कहानी - डॉ. राजेंद्र प्रसाद को गुस्सा बहुत कम आता था, लेकिन वे सख्त स्वभाव के इंसान थे। राष्ट्रपति भवन में उनका एक निजी कर्मचारी था तुलसी। तुलसी सीधा-साधा था और काम भी बहुत करता था, लेकिन हड़बड़ाहट की वजह से कई बार चीजों को गिरा देता था। कभी-कभी उससे महंगी चीजें भी टूट जाती थीं।
डॉ. प्रसाद को तुलसी से यही शिकायत रहती थी, लेकिन वे अपने कर्मचारी को डांटना नहीं चाहते थे। डॉ. प्रसाद को किसी ने हाथी दांत से बना पेन भेंट किया था। एक दिन वही पेन तुलसी के हाथ से गिरकर टूट गया। अब तो डॉ. प्रसाद के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने खुद को शांत किया और विचार किया कि इसे क्या डांटना? उन्होंने तुलसी से सिर्फ इतना कहा, 'अभी तुम यहां से चले जाओ और मेरे निजी कमरे की सेवा मत किया करो।'
तुलसी के जाने के बाद डॉ. प्रसाद ने अपने निजी सचिव को बुलाया और कहा, 'ये व्यक्ति हमारे निजी कक्ष की सेवा में नहीं रहेगा। इसे कहीं और लगा दो।'
सचिव ने तुलसी को माली की भूमिका में बाग में लगा दिया। अगले दिन डॉ. प्रसाद को जब तुलसी नहीं दिखा तो उन्हें याद आया कि मैंने तो उसे यहां से हटवा दिया है। एक-दो दिन तक जब तुलसी दिखा नहीं तो वे बेचैन हो गए। उनको लगता था कि तुलसी की ईमानदारी और परिश्रम बहुत अच्छा था। गड़बड़ थी उसकी हड़बड़ाहट। तुलसी इतने प्रेम से काम करता था कि उसकी अलग ही बात थी।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उसे बुलाया और कहा, 'तुलसी तुम गलतियां करते हो तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। जब तुम सेवा करते हो तो तुम्हारा समर्पण देखकर मैं बहुत प्रभावित हूं। तो तुम प्रयास करो कि ये हड़बड़ाहट दूर हो जाए और मेरे साथ रहो। मुझे किसी ईमानदार व्यक्ति को अपनी सेवा से हटाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है। मेरा मन भारी है।'
ये बातें सुनकर तुलसी की आंख में आंसू आ गए। डॉ. प्रसाद ने उससे कहा, 'जब भी कोई काम करो तो पहले अपनी आंखें बंद करके खुद को शांत करो। शांत रहना उसे सिखाया भी। धीरे-धीरे तुलसी की हड़बड़ाहट खत्म हो गई।
सीख - जो लोग निष्ठा के साथ हमसे जुड़े हैं, उनकी बड़ी गलतियों को भी क्षमा कर देना चाहिए। प्रयास करें कि उस व्यक्ति की कमजोरियों को दूर किया जा सके।
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