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हम जितना धैर्य रखेंगे, हमारा काम उतना ही अच्छा और प्रभावशाली होगा

कहानी सिखों के चौथे गुरु रामदास जी के जीवन की घटना है। उस समय उनका नाम जेठा था। उनके ससुर अमरदास जी ही उनके गुरु थे। अमरदास जी की एक और बेटी थी। जिसका विवाह रामा नाम के व्यक्ति से हुआ था यानी अमरदास जी के दो दामाद थे।

एक बार शिष्यों ने अमरदास जी से पूछा, 'ऐसा देखा गया है कि आप रामा जी की अपेक्षा जेठा जी को बहुत मान देते हैं। ऐसा क्यों?'

अमरदास जी ने कहा, 'चलो एक परीक्षा लेते हैं।' अमरदास जी ने पहले दामाद रामा जी को आदेश दिया, 'एक चबूतरा बना दो। अगर मुझे पसंद आएगा तो ठीक, वरना तोड़कर फिर से नया चबूतरा बनाना पड़ेगा।'

रामा जी ने एक बार चबूतरा बनाया तो अमरदास जी को पसंद नहीं आया तो तोड़ दिया। दूसरी बार बनाया, वह भी पसंद नहीं आया। तीसरी बार फिर चबूतरा बनाया और वह भी अमरदास जी को पसंद नहीं आया तो रामा जी ने कह दिया कि मैं अब नहीं बनाऊंगा।

रामा जी ने मन ही मन सोचा कि ये हो गए हैं बूढ़े, इनकी बुद्धि ठीक से काम नहीं करती है।

अमरदास जी ने यही काम जेठा जी को बताया और उनके सामने भी यही शर्त रखी कि चबूतरा पसंद नहीं आया तो तोड़कर दूसरा बनाना पड़ेगा।

जेठा जी ने पहली बार चबूतरा बनाया तो अमरदास जी ने तुड़वा दिया, दूसरी बार फिर जेठा जी ने चबूतरा बनाया, अमरदास जी को वह पसंद नहीं आया। इसी तरह जेठा जी ने सात बार चबूतरे बनाए और हर बार अमरदास जी को चबूतरे पसंद नहीं आ रहे थे।

सातवीं बार अमरदास जी ने चबूतरा तुड़वाया तो जेठा जी ने चरणों में प्रणाम करके कहा, 'गुरु जी मैं मूर्ख हूं। मैं आपकी सेवा ठीक से कर नहीं सकता। हर बार गलती करता हूं, आप हर बार क्षमा कर देते हैं। मैं फिर से प्रयास करता हूं।'

अमरदास जी ने जेठा को उठाया और गले से लगा लिया और सभी शिष्यों से कहा, 'रामा और जेठा में यही अंतर है। जेठा अपने धैर्य की वजह से मुझे बहुत प्रिय है। मैं इसे आशीर्वाद देता हूं कि इसकी सात पीढ़ियां गुरु की गद्दी पर बैठेंगी।'

सीख - हम जितने धैर्यवान होंगे, हमारा हर काम उतना गहरा और प्रभावशाली होगा। किसी भी काम को करते समय अधीर नहीं होना चाहिए। परिणाम क्या होगा? ये न सोचें। हमारा काम करने का तरीका कैसा है, इस बात पर ध्यान लगाना चाहिए। जेठा जानते थे कि गुरु को अगर पसंद नहीं आया है तो मुझे वह काम फिर से धैर्य के साथ करना है।

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