कहानी - श्रीराम और लक्ष्मण की परख करने के लिए सुग्रीव ने हनुमान जी को भेजा था। सुग्रीव जानना चाहते थे कि कहीं इन दो राजकुमारों को बाली ने मुझे मारने के लिए तो नहीं भेजा है।
श्रीराम और लक्ष्मण के सामने हनुमान जी ब्राह्मण के वेश में खड़े हुए थे और जब परिचय हुआ और हनुमान जी पहचान लिया कि ये राम-लक्ष्मण हैं तो उनके चरणों में गिरकर प्रणाम किया।
श्रीराम ने हनुमान जी को उठाया और अपने गले से लगा लिया। राम जी ने कहा, 'हनुमान हम तुम्हें पहचान नहीं सके तो इस बात का बुरा मत मानना। सच तो ये है कि तुम मुझे लक्ष्मण से भी ज्यादा प्रिय हो। भले लोग कहते हैं कि मैं पक्षपात नहीं करता, मेरे लिए सभी एक जैसे हैं, लेकिन मुझे जो सेवक हैं, वे बहुत प्रिय हैं।'
इस प्रसंग में श्रीराम कहते हैं कि मुझे हनुमान लक्ष्मण से भी अधिक प्रिय हैं तो ऐसा लगता है कि जो भाई उनके लिए सब कुछ छोड़कर जंगल आया और एक व्यक्ति जो अभी-अभी मिला, उससे तुलना करके उससे कह दिया कि तुम मुझे लक्ष्मण से अधिक प्रिय हो। राम व्यक्ति को पहचानने की कला में पारंगत थे। वे जानते थे कि अगर व्यक्ति को ठीक से पहचान लिया तो भविष्य में उसका उपयोग बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है। वे समझ गए थे कि हनुमान में अद्भुत प्रतिभा है और एक दिन ये लक्ष्मण से ज्यादा उपयोगी साबित होगा। बाद में जब लक्ष्मण मूर्छित हुए तो हनुमान जी ही संजीवनी बूटी लेकर आए थे।
सीख - इस प्रसंग में राम जी हमें एक संदेश दे रहे हैं कि जब किसी व्यक्ति से पहली बार मिलते हैं तो उसकी योग्यता, उसकी क्षमता को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। अगर हमने व्यक्ति के अंदर की श्रेष्ठ संभावनाओं को ठीक से समझ लिया तो बड़े-बड़े अभियान भी सफल हो सकते हैं। हमें लोगों को पहचानना की दक्षता लगातार बनाए रखनी चाहिए।
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