कहानी - लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री के पद पर थे। एक दिन उन्होंने कपड़े बनाने की फैक्ट्री का दौरा किया। शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे तो उनके साथ प्रोटोकाल के हिसाब से कई अधिकारी हमेशा साथ रहते थे। फैक्ट्री के मालिक के लिए गौरव की बात थी कि प्रधानमंत्री उसकी फैक्ट्री में आए हैं तो वह भी शास्त्री जी के साथ में था।
शास्त्री जी ने बड़ी बारीकी से देखा कि फैक्ट्री में साड़ियां कैसे बनती हैं? पूरी फैक्ट्री देखने के बाद वे एक जगह बैठ गए। फैक्ट्री के मालिक ने शास्त्री जी को साड़ियां दिखाईं। मालिक ने निवेदन किया कि आप इनमें से कुछ साड़ियां अपने घर ले जाएं।
शास्त्री जी बोले, 'साड़ियां बहुत अच्छी हैं। इनके बनने की विधि देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं, लेकिन इनकी कीमत क्या है?'
मालिक ने कुछ साड़ियों की कीमत 800 रुपए बताई। उस समय 800 रुपए बहुत होते थे। सारी साड़ियां बहुत महंगी थीं। शास्त्री जी ने कहा, 'कुछ सस्ती साड़ियां बताइए।'
सस्ती साड़ियां भी 400 रुपए की थीं। शास्त्री जी ने उन साड़ियों को भी अलग रख दिया और कहा, 'मुझे साड़ी लेना थोड़ा कठिन लग रहा है।'
फैक्ट्री के मालिक ने कहा, 'आप कीमत क्यों पूछ रहे हैं? आप हमारे अतिथि हैं, देश के प्रधानमंत्री हैं, हम आपसे मूल्य नहीं ले सकते। ये तो भेंट हैं।'
शास्त्री जी बोले, 'बिल्कुल सही बात है। मैं देश का प्रधानमंत्री हूं, लेकिन इस पद पर होने के बाद भी मुझे ये स्वतंत्रता नहीं है कि जिस हैसियत की साड़ी मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट के रूप में लेकर अपनी पत्नी को दे दूं।'
अंत में एक सस्ती साड़ी शास्त्री जी ने बहुत सोच-समझकर ली, उसके पैसे भी दिए और घर ले गए।
सीख - लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे लोग हमें सीख देते हैं कि कभी भी अपने पद का और अपने पैसों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। जिस व्यक्ति की नस-नस में ईमानदारी बह रही है, वह किसी भी स्थिति में पद और पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं करेगा।
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