सावन के महीने में शिव की भक्ति में रमने वाले भक्त इंदौर के अमरनाथ के दर्शन करने के साथ हरियाली और पिकनिक स्पॉट का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो महू जाम गेट रोड पर आ सकते हैं। यहां सैकड़ों फिट नीचे बाबा एक गुफा में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। यहां का प्रकृतिक दृश्य अमरनाथ की चोटी से कम नहीं है, इसलिए इसे इंदौर का अमरनाथ भी कहां जाता है। यहां अश्वत्थामा के पूजा करने से भी लोगों की कहानियां जुड़ी है।
हम बात कर रहे हैं जामगेट के पास चोरल रिसोर्ट के नीचे से गुजरने वाले रास्ते की। जहां एक पहाड़ के करीब पांच सौ से ज्यादा फीट नीचे बाबा भोलेनाथ का पवित्र मंदिर है। इस मंदिर को खोदरेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। आसपास के गांव के लोग इसे छोटे अमरनाथ भी कहते हैं।
पकडंडी सा रास्ता और मनोरम दृश्य
यहां पकडंडी से रास्ता नीचे जाने के लिए बना हुआ है। जिसमें एक स्थान पर अपना वाहन खड़ा कर पैदल ही जाया जा सकता है। यहां कुछ सालों पहले नीचे तक जाने के लिए कच्चा रास्ता हुआ करता था। जिसमें बारिश के दिनों में यहां जाना असंभव था, लेकिन मंत्री उषा ठाकुर के यहां से विधायक चुने जाने के बाद यहां कुछ विकास कार्य करवाकर सीमेंट की सीढ़ियां ओर रेलिंग लगाई गई है। जिससे लोगों को आने जाने का रास्ता सुगम हो गया।
क्यों कहते हैं खोदरेश्वर महादेव
यह शिव मंदिर पहाड़ों की खो में स्वयंभू है। जिसमें इसे पूर्व में ही खोदरेश्वर महादेव का नाम दिया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां अश्वत्थामा भी आकर पूजा करते हैं, क्योंकि यहां छह बजे के बाद किसी का भी आना जाना सम्भव नहीं है। यहां 6 बजे के बाद पहाड़ियों के बीच में जुगनू चमकते हुए मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
16 गांव का दृश्य, कई तालाब और नदियां
पहाड़ियों के बीच में बने इस शिव मंदिर में दर्शन करने के साथ आप प्राकृतिक मनोरम दृश्य को भी निहार सकते हैं। यहां पहाड़ के ऊपरी हिस्से से करीब 16 गांव दिखाई देते हैं। जिसमें कई तालाब भी यही से देखे जा सकते हैं। बारिश के दिनों में यहां झरने भी शुरू हो जाते हैं। जिसमें प्रकृति अपनी अलग ही छटा बिखेरती है। जिसमें मोर और बंदर भी काफी संख्या में दिखाई देते है। यहां काफी कम लोगों का आना जाना होता है। शहर के कुछ ही दूरी पर छोटे अमरनाथ की जानकारी काफी कम लोगों तक ही है।
कैसे पहुंचे यहां
इंदौर से मंडलेश्वर के रास्ते में जाम गेट से पहले चोरल रिसोर्ट के नीचे से भी इसका रास्ता जाता है। यहां करीब 500 से 600 किलोमीटर कच्चे रास्ते से गाड़ी अंदर ले जाने के बाद वाहन खड़ा कर पहाड़ों के बीच से इसमें निचे जाना पड़ता है।
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