कहानी - 1933 की बात है। एक ऐसी घटना घटी कि महात्मा गांधी ने अपनी और अपने साथियों की शुद्धि के लिए 21 दिन उपवास करने का निर्णय ले लिया। ये निर्णय घोषणा बन गई।
जब ये सूचना गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा और मीरा बेन को मालूम हुई तो बा तो एकदम मौन हो गईं, लेकिन मीरा बेन ने बा की ओर से एक पत्र गांधी जी को लिखा।
पत्र में लिखा था, 'आपके उपवास करने की सूचना मिली। बा को ये सुनकर बड़ी पीड़ा हुई, वे एक तरह से सदमे में हैं। बा का कहना है कि आप ये गलत निर्णय ले रहे हैं। ये भी सही है कि आप किसी की सुनेंगे नहीं। बा की भी नहीं सुनेंगे। फिर भी बा ने इतना कहा है कि ये जो करते हैं, उसमें कहीं न कहीं भगवान की आवाज इनके भीतर होती है। पता नहीं ये क्या निर्णय लिया है।'
ये पत्र पढ़कर गांधी जी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने तुरंत एक तार किया और मीरा बेन को लिखा, 'तुम जाकर बा से कहना कि उनके पिता ने एक जीवन साथी के रूप में ऐसा व्यक्ति उनसे बांध दिया है, जिसका वजन उनको सहना ही है, लेकिन मोहनदास को एक खजाना दिया है बा के रूप में। मैं तो भगवान को धन्यवाद देता हूं कि मुझे ऐसा जीवन साथी मिला है।'
गांधी जी का पत्र सुनकर बा ज्यादा कुछ नहीं बोलीं, बस मुस्कुरा दीं और कहा, 'इन्हें समझाने का तरीका इतना अच्छा आता है कि इनकी बात स्वीकार करनी ही पड़ती है।'
सीख- पति-पत्नी के बीच मतभेद होते ही हैं। व्यक्ति अपने जीवन साथी की समझदारी के साथ प्रशंसा करे और उसकी उपयोगिता दर्शाए तो मतभेद दूर हो सकते हैं। ऐसा करने से दोनों के बीच प्रेम बना रहेगा। मुश्किल समय में जीवन साथी की उपस्थिति ताकत बन जाती है।
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