7 मार्च 2019 की वो रात शायद यह चार पुलिकर्मी पुलिसकर्मी सहित होटल में फंसे हुए 23 लोग कभी नहीं भूल पाएंगे जब इन चार जवानों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए, सभी को मौत के मुंह से बाहर निकाला था।दहशत के वह 3 घंटे चारों पुलिसकर्मियों ने किस तरह से अपनी और अपने परिवार की परवाह न करते हुए दूसरे के परिवारों को बचाया था।
साहस के वो तीन घंटे
तारीख 7 मार्च 2019 समय 6:15 शाम को कंट्रोल रूम के वायरलेस सेट पर मैसेज आता है, कि तुकोगंज थाने के समीप सम्राट होटल पर आग लगी है। जिसके बाद बीट पर मौजूद राहुल जाट और संजीव धाकड़ मौके पर पहुंच कर तुरंत अपने थाना प्रभारी तहजीब काजी को सूचना देते हैं। उस वक्त तहजीब काजी अपने साथी जवान लोकेश गाथे के साथ इलाके में भ्रमण कर रहे थे। जैसे ही वायरल इस पर मैसेज सुना कि सम्राट होटल में आग लग गई है। लोकेश गाथे ने 80 की स्पीड पर गाड़ी भगाते हुए एमजी रोड स्थित होटल पर पहुंचते हैं लेकिन इतना भी समय नहीं था कि गाड़ी को होटल तक ले जाया जाए इसलिए दूसरी तरफ लोकेश ने गाड़ी को खड़ा किया और थाना प्रभारी और लोकेश सड़क पर बने डिवाइडर से कूदते हुए होटल पहुंचते हैं।
तुरंत बीट के जवानों से चड़ाव ) लाने के लिए कहा। होटल के कमरों से लोगों की चीखने की आवाज लगातार आते जा रही थी। चड़ाव से सबसे पहले बीट के जवान सहित थाना प्रभारी तहजीब दूसरी मंजिल पर पहुंचे और उन्होंने अपना हाथ खिड़की पर लगे कांच पर दे मारा और अंदर दाखिल हुए होटल के अंदर इतना अधिक धुआं था कि कोई किसी को देख नहीं पा रहा था।
लेकिन आवाजें लगातार आती जा रही थी,जिसके बाद जवानों ने अपने रुमाल को निकाल कर मुंह पर बांध लिया लेकिन इसके बाद भी सिर्फ आवाजें आ रही थी। अंदर दाखिल होने के बाद दोनों जवानों ने अपने मोबाइल के टॉर्च निकाले लेकिन कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लोकेश लगातार होटल में चैकिंग के लिए जाया करते थे, इसलिए उन्हें मालूम था कि थोड़ी दूर पर लॉबी है जहां पर कुछ खिडकीया है। उन्होंने थाना प्रभारी को बताया और सभी जवान लॉबी की और चल पड़े। जिसके बाद पीछे बनी कुछ खिड़कियों के कांच फोड़े जिससे धुआं बाहर की और निकलने लगा और होटल में कुछ दिखाई देने लगा।
महिला फोन पर माँ बाप से कह रही थी कांच फोड़ो नही तो बाहर नही आओंगे
जिस वक्त थाना प्रभारी तहजीब काजी मौके पर पहुंचे थे ।एक महिला फोन लगाकर पांचवी मंजिल पर फंसे अपने बुजुर्ग मां-बाप को लगातार फोन लगाकर यह कह रही थी कि कांच फोड़ो नहीं तो बाहर नहीं निकल पाएंगे और बार-बार फोन के स्पीकर पर कमरे के अंदर की आवाज पुलिसकर्मियों को सुनाई दे रही थी। जिसके बाद थाना प्रभारी ने अपने तीनों जवानों को पांचवी मंजिल पर ले जाकर बुजुर्ग महिला को भी बचाया था।
कुछ को कंधो पर कुछ और सहारे से निकाला
होटल की दूसरी मंजिल पर जाते ही चारों पुलिसकर्मियों ने किस-किस कमरे से आवाज आ रही है। उसकी और ध्यान देना शुरू किया और लगातार होटल के कमरों के दरवाजों को ठोकते हुए अंदर कोई है यह लगातार पूछने लगे। जहां से आवाज आती तुरंत दरवाजा खोलकर जवानों ने अपने साथ ले जाकर चढ़ाव से नीचे उतारते लगभग 20 मिनट के अंतराल पर दमकल कर्मी भी मौके पर पहुंच गए थे ।और उन्होंने आग बुझाने का काम शुरू कर दिया था।
चौथी मंजिल पर फंसी थी 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला
चारों जवान होटल के अंदर से धोने को चीरते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे वही चौथी मंजिल से एक व्यक्ति की आवाज आती है कि मेरी मां कमरे के अंदर होती है कोई उसे बचा लें तभी चारों जवान तुरंत चौथी मंजिल पर पहुंचते हैं और दरवाजा तोड़कर बुजुर्ग अम्मा को निकालते हैं उस वक्त तक महिला बेहोश हो चुकी थी सभी थाना प्रभारी ने हिम्मत दिखाते हुए महिला को बिस्तर की चादर खींच उसमें लपेटा और दोनों तरफ से जवानों ने पकड़ कर उसे नीचे उतारा।
तत्कालीन थाना प्रभारी तहजीब काजी-- अपनी सर्विस में अब तक मैनें चार अलग-अलग रेस्क्यू ऑपरेशन कर चुका हूं। इससे पहले 2013 में खातेगांव के समीप बाढ़ आई थी। उस वक्त बाढ़ में फंसे कई लोगों की जान बचाई गई थी। वर्ष 2018 में खातेगांव में एक बच्चा बोरिंग के अंदर गिर गया था 36 घंटे रेस्क्यू करने के बाद उसकी जान बचाई थी। सम्राट होटल में लगी आग के वक्त केवल एक ही बात ज़हन में आ रही थी। कि यदि इनमें से किसी को कुछ हो गया तो फिर थाना प्रभारी होने का क्या मतलब
प्रधान आरक्षक लोकेश गाथे - भास्कर से अपना अनुभव सांझा करते हुए लोकेश ने बताया कि परिवार में माता-पिता पत्नी और दो बच्चे हैं। लेकिन जिस वक्त आग का यह भयावह मंजर देखा तो परिवार भूल वह केवल होटल में फंसे 23 लोगों की जान की सोच रहे थे एक पल खयाल आया था। कि घर में बच्चे हैं। लेकिन जिस वक्त हम गाड़ी से उतरकर होटल के वहां पहुंचे थे वर्दी देखकर लोगों के चेहरे पर जो भरोसा और जो विश्वास दिखाई दे रहा था उस कारण से परिवार को हम भूल गए थे । मेरी लगभग 13 वर्ष की सर्विस हो गई है लेकिन उस दिन कब भयानक मंजर नहीं बुलाता क्योंकि चारों तरफ जो चीखे सुनाई दे रही थी। वह आज भी कानों में गूंजती है।
आरक्षक संजीव धाकड़-- नौकरी को लगभग 10 वर्ष हो गए हैं लेकिन 2019 की बारात जिस समय होटल पर हम पहुंचे थे मां बाप और भाई बहन का ख्याल नहीं आया परिवार में दो छोटे बच्चे भी है लेकिन केवल यह लग रहा था कि वर्दी को देखकर व्यक्ति का जो विश्वास जगता है उससे हमें हिम्मत आई और हम सभी की जान बचाने में लग गए थे
आरक्षक राहुल जाट-- हादसे के 4 माह पहले ही मेरे घर पर खुशियां आई थी और एक नन्हे बालक ने मेरे घर में जन्म दिया था लेकिन धुआं के गुबार में मां-बाप और बच्चे की चिंता नहीं दिखी और संजीव और मैं जब होटल पर पहुंचे थे तो जिस तरह से लोगों का हुजूम हम से उम्मीदें कर रहा था सिर्फ एक ही बात मन में आई थी अब सभी लोगों की जांच किसी तरह से बचाना है।
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