कहानी - इस सृष्टि का संचालन करने के लिए शिव जी के मन में ये विचार आया कि मैं अकेला सृष्टि का संचालन नहीं कर सकता। मुझे किसी दूसरे पुरुष को बनाना पड़ेगा, जो इसका पालन कर सके।
शिव जी ने अपने शरीर के बाएं भाग पर अमृत लगाया तो एक पुरुष प्रकट हुआ। उसका स्वरूप बड़ा व्यापक था। शिव जी उससे बोले, 'व्यापक होने के कारण मैं तुम्हारा नाम विष्णु रखता हूं। अब तुम्हें जगत का पालन करना है। चूंकि तुम पालन करोगे तो तुम्हारे बहुत सारे नाम भी होंगे।'
विष्णु जी बोले, 'अगर मुझे पालन करना है तो मुझे पहले तप करना होगा।' इसके बाद विष्णु जी तप करने लगे तो उनके शरीर से पानी की धाराएं निकलने लगीं। उसी जल में वे शयन करते थे। जल को नार भी कहते हैं, इस कारण उनका एक नाम नारायण पड़ गया। इसके बाद विष्णु जी ने संसार बनाया और इसका पालन करने लगे।
इस सृष्टि का निर्माण अचानक नहीं हुआ है। इसके पीछे एक सुव्यवस्थित प्रणाली काम कर रही है। विष्णु जी ने तप किया। तप यानी अनुशासन, तप यानी एक ऐसी जीवन शैली जिसमें सब कुछ व्यवस्थित हो। इस तप के बाद से विष्णु जी संसार का पालन कर रहे हैं। जब विष्णु जी ऐसा कर रहे थे तो उनके चेहरे पर बड़ी प्रसन्नता थी।
सीख - हमें जब कोई बड़ा काम करना हो तो जीवन में अनुशासन होना बहुत जरूरी है। काम पूरे व्यवस्थित ढंग से प्रसन्नता के साथ करें। उदास होकर कोई काम करेंगे तो सफलता मिलने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं।
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