल औसतन 1500 से 2000 ट्रांसप्लांट होते थे, लेकिन अब यह संख्या 500 से एक हजार पर आ गई है।
उन्होंने कहा कि यह एक साइलेंट कीलर की तरह हैं, क्योंकि यह ऐसी समस्या है, जिसके लक्षण तुरंत नहीं आते हैं। लीवर पर धीरे-धीरे ना दिखने वाली वसा जमा होने लगती है। देश की बात करें तो कम से कम 30 से 40 करोड़ की आबादी को यह समस्या होगी, लेकिन उन्हें इसका पता नहीं है। इनमें से 5 से 10 प्रतिशत में यह लीवर को डैमेज करने लगता है। यानी तीन से चार करोड़ की आबादी आने वाले समय में लीवर की बीमारी से पीड़ित हो सकती है। इसलिए वजन को नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है। बीमारी के मेटाबोलिज्म पर बात करते हुए भी उन्होंने कहा कि ऐसा भी देखा गया है कि कुछ लोग बहुत दुबले होते हैं लेकिन उनमें भी यह समस्या होती है। इसे मेटाबोलिज्म सिंड्रोम कहते हैं।
57 साल के मरीज का लाइव ट्रांसप्लांट, अब तक 12 ट्रांसप्लांट हो चुके
चोइथराम अस्पताल में डॉ. विज, पेट रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय जैन और उनकी टीम ने 57 साल के मरीज का लाइव लीवर ट्रांसप्लांट किया हैै। मरीज के बेटे ने उन्हें लीवर डोनेट किया। यहां उन्होंने देश में लीवर ट्रांसप्लांट और कोरोना संक्रमण के कारण मरीजों पर हुए प्रभाव पर बात करते हुए डॉ. विज ने बताया कि कोविड-19 संक्रमण के पूर्व देश में हर साल औसतन 1500 से 2000 ट्रांसप्लांट होते थे, लेकिन अब यह संख्या 500 से एक हजार पर आ गई है। जिन मरीजों की स्थिति स्थिर थी, वे अब खराब स्थिति में हमारे पास पहुंच रहे हैं। उन्होंने लीवर ट्रांसप्लांट की नई तकनीकों पर भी बात की। देश में वे एकमात्र सर्जन हैं, जिनके यहां लेप्रोस्कोपिक पद्धति से लीवर ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। दुनिया में सिर्फ तीन-चार सेंटरों पर ही इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अस्पताल के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. अमित भट्ट और डॉ. सुरेश चांदीवाल ने बताया कि हमारे अस्पताल में अब तक 12 लीवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। इनमें से दो लाइव लीवर ट्रांसप्लांट हैं।
कोल्ड ड्रिंक्स में सबसे ज्यादा फ्रक्टोस
पेट रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय जैन ने बताया कि फैटी लिवर की समस्या के साथ डायबिटीज भी बड़ी समस्या बनकर सामने आया है, क्योंकि उसका असर लीवर पर भी होता है। इसलिए डायबिटीज को नियंत्रित करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि कोल्ड ड्रिंक्स में सबसे ज्यादा फ्रक्टोज पाया जाता है जो सेहत के लिए खराब होता है। नॉन-अल्कोहलिक लोगों में भी लीवर की बीमारी देखी जाती है। इसकी कई वजह है जिनमें मोटापा सबसे बड़ी वजह है। इससे बचने का एक ही उपाय है कि खान-पान को नियंत्रित करें और रोजाना व्यायाम करें। व्यायाम करना जरूरी है। यदि इसे जीवनशैली में शामिल नहीं किया तो आने वाले समय में यह समस्याएं बढ़ेंगी। वर्तमान में ओपीडी में आने वाले हर दस में से तीन से चार मरीजों में यह समस्या देखने में आ रही है।
साल में एक बार जांच जरूरी
कुछ लक्षण सामने आने के बाद यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति में लीवर संबंधी समस्या आ रही है लेकिन "फैटी-लीवर' की समस्या में किसी भी तरह के लक्षण सामने नहीं आते है। इसलिए सालभर में एक बार दो तरह की जांच करवाना चाहिए। डॉ. विज ने बताया कि हर व्यक्ति को सालभर में एक बार अल्ट्रासाउंड और लीवर की जांच करवा लेना चाहिए। आमतौर पर यह 25 से 30 साल से अधिक उम्र के लोगों में समस्या हाे सकती है।
इन वजह से लीवर हो सकता है डैमेज
- हेपेटाइटिस बी या सी
- शराब का सेवन
- फैटी लीवर
- दवाइयों का गलत सेवन या अत्यधिक सेवन
- शरीर में कॉपर की मात्रा बढ़ना या इम्युनिटी कम होना
सामान्य लक्षण
यदि किसी व्यक्ति को बिना कारण थकान महसूस हो, पैरों में सूजन, पेट का फूलना, पीलिया या आंतों से रक्तस्त्राव आदि लक्षण हो तो यह लीवर संबंधी समस्या भी हो सकती है। इसलिए जांच जरूर करवाए।
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