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जीवन मंत्र:जब हम ईमानदारी से भक्ति करते हैं तो हमारे विचार दूसरों को जरूर प्रभावित करते हैं

 

कहानी  - निंबार्काचार्य जी का नाम था नियमानंद जी। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और नारद जी को गुरु मानते थे। इनके नाम से द्वैताद्वैत मत की निंबार्क संप्रदाय शाखा चल रही है। आज भी इनको खूब पूजा जाता है।

नियमानंद जी अपने सिद्धांतों के प्रचार के लिए वृंदावन पहुंच गए थे। गिरिराज गोवर्धन के पास उन्होंने अपना एक स्थाई निवास बना लिया। एक दिन इनके पास एक दंडी स्वामी आए। ऐसे महात्मा जो अपने हाथ में दंड रखते थे। दोनों विद्वान संत थे।

दोनों संतों के बीच शास्त्रों की चर्चा चलती रही। समय ऐसे बीता कि रात हो गई और दोनों को मालूम नहीं हुआ। जब अंधेरा देखकर समय का ज्ञान हुआ तो नियमानंद जी ने अपने अतिथि दंडी स्वामी से कहा, 'क्षमा चाहता हूं, समय हमें ज्ञात नहीं हो पाया। आपको भोजन के लिए पूछा नहीं, आप भूखे रह गए।'

दंडी स्वामी जी ने कहा, 'हम तो सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते हैं।'

नियमानंद जी को लगा अतिथि भूखा रह जाएगा। ये बात सही नहीं है। उन्होंने आंखें बंद कीं और भगवान से प्रार्थना की कि अब आप ही कुछ करिए।

ये दोनों जिस पेड़ के नीचे बैठे थे। वह नीम का पेड़ था। उसी समय इनकी प्रार्थना की वजह से एक प्रकाश फैला और एक आवाज हुई। दंडी स्वामी को सुनाई दिया कि भोजन कर लो। ये आवाज सुनकर दंडी स्वामी ने भोजन किया। धीरे-धीरे प्रकाश समाप्त हो गया।

इस दिव्य घटना के बाद दंडी स्वामी और अन्य सभी लोगों ने नियमानंद जी का नाम नींबादित्य कर दिया। बाद में यही निंबार्काचार्य हो गए।

सीख - जब हम साफ मन से पूजा करते हैं तो परमात्मा प्रकृति का सहारा लेकर अन्य लोगों के दिमाग में वह विचार डाल देते हैं, जिसके लिए हम आग्रह करते हैं। निंबार्काचार्य जी चाहते थे कि दंडी स्वामी भोजन कर लें और दंडी स्वामी को ये आज्ञा प्रकृति की ओर से मिल गई। ठीक इसी तरह सच्चे भक्त को भगवान की कृपा मिलती है। कृपा की वजह से भक्त प्रभावशाली हो जाता है।


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