कहानी - गुरुनानक देव जी के प्रवचन सुनने के लिए एक डाकू रोज आया करता था। वह बहुत ध्यान से नानक जी के प्रवचन सुनता था। एक दिन प्रवचन खत्म होने के बाद वह अकेले में गुरुनानक के पास पहुंचा और बोला, 'मैं एक डाकू हूं। आपकी बात सुनता हूं तो ये लगता है कि मुझे ये गलत काम छोड़ देना चाहिए, लेकिन मैं क्या करूं? इस बुराई से कैसे दूर रहूं?'
गुरुनानक ने उसे समझाया, 'एक ही रास्ता है, तुम्हें ही तय करना है। ये तय करो कि बुरी आदत छोड़नी है और उसे छोड़ दो। बार-बार सोचो कि मुझे छोड़ना है, मुझे छोड़ना है तो ये आदत छूट जाएगी।' ये बात सुनकर डकैत वहां से चला गया।
डकैत कुछ दिन बाद फिर आया और बोला, 'मेरी बुरी आदत बिल्कुल भी नहीं छूटी है। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मैं डकैती कर ही देता हूं।'
गुरुनानक बोले, 'मैं तुम्हें एक और तरीका बताता हूं। जब भी कोई बुरा काम करने का मन हो, तुम भले ही वो काम कर लेना, लेकिन रोज अपनी गलत बातें दूसरों को जरूर बताना। दिल में मत रखना।'
डाकू ने सोचा कि ये तो ठीक है। गलत काम करो और दूसरों को बताओ। संत ने कह भी दिया है। ये बहुत आसान है, अब कोई परेशानी नहीं है।
कुछ दिन बाद डाकू फिर नानक जी के पास पहुंचा तो नानक जी ने उससे पूछा, 'अब तुम्हारी बुरी आदत छूटी या नहीं?'
डाकू ने कहा, 'आपने तरीका ही ऐसा बताया था। मुझे लगा था कि अपनी बुरी बातें दूसरों को बताना बहुत आसान रहेगा, लेकिन ये काम तो बहुत मुश्किल था। जब मैंने ये काम करना शुरू किया तो एक दिन मेरा ही मन मुझसे कहने लगा कि ये क्या कर रहे हो? मेरे मन पर बोझ आ गया। धीरे-धीरे पता नहीं क्यों, एक दिन मेरे मन में विचार आया कि दूसरों को गलत बातें बताना ठीक नहीं है। इसके बाद मैंने डकैती छोड़ दी।'
नानक जी ने कहा, 'इंसान के भीतर जो चलता है, वही बाहर प्रकट होता है। अगर हम अपने अंदर ये दृढ़ निश्चय कर लें कि जो भी गलत बातें हैं, वो दूसरों को पता लग जाएंगी तो अच्छा नहीं रहेगा। मनुष्य चाहता ही ये है कि भीतर की बुराई दूसरों तक प्रकट न हों और चलती रहें, लेकिन जब आप दूसरों को बताते हैं तो हल्के हो जाते हैं, चिंतन स्पष्ट हो जाता है। हमारा मन गलत काम करने का दबाव बनाना बंद कर देता है।
सीख - अगर हम ये पक्का इरादा कर लें कि बुरी आदतों को छोड़ना है तो बुरी आदतें छोड़ी जा सकती हैं।
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